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Corona vaccination in Gorakhpur: जानें, को-वैक्सीन व कोविशील्ड में क्‍या है अंतर और कैसे करती हैं काम

को-वैक्सीन कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन है। इसे इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के सहयोग से भारत बायोटेक ने विकसित किया है। इसके शोध वैज्ञानिक का मानना है कि यह वैक्सीन परंपरागत तरीके से विकसित की गई है।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Fri, 05 Mar 2021 01:36 PM (IST)Updated: Fri, 05 Mar 2021 03:25 PM (IST)
Corona vaccination in Gorakhpur: जानें, को-वैक्सीन व कोविशील्ड में क्‍या है अंतर और कैसे करती हैं काम
कोरोना टीकाकरण करती डाक्‍टर का फाइल फोटो, जेएनएन।

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना वायरस के दो टीके जिले में लगाए जा रहे हैं। को-वैक्सीन में पूरा वायरस निष्क्रिय कर शरीर में डाला जा रहा है। कोविशील्ड में वायरस के प्रोटीन का जीनोम (कोरोना के ऊपर पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन का निर्माता) एडिनो वायरस (सर्दी-जुकाम वाला वायरस) के डीएनए में मिलाकर दिया जा रहा है। पूरे वायरस का स्वरूप बदलने में समय लग सकता है लेकिन प्रोटीन जो कोरोना का चेहरा है, में बदलाव जल्दी आ सकता है। इसलिए को-वैक्सीन ज्यादा टिकाऊ मानी जा सकती है। शोध वैज्ञानिक मानते हैं कि को-वैक्सीन से बनी एंटीबाडी ज्यादा दिन तक प्रभावी रह सकती है।

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को-वैक्सीन कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन

को-वैक्सीन कोरोना की स्वदेशी वैक्सीन है। इसे इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के सहयोग से भारत बायोटेक ने विकसित किया है। शोध वैज्ञानिक का मानना है कि यह वैक्सीन परंपरागत तरीके से विकसित की गई है। इसमें पूरे कोरोना वायरस को पूरी तरह निष्क्रिय कर वैक्सीन में डाला गया है। ब्रिटिश कंपनी एस्ट्रोजेनेका व आक्सफोर्ड यूनवर्सिटी द्वारा विकसित वैक्सीन का नाम कोविशील्ड है। इसे आधुनिक तरीके से विकसित किया गया है। इसे भारत में सीरम इंस्टीट््यूट तैयार कर रहा है। इस वैक्सीन में कोरोना के स्पाइक प्रोटीन (जो कोरोना वायरस की ऊपरी सतह पर कांटे की तरह दिखता है) को तैयार करने वाले जीनोम का प्रयोग किया गया है। दोनों वैक्सीन शरीर में कोरोना के खिलाफ एंटीबाडी बनाने में कारगर हैं।

कैसे बनती है एंटीबाडी

क्षेत्रीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र के वायरोलाजिस्ट डा. अशोक पांडेय बताते हैं कि बैक्टीरिया या वायरस का वह हिस्सा जो हमारी प्रतिरोधक क्षमता द्वारा पहचाना जाता है उसे पैथोजेन एसोसिएटेड मालीक्यूलर पैटर्न (पीएएमपी) कहते हैं। यह वायरस का चेहरा होता है। कोरोना वायरस का चेहरा उसका स्पाइक प्रोटीन है। हमारी प्रतिरोधक क्षमता के जिस तंत्र द्वारा यह पहचाना जाता है उसे पैथोजेन रिकग्नीशन रिसेप्टर (पीआरआर) कहते हैं। इन दोनों का आमना-सामना तय करता है कि हमारी प्रतिरोधक क्षमता कैसे काम करेगी और किस तरह एंटीबाडी बनेगी। पहचान का सबसे सरल माध्यम चेहरा होता है। स्पाइक प्रोटीन कोरोना का चेहरा है। उसी के जरिये वह कोशिकाओं से चिपकता है और उनके अंदर चला जाता है। वायरस जब तक कोशिका के अंदर न जाए, तब तक वह प्रभावी नहीं होता है। उसे ङ्क्षजदा रहने के लिए जीवित व्यक्ति व जीवित कोशिका चाहिए। वह हमारे ही तंत्र का उपयोग कर वहीं से अपनी खुराक लेता है और अपना विस्तार करता है। उसके चेहरे को देखकर ही प्रतिरोधक क्षमता सक्रिय हो जाती है और उसके खिलाफ एंटीबाडी बनाने लगती है।

कैसे काम करेगी वैक्सीन

वायरस जब सीधे शरीर में घुसता है, एंटीबाडी तब भी बनती है लेकिन वायरस ताकतवर रहता है और एंटीबाडी कमजोर रही तो हमें बीमार कर देता है। को-वैक्सीन में पूरा कोरोना वायरस लिया गया है, उसे केमिकल से पूरी तरह निष्क्रिय कर दिया गया है लेकिन उसके पूरे स्वरूप में कोई तब्दीली नहीं की गई है, ताकि उसे मृत अवस्था में देखकर भी हमारा शरीर उससे लडऩे के लिए तैयार हो जाए और जब ङ्क्षजदा वायरस घुसे से उसे मार दे। कोविशील्ड वैक्सीन बनाने में कोरोना की ऊपरी सतह पर पाए जाने वाले स्पाइक प्रोटीन के निर्माता को आधार बनाया गया है। कोरोना वायरस के डीएनए का वह हिस्सा जो स्पाइक प्रोटीन का निर्माण करता है, उसे सर्दी-जुकाम वाले वायरस एडिनो के डीएनए में मिलाकर तैयार किया गया है। चूंकि एडिनो के खिलाफ हमारे शरीर में पहले से एंटीबाडी बनी हुई है, इसलिए वह नुकसान नहीं पहुंचा पाएगा। उसके साथ कोरोना के चेहरे (स्पाइक प्रोटीन) का जीनोम भी है तो वह उसका चेहरा भी तैयार करेगा। इसलिए उसके खिलाफ भी हमारे शरीर में एंटीबाडी बनने लगती है। चूंकि शरीर में सबसे ज्यादा और जल्दी बदलाव चेहरे में ही होता है, इसलिए कोरोना का चेहरा बदला तो कोविशील्ड बहुत कारगर नहीं रह जाएगी। पूरे स्वरूप में बदलाव काफी दिन बाद होता है, इसलिए को-वैक्सीन लंबे समय तक प्रभावी रह सकती है।


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