Move to Jagran APP

अजगरों को भा रहे गोरखपुर के दलदले दयार

वन विभाग के जानकारों का मानना है कि अजगर दलदली भूमि तालाब नाला व नदी के किनारे रहने वाला सर्प है। इसकी वजह यह है कि इसके किनारे अजगर को पर्याप्त मात्रा में भोजन मिल जाता है। दलदली अथवा आद्र्र भूमि (वेटलैंड) पर पक्षी आकर ठहरते हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Thu, 27 Jan 2022 02:16 PM (IST)Updated: Thu, 27 Jan 2022 02:16 PM (IST)
अजगरों को भा रहे गोरखपुर के दलदले दयार
अजगरों को भा रहे गोरखपुर के दलदले दयार। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, जितेंद्र पांडेय। गोरखपुर का दक्षिणांचल अजगरों का बसेरा है। इस क्षेत्र में 17 से 18 फीट के अजगर सामान्य रूप से पाए जाते हैं। पिछले दो वर्षों में करीब तीन सौ अजगर को वन विभाग रेस्क्यू कर चुका है। अजगर हमें सिर्फ डराता ही नहीं है, बल्कि मजबूत पर्यावरण का संदेश भी देता है। इसकी वजह है अजगर दलदली भूमि, तालाब, नाला, नदी के किनारे रहते हैं और जहां यह सब होगा, वहां जनजीवन बेहतर होगा। अन्न का भंडार होगा।

prime article banner

दलदली भूमि में रहते हैं अजगर

वन विभाग के जानकारों का मानना है कि अजगर दलदली भूमि, तालाब, नाला व नदी के किनारे रहने वाला सर्प है। इसकी वजह यह है कि इसके किनारे अजगर को पर्याप्त मात्रा में भोजन मिल जाता है। दलदली अथवा आद्र्र भूमि (वेटलैंड) पर पक्षी आकर ठहरते हैं। वह आद्र्रभूमि के पास की झाडिय़ों में अपना अंडा भी देते और अजगर यहां झाडिय़ों में रहकर आसानी से पक्षियों का शिकार करता है और उनके अंडों को खा जाता है।

खेतों में रहने वाले चूहों का करते हैं शिकार

इतना ही नहीं वह आद्रभूमि के पास वाले खेतों में रहने वाले मेढक, चूहों को भी खा जाता है। यही वजह है कि आद्र्रभूमि, तालाब आदि के किनारे वाले खेतों में गेहूं का उत्पादन अधिक होता है। जिला कृषि रक्षा अधिकारी डा. संजय बताते हैं कि माना जाता है कि खेतों में पैदा होने से लेकर घर लाने तक में चूहे करीब 10 फीसद अनाज खा जाते हैं, लेकिन गोरखपुर में अजगर के चलते चूहे गेहूं को बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। बता दें कि जिले में छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 2308 आद्र्रभूमि चिन्हित की गई है और गोरखपुर प्रदेश के पांच सर्वाधिक गेहूं उत्पादन करने वाले जिलों में शामिल है।

यह है आद्र्रभूमि का महत्व

आद्र्रभूमि पानी को सहेज कर रखती है। बाढ़ के दौरान आद्र्रभूमि पानी के स्तर को कम बनाए रखने में सहायक होती है। इसमें मौजूद तलछट और पोषक तत्वों को नदी में सीधे जाने से रोकती है। इससे झील, तालाब, नदी में पानी की गुणवत्ता बनी रहती है। इसका लाभ वहां रहने वाले जीवों को मिलता है। खेतों की उत्पादकता बेहतर होती है।

विषैले नहीं होते हैं अजगर

प्रभागीय वना‍धिकारी विकास कुमार यादव कहते हैं कि अजगर विषैला नहीं होता है। यह बेहद सुस्त किस्म का सर्प है। ऐसे में यह वहां रहना पसंद करता है, जहां इसे आसानी से भोजन मिल जाए। जिले में दलदली, आद्र्रभूमि, नमीयुक्त भूमि की संख्या अधिक है। अजगर को इसके आसपास ही रहना पसंद हैं। वह झाडिय़ों में रहने वाले जीवों को खाता है। यहां पिछले दो वर्षों में करीब तीन सौ अजगर को बचाया गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.