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दुआ से दवा तक के सफर में दो सौ लोगों को मिली नई जिंदगी

स्वास्थ्य विभाग ने दुआ से दवा तक कार्यक्रम के तहत मंदिरों मजारों व झाड़-फूंक वाले स्थानों से 300 लोगों को ढूंढा और इलाज किया। इनमें से दो सौ लोग ठीक हो चुके हैं। वे खुशहाल जीवन बिता रहे हैं। शेष का अभी इलाज चल रहा है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 01 Jan 2021 07:08 PM (IST)Updated: Sat, 02 Jan 2021 04:56 PM (IST)
दुआ से दवा तक के सफर में दो सौ लोगों को मिली नई जिंदगी
डाक्‍टर के संबंध में प्रतीकात्‍मक फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। सोनबरसा के पास कैथवलिया में एक बगीचे में एक बाबा झाड़-फूंक करते हैं। गहरे अवसाद के शिकार 40 वर्षीय राजीव (बदला नाम) वहां जाकर दुआ कराते थे। एक साल से पूरा परिवार परेशान था। स्वास्थ्य विभाग ने उन्हें ढूंढकर उनका इलाज किया। अब वह पूरी तरह स्वस्थ हो गए हैं। कहते हैं कि मुझे पहले ही जिला अस्पताल चले जाना चाहिए था। वहीं पास के एक गांव की इंद्रमती अपने 10 साल के बच्चे को लेकर आती थीं। वह सिगरेट की मांग करता था। नहीं मिलने पर उसके सिर जिन्न बाबा आ जाते थे और उपद्रव खड़ा कर देता था। मां को भी आप्सेसिव कंपलसिव डिस्आर्डर (ओसीडी) नामक बीमारी थी। इस बीमारी में मरीज सफाई पर विशेष ध्यान देता है। वह अपने बच्चे को ठंड में भी नहला देती थीं। आज इलाज से मां-बेटे दोनों लगभग स्वस्थ हो चुके हैं। इंद्रमती स्वास्थ्य विभाग को धन्यवाद देते नहीं थकतीं। कहती हैं कि अनेक देव स्थानों पर जाकर मत्था टेका, झाड़-फूंक कराया। कहीं से कोई फायदा नहीं हुआ। जब इलाज हुआ तो राहत मिली।

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झाड़-फूंक वाले स्‍थानों से स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने 300 लोगों ढूंढा

ये दो मामले बानगी भर हैं। ऐसे 300 लोग हैं जिन्हें स्वास्थ्य विभाग ने 'दुआ से दवा तक कार्यक्रम के तहत मंदिरों, मजारों व झाड़-फूंक वाले स्थानों से ढूंढा और इलाज किया। इनमें से दो सौ लोग ठीक हो चुके हैं। वे खुशहाल जीवन बिता रहे हैं। शेष का अभी इलाज चल रहा है। उन्हें भी काफी हद तक राहत है।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत सरकार ने 'दुआ से दवा तक कार्यक्रम की शुरुआत एक साल पहले की थी। इसके अंतर्गत मंदिर, मजार व झाड़-फूंक वाले स्थानों पर जाकर मानसिक रोगियों को खोजकर उनका इलाज करना है। जिला अस्पताल में सोमवार, बुधवार व शुक्रवार को मानसिक रोग विभाग की ओपीडी चलती है। मंगलवार व बृहस्पतिवार को ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों पर ओपीडी होती है। वहां जाने व आने के दौरान मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. अमित कुमार शाही व उनकी टीम देव स्थानों पर मरीजों को खोजती भी है। इसके अलावा शनिवार को स्कूलों, कालेज, जेल, शरणालयों, मंदिर, मजारों व देव स्थानों पर मानसिक रोगियों की खोज की जाती है। उनका इलाज व काउंसिलिंग की जाती है। दवा देकर एक माह बाद उन्हें जिला अस्पताल की ओपीडी में बुलाया जाता है।

कुछ खास स्थानों से खोजे गए मरीज

राजकीय महिला शरणालय, घंटाघर से 10 लोग, जेल रोड से 40 लोग, वृद्धाश्रम बडग़ो से 30, कुष्ठाश्रम राजेंद्र नगर से 28, प्रतीक्षा खोराबार से 02, स्नेहालय शाहपुर से 05, आश्रय गृह कैंपियरगंज से 22, बाल संरक्षण गृह सूर्यकुंड से 03 लोगों को स्‍वास्‍थ्‍य विभाग ने तलाशा।

-किस दिन कहां चलती है मानसिक रोग की ओपीडी

सोम, बुध, शुक्र- जिला अस्पताल।

प्रथम मंगलवार- सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) सरदार नगर।

द्वितीय मंगलवार- सीएचसी गोला।

तृतीय मंगलवार- सीएचसी बासगांव।

चतुर्थ मंगलवार- सीएचसी पाली।

प्रथम बृहस्पतिवार- सीएचसी डेरवा।

द्वितीय बृहस्पतिवार- सीएचसी पिपराइच।

तृतीय बृहस्पतिवार- सीएचसी ब्रह्मपुर।

चतुर्थ बृहस्पतिवार- सीएचसी गगहा।

कैंप लगाकर किया जा रहा इलाज

जिला अस्‍पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. अमित कुमार शाही का कहना है कि अभी तक झाड़-फूंक वाले 10 से अधिक स्थानों पर टीम जा चुकी है। वहां कैंप लगाकर मरीजों को चिह्नित कर उनका इलाज किया जाता है। इसके लिए झाड़-फूंक करने वालों को तैयार करने में थोड़ी मुश्किल आती है। लेकिन काउंसिलिंग के बाद वे तैयार हो जाते हैं। उन्हें बताया जाता है कि उनके किसी काम में हम दखल नहीं देंगे। वे तैयार हो जाते हैं तो अवकाश के दिन वहां कैंप लगाकर मरीजों का इलाज किया जाता है।


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