उलेमा ने की अपील, शौहर महर के रूप में बीवी को दे फिक्स्ड डिपाजिट
उलेमा चाहते हैं कि निकाह के वक्त महर की रकम नगदी या चेक के बजाए एफडी या सोने के रूप में दी जाए। एफडी की रकम भी होने वाली बीवी या सरपरस्त ही तय करें। एफडी बुरे वक्त में काम आ सकती है जबकि नगदी जल्द खर्च हो जाती है।
गोरखपुर, जेएनएन। उलेमा-ए-कराम ने हक-ए-महर (पत्नी को मिलने वाली निश्चित रकम) को लेकर अपील जारी की है। उलेमा चाहते हैं कि निकाह के वक्त महर की रकम नगदी या चेक के बजाए एफडी (फिक्स्ड डिपाजिट) या सोने के रूप में दी जाए। एफडी की रकम भी होने वाली बीवी या सरपरस्त ही तय करें। उनका मानना है कि एफडी की धनराशि बुरे वक्त में काम आ सकती है, जबकि नगदी जल्द खर्च हो जाती है। इसके साथ ही दहेज की मांग करने वालों का निकाह न पढ़ाने की काजी से गुजारिश की गई है। इन मुद्दों को लेकर शहर के बड़े उलेमा जल्द ही एक जलसा भी आयोजित करेंगे।
नाममात्र के लिए न रखी जाए महर की रकम : मुफ्ती अख्तर
काजी-ए-शहर मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही ने कहा कि मां-बाप अपनी बेटी का निकाह करने से पहले लड़के के सामने महर के रूप में बेटी के नाम से एफडी का प्रस्ताव रख सकते हैं, रकम भी तय कर सकते हैं। यह एफडी भविष्य में बेटियों के बहुत काम आयेगी। इसके अलावा महर के रूप में सोना देना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
दहेज मांगने वालों का निकाह न पढ़ाएं काजी
मुफ्ती-ए-शहर मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि नाममात्र के महर के चलन को बंद करना चाहिए। महर को रुपयों में ना रख कर सोने या अचल संपत्ति, एफडी आदि में रखा जाना चाहिए, क्योंकि सोने एवं अचल संपत्ति की कीमत समय के अनुरूप चलती है। नायब काजी मुफ्ती अजहर शम्सी ने कहा कि उलेमा-ए-कराम जुमे की नमाज में होने वाली विशेष तकरीरों व जलसों के जरिए निकाह, महर, तलाक आदि विषयों पर मुस्लिम समाज को जागरुक करें। इससे बीबी के हक व हुकूक की हिफाजत होगी।
क्या होती है महर
महर वह रकम होती है जो निकाह के समय वर-वधू पक्ष की रजामंदी से तय की जाती है। शौहर की तरफ से यह रकम बीवी को सोना, चांदी, कैश या चेक के रूप में देना अनिवार्य होता है। इसका मकसद यह है कि अगर तलाक की नौबत आए तो महिला आर्थिक रूप से मजबूत रहे। छोटी-छोटी जरूरतों के लिए उसे भटकना न पड़े।