सूरज डूबने पर अब नहीं लगेंगी सिस्टम की ठोकरें, रात में पोस्टमार्ट की केंद्र सरकार ने दी अनुमति
किसी घटना दुर्घटना या आपराधिक वारदात में अपनों को खोने वालों के लिए यह दर्द और असहनीय तब हो जाता है जब सूर्य अस्त होने के बाद पोस्टमार्टम के लिए उन्हें सिस्टम की ठोकरें खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। अपने प्रिय की मृत्यु का दर्द वही जानता है, जिसने यह आघात सहा है। किसी घटना, दुर्घटना या आपराधिक वारदात में अपनों को खोने वालों के लिए यह दर्द और असहनीय तब हो जाता है, जब सूर्य अस्त होने के बाद पोस्टमार्टम के लिए उन्हें सिस्टम की ठोकरें खाने के लिए मजबूर होना पड़ता है। जिसकी पहुंच है, वह सिफारिश के लिए दौड़ता है। जिसकी नहीं है, उसकी पथराई आंखें रात भर इंतजार करती हैैं। लेकिन, अब सूरज डूबने पर व्यवस्था की ठोकरें नहीं लगेंगी।
तत्काल प्रभाव से लागू हुआ आदेश
सूर्य अस्त होने के बाद भी पोस्टमार्टम किए जाने का आदेश लागू हो गया। प्रिय को खोने का असहनीय दर्द झेलने वाले तीन परिवारों को चक्कर लगाने के उस दर्द से मुक्ति मिल गई, जो अंग्रेजों की देन थी। तीनों मामलों में सूरज डूबने के बाद पोस्टमार्टम हुआ और स्वजन पार्थिव देह रात में ही घर ले जा सके।
पहले दिन सूर्यास्त के बाद हुए तीन पोस्टमार्ट
आदेश लागू होने के बाद पहले दिन कुल आठ पोस्टमार्टम हुए, पांच सूर्यास्त के पहले और तीन बाद में। सूर्यास्त के बाद पहला पोस्टमार्टम कुशीनगर के अहिरौली थाने के परतावल निवासी शिवकुमार की 17 वर्षीया बेटी राधिका के शव का हुआ। पुत्री की मौत से टूटे परिवार को सूर्यास्त के बाद की व्यवस्थागत दिक्कतें नहीं झेलनी पड़ी। दूसरा पोस्टमार्टम कैंपियरगंज के रामू की 26 वर्षीया पत्नी श्रीकांति के शव का हुआ, जिनकी मृत्यु जहरीला पदार्थ खाने से हुई। तीसरा पोस्टमार्टम महराजगंज के पुरंदरपुर थाने के भनिकौर निवासी 75 वर्षीय सोमनाथ पाण्डेय का हुआ।
रात भर करते रहे इंतजार
दो दिन पूर्व झंगहा के 18 वर्षीय अभिषेक की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई थी। स्वजन हत्या का आरोप लगा रहे थे, लेकिन पुलिस मानने को तैयार नहीं थी। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। कागजी प्रक्रिया पूरी करने में सूर्य अस्त हो गया। पुत्र की मौत का असहनीय दर्द झेल रहे परिवार को रात भर प्रतीक्षा करनी पड़ी। दूसरे दिन पोस्टमार्टम के बाद स्वजन उसका शव घर ले जा पाए। तब तक दोपहर हो गई थी। जिले में रोज दो-तीन परिवार इस दर्द से गुजरते थे। अब उन्हें कम से कम इस दर्द से नहीं गुजरना होगा।