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नई समय सारिणी के साथ बढ़ जाएगी तीन पैसेंजर ट्रेनों की चाल

फिलहाल रफ्तार बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने इन ट्रेनों का ठहराव कम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए कम आय वाले छोटे और हाल्ट स्टेशनों को चिन्हित किया जा रहा है। अधिकारियों के बीच मंथन जारी है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 23 Oct 2020 09:52 AM (IST)Updated: Fri, 23 Oct 2020 09:52 AM (IST)
नई समय सारिणी के साथ बढ़ जाएगी तीन पैसेंजर ट्रेनों की चाल
चलती हुई यात्री ट्रेन की फाइल फोटो।

गोरखपुर, जेएनएन। पूर्वोत्तर रेलवे की तीन जोड़ी पैसेंजर ट्रेनों की चाल अब नई समय सारिणी के साथ बढ़ जाएगी। यह ट्रेनें 10 से 12 की जगह महज छह से सात घंटे में अपने गंतत्व तक पहुंच जाएंगी।  रेलवे का राजस्व तो बढ़ेगा ही आम यात्रियों की राह आसान हो जाएगी।

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फिलहाल, रफ्तार बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने इन ट्रेनों का ठहराव कम करना शुरू कर दिया है। इसके लिए कम आय वाले छोटे और हाल्ट स्टेशनों को चिन्हित किया जा रहा है। अधिकारियों के बीच मंथन जारी है।

दरअसल, रेलवे बोर्ड की सहमति के बाद पूर्वोत्तर रेलवे ने 55007-55008 गोरखपुर-पाटलिपुत्र, 55031-55050 नकहा जंगल- लखनऊ जंक्शन और 55119-55150 गोरखपुर-वाराणसी पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस बनाने की कवायद शुरू कर दी है। नई समय सारिणी में जहां तीन एक्सप्रेस ट्रेनें बढ़ जाएंगी वहीं तीन पैसेंजर कम भी हो जाएंगी। जानकारों के अनुसार रेलवे बोर्ड ने पूर्वोत्तर रेलवे सहित सभी जाेन से पैसेंजर ट्रेनों को एक्सप्रेस के रूप में चलाने का प्रस्ताव मांगा था। पूर्वोत्तर रेलवे ने करीब आठ जोड़ी पैसेंजर ट्रेनों का प्रस्ताव भेजा था, जिसमें बोर्ड ने प्रथम चरण में तीन पैसेंजर को एक्सप्रेस में बदलने की मंजूरी दे दी है। आने वाले दिनों में घाटे में चल रही पैसेंजर ट्रेनों का संचालन या तो बंद कर देगा या उन्हें एक्सप्रेस के रूप में बदलकर चलाएगा।

बढ़ेगा किराया, मिलेगी राहत

 रेलवे के इस बदलाव से स्थानीय लोगों की परेशानी बढ़ जाएगी। साथ ही राहत भी मिलेगी। किराया भले अधिक देना पड़ेगा लेकिन नौकरीपेशा, व्यवसायी और मरीज समय से गोरखपुर, वाराणसी और लखनऊ पहुंच जाएंगे। दरअसल, पैसेंजर ट्रेनें कभी समय से नहीं चलती थीं।  एक्सप्रेस और मालगाड़ियों के बीच वह घंटों स्टेशन यार्ड में खड़ी रह जाती थीं। आम यात्री भी इन ट्रेनों का टिकट नहीं लेते थे। ऐसे में रेलवे को घाटा उठाना पड़ रहा था। सामान्य दिनों में पूर्वोत्तर रेलवे में करीब दो दर्जन पैसेंजर और डेमू ट्रेनें बनकर चलती थी।


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