यूपी चुनाव 2022 : आजादी के बाद के मतदान की कहानी बुजुर्गों की जुबानी, मतदान के लिए अभी जवां है उत्साह
बढ़नी ब्लाक के बसहिया तोला रामगढ़ निवासी 101 वर्षीय जुगनू कहते हैं कि आजादी मिलने के बाद से मैंने अपने जीवन में कभी भी वोट डालने का मौका नहीं गंवाया और मैं इस बार भी मतदान करने में काफी खुशी मिलेगी।
गोरखपुर, कृष्ण पाल सिंह। वर्ष 1951 से लेकर अब तक प्रदेश में सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, शिक्षा, समानता, कृषि, सैन्य, खेल एवं तकनीकी क्षेत्र की विकास यात्रा में देश ने अपनी एक पहचान बनाई है। 71 वर्ष की इस विकास यात्रा में उत्तर प्रदेश देश में नई कीर्तिमान गढ़ा है। आज इसकी पहचान एक सशक्त प्रदेश के रूप में है। सिद्धार्थनगर जिले में उम्र का 100 बसंत देख चुके बुजुर्गों के शरीर में अब भले ताकत पहले जैसी न रही हो, लेकिन उनमें मतदान को लेकर उत्साह अब भी जवां है।
कभी नहीं गंवाया मतदान करने का मौका
बढ़नी ब्लाक के बसहिया तोला रामगढ़ निवासी 101 वर्षीय जुगनू कहते हैं कि आजादी मिलने के बाद से मैंने अपने जीवन में कभी भी वोट डालने का मौका नहीं गंवाया और मैं इस बार भी मतदान करने में काफी खुशी मिलेगी। हम अपने मताधिकार का प्रयोग पहले विधानसभा चुनाव से ही कर रहे हैं। पहले आम चुनाव को लेकर लोगों में काफी उत्सुकता थी। उस समय कांग्रेस सबसे मजबूत पार्टी थी। पहले चुनाव में कांग्रेस पार्टी की एकतरफा जीत हुई थी।
आजादी के समय देश में थी गरीबी, मुश्किल से जल पाते थे चूल्हे
देश आजाद होने के बाद तमाम प्रकार की समस्याएं बनी हुई थी। गरीबी बहुत थी। मुश्किल से हम लोगों के घर में चूल्हे जलते थे। दूर-दूर तक गांव में विद्यालय नहीं थे। जमीदारों के घर के ही लोग स्कूल जा पाते थे। स्वास्थ्य सुविधाएं न के बराबर थी। गांव-गांव हैजा महामारी फैलती थी। इलाज के अभाव में गांव में दर्जनों लोग मर जाते थे। गांव छोड़ कर लोगों को दूसरे गांव में शरण लेना पड़ता था। पुरुष व महिलाओं के बीच भेदभाव बहुत था। पहले लड़कियों स्कूल भेजना गलत समझा जाता था। आज पूरा प्रदेश खुशहाल है। बिना भेदभाव सबको शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं, बिजली, पानी, सिंचाई व अन्य सुविधाएं मिल रही हैं।
ससुराल में मिला पहले विधानसभा चुनाव में भाग लेने का सौभाग्य
बढ़नी ब्लाक की बरगदवा निवासी सुभावती देवी का कहना है कि पहले विधान सभा चुनाव से पहले मेरी शादी हो चुकी थी। पहले आम चुनाव में मतदान करने का सौभाग्य ससुराल बरगदवा में ही प्राप्त हुआ था। वह कहती हैं कि पहले और अब में बहुत फर्क है। पहले सब कुछ पुरुष ही होता था। आज घर की मुखिया महिलाएं लहलाती हैं। पहले सवर्ण घर की महिलाओं को पढ़ाना उचित नहीं समझा जाता था। आज अनुसूचित जनजाति लड़कियां पढ़ ही नहीं रही हैं, बल्कि सरकारी वहदे पर भी तैनात हो रही हैं। मैं ब्राम्हण परिवार से हूं। मुझे फिर भी अंगूठा लगाना पड़ता है। क्योंकि उस समय स्कूल भेजना गलत समझा जाता था, क्योंकि कोई स्कूल पास होता ही नहीं था और लड़कियां दूर जा भी नहीं सकती थीं। 80 के दशक के बाद यूपी में बदलाव शुरू हुए हैं। 2000 के बाद इस बदलाव में तेजी आई है।