तीन साल पहले जमीन पर मिला कब्जा, मकान बनाने में जीडीए ही बना बाधा Gorakhpur News
आवंटियों की पीड़ा है कि जीडीए केवल आश्वासन दे रहा है। 2009 में 825 लोगों को भूखण्ड आवंटित होने के बाद से ही वे दौडऩे को मजबूर हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। जीडीए (गोरखपुर विकास प्राधिकरण) की आवासीय योजना राप्तीनगर विस्तार के आवंटी सुविधाओं के लिए प्राधिकरण कार्यालय का चक्कर लगाने को मजबूर हैं। आवंटन होने के आठ साल बाद हाईकोर्ट से लड़कर भूखंड पर कब्जा मिला था। इस बात को भी तीन साल हो गए हैं, लेकिन बिजली, पानी व सड़क की सुविधा अभी तक नहीं मिली।
जीडीए कर रहा परेशान, अब किससे मिलने जाएं आवंटी
जीडीए के अधिकारी कहते हैं कि सभी कार्यों के टेंडर मई में हो गए हैं, जल्द ही काम शुरू हो जाएगा। लेकिन, एक महीने से वहां न तो टेंडर पाने वाले और न ही प्राधिकरण की ओर से कोई गया है। आवंटियों की पीड़ा है कि जीडीए केवल आश्वासन दे रहा है। 2009 में 825 लोगों को भूखण्ड आवंटित होने के बाद से ही वे दौडऩे को मजबूर हैं। पहले कब्जा नहीं मिला और 2017 में जब काबिज हुए तो सुविधाएं नहीं मिल रहीं। आवंटियों के प्रतिनिधिमंडल ने जीडीए के सचिव रामसिंह गौतम से मिलकर अपनी व्यथा बताई थी। आवंटियों कहना था कि कई लोगों ने जीवनभर की पूंजी लगाकर भूखंड पाया है, उसके बाद भी उन्हें बाहर किराए पर रहना पड़ रहा है। आवंटियों को बताया गया कि पानी की टंकी, बिजली जैसे सभी कार्यों के लिए करीब 10 से 12 करोड़ रुपये का टेंडर हो चुका है।
प्राधिकरण के अधिकारियों से मिलता है सिर्फ आश्वासन
राप्तीनगर विस्तार योजना आवंटी संघर्ष समिति के मधुसूदन ओझा का कहना है कि आश्वासन ही मिल रहा है। चार जून को हम प्राधिकरण गए थे तब भी टेंडर होने की बात कही गई थी। दो दिन पहले भी यही बताया गया है। जल्द ही काम नहीं शुरू हुआ तो आवंटी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलकर अपनी पीड़ा बताएंगे। आवंटी विनोद कुमार भट्ट का कहना है कि जमीन आवंटित हुए 11 साल हो गए हैं लेकिन आजतक सुविधाएं नहीं दी गईं। जीडीए की योजना में भी ऐसी समस्याएं झेलनी पड़ेंगी तो लोग किसपर विश्वास करेंगे। हमें दोहरे खर्च की मार झेलनी पड़ रही है।
अब इनकी भी सुनिए
गोरखपुर विकास प्राधिकरण के सचिव राम सिंह गौतम का कहना है कि राप्तीनगर विस्तार योजना में सभी सुविधाओं के लिए टेंडर हो गए हैं। कोरोना संक्रमण के कारण कार्य शुरू नहीं हो पाया था। जल्द ही सभी कार्य शुरू हो जाएंगे।