Move to Jagran APP

राम मंदिर को समर्पित रही नाथ पीठ की तीन पीढ़ी, दिग्विजयनाथ से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने किया संघर्ष

अयोध्या में श्रीराम मंदिरका शिलान्यास होने जा रहा है। इसके लिए गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियों ने संघर्ष किया है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 09:53 AM (IST)Updated: Tue, 04 Aug 2020 10:13 AM (IST)
राम मंदिर को समर्पित रही नाथ पीठ की तीन पीढ़ी, दिग्विजयनाथ से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने किया संघर्ष
राम मंदिर को समर्पित रही नाथ पीठ की तीन पीढ़ी, दिग्विजयनाथ से लेकर योगी आदित्यनाथ तक ने किया संघर्ष

गोरखपुर, डाॅ. राकेश राय। जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण को लेकर 500 वर्ष के संघर्ष का अध्याय पांच अगस्त को भूमि पूजन के साथ बंद हो जाएगा। यह संयोग ही है कि जिस राममंदिर के लिए नाथ पीठ की तीन पीढ़ियों ने संघर्ष किया, उसके पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री के तौर पर निर्माण शुरू कराने की जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिला है।

loksabha election banner

राम मंदिर और नाथ पीठ का नाता दो-चार नहीं बल्कि सात दशक पुराना है। संघर्ष के इतिहास पर नजर डालें तो मंदिर निर्माण से जुड़ी हर महत्वपूर्ण घटना की अगुवाई पीठ के महंतों ने की। 22-23 दिसंबर 1949 को जब विवादित ढांचे में रामलला का प्रकटीकरण हुआ। उस समय पीठ के तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ कुछ साधु-संतों के साथ वहां संकीर्तन कर रहे थे। इसे लेकर हुए मानस यज्ञ में भी दिग्विजयनाथ की भूमिका महत्वपूर्ण रही। उन्होंने ही पहली बार तत्कालीन संतों के साथ मिलकर राम जन्मभूमि उद्धार का संकल्प लिया।

महंत अवेद्यनाथ ने बखूबी संभाली गुरु की जिम्मेदारी

महंत दिग्विजयनाथ ब्रह्मलीन हुए तो यह जिम्मेदारी उनके शिष्य महंत अवेद्यनाथ ने संभाल ली। उन्होंने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया, जिसके वह आजीवन अध्यक्ष बने। उन्हीं की अगुवाई में श्रीराम जन्मभूमि न्यास का गठन हुआ और वह पहले अध्यक्ष चुने गए। अवेद्यनाथ के नेतृत्व में सात अक्टूबर 1984 को सीतामढ़ी से अयोध्या के लिए धर्मयात्रा निकाली गई। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया। 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज जस्टिस कृष्ण मोहन पांडेय ने राम मंदिर का ताला खोलने का आदेश दिया था तो उसके लागू करने के लिए महंत अवेद्यनाथ मौके पर मौजूद थे। 22 सितंबर 1989 को उस विराट हिंदू सम्मेलन, जिसमें नौ नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित हुआ, उसकी अध्यक्षता अवेद्यनाथ ने ही की। एक दलित से जन्मभूमि पर शिलान्यास कराके आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ने वाले महंत ही थे। हरिद्वार के संत सम्मेलन में उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित की और 26 अक्टूबर को वह इसके लिए निकल पड़े। आंदोलन की तीव्रता से भयभीत तत्कालीन सरकार ने उन्हें पनकी में गिरफ्तार करवा दिया।

23 जुलाई 1992 में मंदिर निर्माण के लिए अवेद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला। बात नहीं बनी तो 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया। कारसेवा का नेतृत्व करने वालों में अवेद्यनाथ सबसे आगे रहे। उनके समय में गोरखनाथ मंदिर राम मंदिर आंदोलन का मुख्य केंद्र बन गया।

मंदिर के लिए राजनीति में लौटे अवेद्यनाथ

मीनाक्षीपुर में धर्म परिवर्तन को लेकर चले अभियान से दुखी होकर महंत अवेद्यनाथ ने 1980 में राजनीति से दूरी बना ली और पूरी तरह राम मंदिर आंदोलन को समर्पित हो गए। 22 सितंबर 1989 को विराट हिंदू सम्मेलन के दौरान जब मंदिर निर्माण की तारीख घोषित कर दी गई तो तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री बूटा सिंह ने कार्यक्रम स्थगित करने के लिए अवेद्यनाथ से मुलाकात की। महंत ने जब फैसले से करोड़ों लोगों के जुड़े होने की बात बताई तो गृहमंत्री ने उन्हें संसद में आने की चुनौती दे दी। अवेद्यनाथ ने चुनौती स्वीकार की और राजनीति में वापसी कर हिंदू महासभा से गोरखपुर के सांसद बने।

त्रेता युग का गौरव लौटा रहे योगी आदित्यनाथ

12 सितंबर 2014 को जब महंत अवेद्यनाथ ब्रह्मलीन हो गए तो योगी आदित्यनाथ ने गोरक्षपीठाधीश्वर का दायित्व ग्रहण करने के साथ ही अपने गुरु के संकल्प को पूरा करने का बीड़ा भी उठा लिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अयोध्या की लगातार यात्राएं की। बतौर मुख्यमंत्री रामलला के दर्शन से लेकर तीन भव्य दीपोत्सव से उन्होंने न केवल अयोध्या के गौरव को लौटाने का प्रयास किया बल्कि दुनिया भर के भारतवंशियों को रामनगरी से जोड़ने का काम किया। सैकड़ों करोड़ की विकास परियोजाएं, राम की पैड़ी का उद्धार, नव्य अयोध्या के रूप में इक्ष्वाकुपुरी की परिकल्पना से यह साफ है कि मुख्यमंत्री योगी अयोध्या का त्रेता युग का गौरव लौटाने के लिए संकल्पित हैं। पहले दीपोत्सव में ही योगी ने मुख्यमंत्री के रूप में फैजाबाद का नाम अयोध्या करके जन-भावनाओं को मूर्तरूप दिया था।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.