Ayodhya Ram Mandir: इन कर्णधारों ने राम मंदिर आंदोलन को नेपथ्य से दिया धार
अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन में गोरखपुर के कई लोगों ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था।
गोरखपुर , जेएनएन। राम मंदिर के लिए वर्षों चले आंदोलन में लाखों कारसेवकों ने अगली पंक्ति में खड़े होकर मोर्चा लिया। लाठियां खाईं, जेल गए। लेकिन हमें उन लोगों के योगदान को हरगिज नहीं भूलना चाहिए, जिन्होंने पर्दे के पीछे से आंदोलन को धार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अगर कहा जाए कि उन लोगों के प्रयास से ही कारसेवक अपनी मंजिल तक पहुंचने में सफल रहे तो गलत नहीं होगा। इनमें से जो नाम सबसे पहले सामने आया, वह हैं शिवजी सिंह और बालकृष्ण सर्राफ।
वर्तमान में सरस्वती विद्या मंदिर के प्रधानाचार्य शिवजी सिंह संपूर्ण आंदोलन के दौरान पुलिस की नजरों से बचकर हजारों कारसेवकों के रहने-खाने का निरंतर इंतजाम करते रहे और उन्हें अयोध्या तक पहुंचने में मदद करते रहे। जबकि शहर के एक बड़े व्यवसायी बालकृष्ण सर्राफ ने न केवल आंदोलन की रणनीति तैयार करने के लिए होने वाली परिचित प्रविष्टियों के आयोजनों का जिम्मा संभाला बल्कि आर्थिक मदद में भी सबसे आगे रहे।
नेपाली नौकर बनकर रहते थे शिवजी सिंह
मंदिर को लेकर अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए शिवजी सिंह बताते हैं कि 1990 से 1992 के बीच कारसेवकों के छिपने का महत्वपूर्ण ठिकाना था सरस्वती विद्या मंदिर। वहां आने वाले कारसेवकों के रहने-खाने के इंतजाम का जिम्मा उनपर ही था। किसी को शक न हो, इसके लिए जब भी आंदोलन चरम पर होता, वो नेपाली को भेष धारण कर लेते। अंडरवीयर-बनियान और नेपाली टोपी पहनकर वह परिसर में ऐसे घूमते थे, जैसे कोई परिचारक। बकौल शिवजी 1992 के आंदोलन में एक बार ऐसा हुआ कि उनके यहां सवा सौ की संख्या में झारखंड से आए तीर-कमान वाले कारसेवक छिपे हुए थे और देर रात पुलिस का छापा पड़ गया। ऐसे में उन्हें नींव के लिए तैयार किए गए उस गड्ढे में कूद जाना पड़ा, जिसमें से छड़ें निकली हुई थीं। पर उन्हें एक खरोच तक नहीं आईं। शिवजी के मुताबिक भगवान के लिए संघर्ष था सो उन्होंने ही उन्हें बचा लिया। बताते हैं कि उन दिनों हरियाणा, पंजाब, झारखंड, बिहार से आए हजारों कारसेवकों की सेवा का उन्हें अवसर मिला। कारसेवकों के लिए भोजन के तौर पर विद्यालय में उन दिनों गुड़, चूड़ा, चना, अचार, हरी मिर्च जैसे चीजें अधिक मात्रा में हमेशा मौजूद रहती थीं। शिवजी के मुताबिक आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए कई बार छिपकर अशोक सिंघल और विनय कटियार जैसे नेता भी वहां पहुंचे थे और उन्हें उनकी सेवा का अवसर भी मिला था। राम मंदिर निर्माण शुरू होने की चर्चा पर शिवजी भावुक होकर बोले- हमारी तपस्या आखिरकार सफल हुई।
गोपनीय बैठकों की जिम्मेदारी संभालते थे बालकृष्ण
पूर्वांचल में रामजन्मभूमि आंदोलन के लिए होने वाली गोपनीय बैठकों के व्यवस्थापकों में से एक थे शहर के बड़े व्यवसायी बालकृष्ण सर्राफ। यही वजह थी चाहे अशोक सिंघल हो या फिर विष्णुहरि डालमिया या फिर विनय कटियार, सबने इनका आतिथ्य स्वीकार किया। कारसेवकों की मदद में इनकी पत्नी स्व. प्रकाशी देवी की भूमिका की चर्चा भी यहां जरूरी है क्योंकि इस धार्मिक कार्य में उन्होंने भी बालकृष्ण का न केवल पूरा साथ दिया बल्कि कई बार उनसे भी आगे नजर आईं। जब भी कारसेवकों के खानपान और रहने के इंतजाम की समस्या आती, बालकृष्ण और उनकी पत्नी आगे बढ़कर यह जिम्मेदारी संभाल लेते। 1990 और 1992 के आंदोलनों में हिस्सा लेने जाने वाले बहुत से कारसेवकों की उन्होंने न केवल आर्थिक मदद की बल्कि उनके अयोध्या तक पहुंचने का इंतजाम भी किया। इन आंदोलनों को सफल बनाने की रणनीति को लेकर कई गोपनीय बैठकें बालकृष्ण सर्राफ के घर पर ही सम्पन्न हुईं। 1992 के आंदोलन में कारसेवकों की मदद को लेकर जब पुलिस ने उनके सामने गिरफ्तार न करने के लिए माफीनामे की शर्त रखी तो उन्होंने शर्त को मानने से साफ इन्कार यह कहकर कर दिया कि हम अपने रामलला के लिए लड़ रहे हैं, कोई अपराध नहीं कर रहे। बाद में पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार तो किया लेकिन कोई सबूत नहीं मिलने के चलते उसे छोड़ना पड़ा। आज जब जन्मभूमि पर राम मंदिर निर्माण सपना पूरा होने जा रहा है तो बालकृष्ण सर्राफ इसे लेकर गौरवान्वित हैं कि इस यज्ञ में उन्होंने भी आहुति दी है।