धुप्पा से दूर नहीं रह सकता यह सारस, जानें- कौन है धुप्पा.. Gorakhpur News
हर किसी को अपनी चिंता है पर नेपाल सीमा से सटे उप्र के सिद्धार्थनगर जिले का एक किसान ऐसा भी है जो बेहाल जीव-जंतुओं को घायल नहीं देख सकता। नाम है धुप्पा।
गोरखपुर, जीतेन्द्र पांडेय। हर किसी को अपनी चिंता है, पर नेपाल सीमा से सटे उप्र के सिद्धार्थनगर जिले का एक किसान ऐसा भी है, जो बेहाल जीव-जंतुओं को घायल नहीं देख सकता। नाम है धुप्पा। घायल पशु-पक्षियों को घर लाना और उपचार करने के बाद उन्हें किसी सुरक्षित स्थल पर छोड़ देना उनका जुनून है। जुनून कुछ वषों से नहीं बल्कि पूरे तीस वषों से बना हुआ है। उनकी जैसे-जैसे उम्र बढ़ी, इस पुनीत कार्य के प्रति लगाव भी बढ़ता गया।
पचास से अधिक पशु-पक्षियों की बचा चुके हैं जान
45 वर्षीय धुप्पा जोगिया विकास खंड के ग्राम गोनहा ताल के रहने वाले हैं। वह सेही (पूरे शरीर पर कांटे वाला जानवर), मोर, सारस समेत 50 से अधिक घायल पशु-पक्षियों का जीवन बचा चुके हैं। इनमें से कई तो अब उनके साथ घर पर रहते हैं। परिवार के सदस्य बन गए हैं। सहसा विश्वास नहीं होता, लेकिन सच यही है कि छह वर्ष से एक सारस उनका घर छोड़कर जाने को तैयार नहीं। कई बार उन्होंने उसे खुले में छोड़ने का प्रयास किया, लेकिन वह उन्हें छोड़कर एक कदम आगे गया ही नहीं। जबकि माना जाता है कि सारस साथी के बिना रह नहीं सकता।
उम्र के साथ बढ़ती गई जीवों के प्रति दया भावना
जीवों के प्रति अगाध प्रेम ने उन्हें इर्द-गिर्द के गांव में इस कदर लोकप्रिय बना दिया है कि कोई जीव घायल होता है तो लोग इसकी सूचना पशु चिकित्सा विभाग को देने की बजाय धुप्पा को देते हैं। सभी को भरोसा रहता है कि धुप्पा के प्रयास से घायल को जिंदगी मिल जाएगी। धुप्पा बताते हैं कि जीव-जंतुओं के प्रति लगाव उनका बचपन से ही है। कहते हैं, छोटा था तो कई बार घर पर घायल गौरैया के बच्चों को ले आया। देखभाल की और ठीक होते ही उड़ने के लिए छोड़ दिया। ऐसे ही यह सिलसिला चलता रहा। गांव वाले भी उनके इस नेक कार्य की तारीफ करते हैं।
सांप का भी किया इलाज
बताते हैं कि तीन वर्ष पूर्व ट्रैक्टर की चपेट में एक सांप आ गया। धुप्पा ने उसका भी उपचार किया और फिर उसे गांव के बाहर ले जाकर छोड़ दिया। एक वर्ष पूर्व उसे मोर के दो छोटे बच्चे मिले, दोनों ही चोटिल थे। उनका उपचार किया और उन्हें वहीं खेत में छोड़ा। थोड़ी देर बाद लौटा तो दोनों उसी स्थान पर मिले। उन्हें कोई जानवर अपना शिकार न बना ले। इसलिए उन्हें घर ले आया। अब दोनों मोर घर पर रहते हैं। खेती करने वाले धुप्पा के स्वजन भी पूरा सहयोग करते हैं। पशु-पक्षियों के लिए मिट्टी का घर बनाया है। इसमें मुर्गी से लेकर सेही व मोर के बच्चे साथ रहते हैं। सभी को वहीं पर खाना मिल जाता है और वही वह उसे चुगते हैं।
बढ़ता जा रहा परिवार
धुप्पा की सेवा-समर्पण और लगाव का नतीजा है कि सारस के अलाव सेही और कई मोर उनके घर के सदस्य के मानिंद रहते हैं। इन सभी पक्षियों को वह कभी घायलावस्था में घर लाए थे। अब राज्य पक्षी सारस व राष्ट्रीय पक्षी मोर की जुगलबंदी देखते ही बनती है। धुप्पा की एक आवाज पर ये परिंदे उसके पास खिंचे चले आते हैं।