अरे, यह नदी तो अप्रैल में ही सूख गई, जानें क्या है इसका महत्व
135 किलोमीटर लंबी यह नदी सूख गई है। नदी में ही खेती की जा रही है। नदी में पानी न होने से सबसे ज्यादा परेशानी जंगली जानवरों को हो रही है।
गोरखपुर, जेएनएन। शिल्ट और मिट्टी से उथली हो चुकी बस्ती जिले की कठिनइया नदी इस समय पूरी तरह से सूख चुकी है। कभी वर्ष भर पानी से भरी रहने वाली इस नदी में अप्रैल माह में ही बूंद भर पानी नहीं रह गया है। पशु पक्षियों और वन्यजीवों के पेयजल की साधन रही कठिनइया इन दिनों कठिनाई में है और खुद प्यासी है।
दो जिलों की सीमा तय करती है नदी
बस्ती एवं संतकबीरनगर जनपद के गांवों से होकर बहने वाली तथा दोनों जनपदों की सीमा तय करने वाली इस नदी का इतिहास बहुत पुराना है। तट के दोनों तरफ की हजारों एकड़ कृषि योग्य भूमि की सिचाई और वन्यजीवों की प्यास बुझाने का माध्यम रही यह नदी अब अस्तित्व के संकट से जूझ रही है।
यहां से निकली है यह नदी
कठिनइया नदी मूलत: बरसाती नदी है। यह बलरामपुर जनपद के उतरौला के पास कुआनो की सहायक नदी रवई से निकली है। जो बस्ती जनपद में रुधौली तहसील से होते हुए साऊंघाट ब्लाक के मुंडेरवा से होते हुए संतबीरनगर में मुखलिसपुर के पास कुआनो नदी में मिल जाती है। यह नदी अपने उद्गम स्थल से संतकबीर नगर तक 135 किमी की यात्रा करती है। नदी के किनारे के गावों के लोग यहीं पर धार्मिक व अंतिम संस्कार करते हैं।
नदी किनारे बड़ी संख्या में मोर पक्षी का निवास
इसके किनारे बड़ी संख्या में राष्ट्रीय पक्षी मोर का निवास है। यह पक्षी नदी के तटवर्ती इलाकों में बड़ी संख्या में देखे जाते हैं। नदी में जब कभी पानी नहीं रहता है तो मोर पानी की तलाश में आबादी की तरफ भटक कर चले आते हैं। जिससे वह अक्सर कुत्तों के झुंड का शिकार हो जाते हैं। यही हाल हिरणों का है। इसके अलावा नदी के किनारे बागों व खेतों में रहने वाले अन्य पशु पक्षी भी इसी नदी के सहारे जिदा रहते हैं।
तलहटी साफ हो तो ठहरे पानी
स्थानीय लोगों का कहना है कि यदि नदी की सफाई कर इसकी तली को और गहरा कर दिया जाए तो इसकी जलसंग्रह क्षमता बढ़ा जाएगी तथा इसकी तलहटी में स्थित बड़े-बड़े गड्ढों में भी पानी एकत्र रहेगा जो सूखे के दिनों में जंगली जीवों के काम आएगा।