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यहां पर मौजूद हैं शेरशाह सूरी व मौर्य कालीन कई साक्ष्य, अतीत की गवाही दे रहीं विरासतें Gorakhpur News

सिद्धार्थनगर जिले के बांसी तहसील में शेरशाह सूरी से लेकर मौर्य काल तक की प्राचीन धरोहरें हैं जो अनदेखी के कारण विलुप्त होने को हैं। बांसी-मेहदावल मार्ग पर नगर के बहबोल स्थित शेरशाह सूरी का बनाया गया पुल जर्जर हो रहा है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sun, 18 Apr 2021 03:10 PM (IST)Updated: Sun, 18 Apr 2021 03:10 PM (IST)
यहां पर मौजूद हैं शेरशाह सूरी व मौर्य कालीन कई साक्ष्य, अतीत की गवाही दे रहीं विरासतें Gorakhpur News
घास-फूस से पटा महादेवा गांव के पास सम्राट अशोक द्वारा निर्मित विशाल शिव सागर पोखरा। जागरण

रितेश बाजपेयी, गोरखपुर : सिद्धार्थनगर जिले के बांसी तहसील में शेरशाह सूरी से लेकर मौर्य काल तक की प्राचीन धरोहरें हैं, जो अनदेखी के कारण विलुप्त होने को हैं। बांसी-मेहदावल मार्ग पर नगर के बहबोल स्थित शेरशाह सूरी का बनाया गया पुल जर्जर हो रहा है। इसी मार्ग पर नगर से मात्र चार किमी दूर महदेवा गांव के पास सम्राट अशोक के समय का पोखरा और मौर्य कालीन शिवमंदिर भी है। पुरातत्व विभाग यहां खोदाई से मिले अवशेषों को संरक्षित कर रखा है। बावजूद  इन पुरावशेषों और धरोहरों पर ध्यान नहीं दे रहा है।

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नदी पार करने के लिए कराया था पुल का निर्माण

वर्ष 1540 से 1545 तक शेरशाह सूरी का देश भर में राज रहा। अपने पांच वर्ष के कार्यकाल में उसने उन सभी पहलुओं पर ध्यान दिया, जिससे किसान, गरीब व आम जन को सुविधा मिल सके। सन 1540 से पूर्व तक बिहार प्रदेश में इनके पूर्वजों का राज हुआ करता था। शेरशाह सूरी का राज जब पूरे देश में फैला तो वह बिहार से गोरखपुर होते हुए बांसी के इस प्राचीन कस्बे में पहुंचा। उस समय राप्ती नदी का प्रवाह नगर के दक्षिणी पूर्वी छोर से होता था। नदी को पार करने के लिए उसने इस पुल का निर्माण कराया था। लाखौरी ईंटों से निर्मित दो पायों के इस पुल की लंबाई 20 मीटर और चौड़ाई तीन मीटर है। इतिहासकारों का कहना है शेरशाह ने देश भर में कुल 14 पुल बनवाए थे, यह पुल उनमें से एक है।

मौर्य काल की याद दिलाता है पोखरा

इसी नगर से चार किमी दूर महदेवा गांव के सन्निकट स्थित शिव मंदिर व पोखरा मौर्य काल की याद दिलाता है। बौद्ध दीक्षा के उपरांत सम्राट अशोक भगवान बुद्ध की जन्मस्थली कपिलवस्तु आते समय अपने लाव-लश्कर के साथ कुछ दिन यहां पर ठहरे थे। उसी दौरान इन विशाल तालाब का निर्माण कराया, जिसे शिवसागर के नाम से आज जानते हैं। महदेवा गांव के पूरब स्थित यह तालाब वर्तमान समय में बांसी-मेंहदावल मार्ग के बन जाने से दो भागों में विभाजित है। इसके पश्चिम बभनी व दक्षिण में चनर गड्डी गांव स्थित है जो संस्कृत के चंद्र गढ़ी का अपभ्रंश है। सम्राट अशोक ने अपने पूर्वज चंद्र गुप्त मौर्य के नाम से चंद्र गढ़ी के नाम से इसे बसाया था। यहां स्थापित शिव लिंग को इतिहासकार ऐतिहासिक तथा मौर्य काल से भी पहले का बताते हैं।

मिल चुके हैं कई प्रमाण

शिवसागर नामक इस तालाब के चारों तरफ की खुदाई 1955-56 में पुरातत्व विभाग की टीम ने किया तो अशोक स्तंभ का शीर्ष भाग, मौर्य कालीन सिक्के व कई मोटी दीवार व मूर्तियां उन्हें मिलीं थीं। इसका उल्लेख इंडिया आर्कियोलाजी ए रिव्यू 1955-56 अंक के पृष्ठ संख्या 61 में है। खुदाई में मिले अशोक स्तंभ के शिखर पर स्थित सिंह की आकृति का निचला भाग लखनऊ स्थित राजकीय संग्रहालय में महदेवा- बस्ती की पट्टी लगा कर 55.254 नंबर में रखा है। यहां से मिले कुछ अवशेषों को कोलकाता संग्रहालय में भी रखा गया है।

शेरशाह सूरी के कार्यकाल में हुआ निर्माण

रतन सेन डिग्री कालेज के प्राचार्य व इतिहासविद डा. मिथलेश त्रिपाठी का कहना है कि बांसी नगर के पास स्थित पुल की बनावट इस बात को सिद्ध कर चुका है कि इसका निर्माण शेरशाह सूरी के कार्यकाल में ही हुआ। इसी प्रकार महदेवा गांव के पास का स्थान वैदिक सभ्यता का प्रमुख केंद्र रहा, जहां पशुपति संप्रदाय के लोग रहा करते थे। महदेवा गांव प्राचीन काल से ही सनातन धर्मियों की आस्था का केंद्र रहा। सागर व उसके आस पास की खुदाई से मिले अवशेष मौर्य कालीन ही हैं।

पुरातत्‍व विभाग व शासन को लिखूंगा पत्र

बांसी के ज्वाइंट मजिस्ट्रेट जग प्रवेश ने कहा कि नगर में स्थित इन ऐतिहासिक विरासतों की मैं जानकारी हासिल कर पुरातत्व विभाग व शासन को पत्र लिख अवगत कराऊंगा। इसमें आग्रह भी करूंगा कि इन्हें संरक्षित करने व इसे और विस्तार देने का दिशा निर्देश दें।


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