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लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती: जेपी के आंदोलन ने शुरू कराई थी यूनियन और रेल बोर्ड की वार्ता

लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने ही रेल यूनियनों को इतनी ताकत दिलाई थी कि वह पूरी ताकत से कर्मचारी हितों की मांगे रेल बोर्ड के सामने रख सकें। यूनियनों की मांगों पर बोर्ड को न केवल बैकफुट पर आना पड़ा बल्कि वार्ता का वह क्रम भी शुरू हुआ।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 11 Oct 2021 03:50 PM (IST)Updated: Mon, 11 Oct 2021 09:33 PM (IST)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण जयंती: जेपी के आंदोलन ने शुरू कराई थी यूनियन और रेल बोर्ड की वार्ता
सत्ता के खिलाफ संपूर्ण क्रांति की मशाल बनाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण। - फाइल फोटो

गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। Lok Nayak Jayaprakash Narayan Birth Anniversary छात्र आंदोलन की चिंगारी को सत्ता के खिलाफ संपूर्ण क्रांति की मशाल बनाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने ही रेल यूनियनों को इतनी ताकत दिलाई थी कि वह पूरी ताकत से कर्मचारी हितों की मांगे रेल बोर्ड के सामने रख सकें। यूनियनों की मांगों पर बोर्ड को न केवल बैकफुट पर आना पड़ा, बल्कि वार्ता का वह क्रम भी शुरू हुआ, जो यूनियन व प्रबंधन के बीच का गतिरोध दूर करता रहा है।

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आजादी मिलने तक स्वतंत्रता सेनानी रहे लोकनायक जयप्रकाश नारायण मजदूरों और कर्मचारियों की आवाज बन गए। आजीवन रेलकर्मियों के हितों की लड़ाई लड़ते रहे। तब आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआइआरएफ) रेलकर्मियों की आवाज हुआ करता था।

1952 में गोरखपुर में एआइआरएफ के अध्यक्ष चुने गए थे लोकनायक जयप्रकाश नारायण

वर्ष 1952 में गोरखपुर में ही एआइआरएफ का वार्षिक अधिवेशन हुआ। फेडरेशन के अध्यक्ष पद के लिए वरिष्ठ कांग्रेसी हुमायूं कबीर का नाम प्रस्तावित था। 1939 में बंगाल असेंबली के सदस्य और शिक्षाविद कबीर बड़े नेता माने जाते थे। उनका निर्वाचन लगभग तय था। कांग्रेस की सरकार में कांग्रेस का यूनियन लीडर, यह सवाल उठा। तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में रहे लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने दावेदारी की।

बंगाल असेंबली के सदस्य हुमायूं कबीर ने ले लिया था नाम वापस

एआइआरएफ के संयुक्त महामंत्री व एनई रेलवे मजदूर यूनियन के महामंत्री 104 वर्षीय केएल गुप्त वाकया याद करते हुए बताते हैं कि हुमायूं कबीर ने अपना नाम वापस ले लिया था। अध्यक्ष बनने के बाद जय प्रकाश ने न सिर्फ देशभर के रेलकर्मियों को एक किया बल्कि सरकार के खिलाफ खड़े भी हुए। 1970 में रेल रोको देश व्यापी रेल रोको आंदोलन चलाकर रेलवे बोर्ड को मजबूर कर दिया कि वह मान्यता प्राप्त रेलवे यूनियन से वार्ता करे।

दलीय राजनीति में आने के बाद अध्यक्ष पद से दिया इस्तीफा

यूनियन को दलगत राजनीति से दूर रखने के हितैषी लोकनायक ने दलीय राजनीति में आने के बाद अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया, लेकिन रेल यूनियन की आवाज बने रहे। केएल गुप्ता बताते हैं, कि जयप्रकाश के आंदोलन की ही देन है कि रेल मंत्रालय, बोर्ड और जोनल कार्यालय के उच्‍च अधिकारी भी मान्यता प्राप्त यूनियनों के सामने बैठकर न सिर्फ वार्ता करते हैं बल्कि टेबल पर ही समस्याओं का समाधान करते हैं। एआइआरएफ ने 11 अक्टूबर को जयप्रकाश के जन्म दिवस पर पटना में अधिवेशन भी आयोजित किया है। आठ अक्टूबर को उनकी पुण्यतिथि पर भी कार्यक्रम हुए थे।


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