एसएसपी कार्यालय में तैनात फालोवर की सिर कुचलकर की गई थी हत्या, जांच की फाइल बंद
अधिकारियों ने बहुत जल्दी हत्याकांड का पर्दाफाश करने का दावा किया था लेकिन पांच साल बीत गए हत्या की गुत्थी नहीं सुलझ पाई। इतना ही नहीं हत्या के रहस्य को उजागर करने में नाकाम पुलिस ने मुकदमे की फाइल भी बंद कर दी।
गोरखपुर, जेएनएन। 11/12 मार्च 2015 की दरमियानी रात थी। पुलिसकर्मी दीपक कुमार पांडेय दोस्तों के साथ खाना खाने निकले थे। 12 मार्च को सुबह शाहपुर इलाके में फातिमा अस्पताल के पास सड़क किनारे झाड़ी में उनका शव पाया गया। ईंट से सिर कुचल कर उनकी हत्या की गई थी। सहकर्मी की हत्या से पुलिस महकमे में खलबली मची थी। उस समय स्थानीय पुलिस और तत्कालीन अधिकारियों ने बहुत जल्दी हत्याकांड का पर्दाफाश करने का दावा किया था, लेकिन पांच साल बीत गए हत्या की गुत्थी नहीं सुलझ पाई। इतना ही नहीं हत्या के रहस्य को उजागर करने में नाकाम पुलिस ने कुछ माह बाद ही मुकदमे की फाइल भी बंद कर दी थी।
देवरिया शहर के रामनाथ देवरिया मोहल्ला निवासी दीपक, पुलिस विभाग में फालोवर थे। 2015 में वह गोरखपुर एसएसपी के कार्यालय में तैनात थे। यहां कैंट क्षेत्र के ङ्क्षसघडिय़ा मोहल्ले में किराए के मकान में परिवार के साथ रहते थे। 11 मार्च 2015 को परिवार के लोग बाहर गए थे, इसलिए उस रात उन्होंने दोस्तों के साथ बाहर खाना खाने की योजना बनाई। मोहल्ले के ही दो दोस्तों के साथ रात में आठ बजे के आसपास खाना खाने निकले थे। इसके बाद घर नहीं लौटे। दूसरे दिन शाहपुर इलाके में उनका शव मिला।
दोस्तों के बयान से गहराया हत्या का रहस्य
पुलिस ने छानबीन शुरू की तो उन दो दोस्तों के बारे में पता चला, जिनके साथ 11 मार्च 2015 की रात दीपक खाना खाने निकले थे। पूछताछ में दोस्तों ने बताया कि होटल में खाना खाने के बाद वह लोग स्टेशन पर पान खाने पहुंचे थे। पान की दुकान पर दो युवकों से विवाद हो गया था। दोस्तों का कहना था कि वही दोनों युवक दीपक को मारपीट कर घायल करने के बाद बाइक पर लादकर साथ ले गए थे। दोस्तों के इस बयान से दीपक हत्याकांड की गुत्थी सुलझने की बजाय और उलझ गई। दीपक के दोस्तों ने उन्हें अगवा किए जाने की सूचना भी पुलिस को नहीं दी थी और चुपचाप घर चले गए थे।
तफ्तीश की औपचारिकता पूरी कर बंद कर दी फाइल
दीपक के हत्यारों का पता लगाने के लिए पुलिस ने शुरुआती तेजी दिखाने के बाद मुकदमे की फाइल बंद कर दी थी। तब जबकि पुलिस में सिपाही के पद पर तैनात दीपक के भाई काफी भागदौड़ करते रहे, लेकिन पुलिस ने न तो उनके साथ खाना खाने निकले दोस्तों से ठीक से पूछताछ करने में रुचि दिखाई और न ही उनके बयान के आधार पर उन बाइक सवारों का पता लगाने का प्रयास किया, जो कथित रूप से मारपीट के बाद दीपक को अगवा कर ले गए थे। जिसकी वजह से दीपक हत्याकांड का पर्दाफाश नहीं हो पाया।