विश्वविद्यालय में शोध पर्यवेक्षक की अर्हता के ये हैं नियम, अब भी अनसुलझे हैं कई प्रश्न
गोरखपुर विश्वविद्यालय ने शोध पर्यवेक्षक की अर्हता का नियम जारी कर दिया है। इसे लेकर शिक्षकों में असमंजस की स्थिति बनी हुई थी।
गोरखपुर, जेएनएन। शोध पर्यवेक्षक की अर्हता को लेकर जारी असमंजस की स्थिति के बीच गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने नियमों को स्पष्ट कर दिया है। यूजीसी शोध अध्यादेश 2016 का हवाला देते हुए विवि प्रशासन ने साफ किया है कि मोटे तौर पर विश्वविद्यालय अथवा संबद्ध महाविद्यालय का कोई भी नियमित शिक्षक जो पीएचडी उपाधिधारक हो और जिसके शोध पत्र (आचार्य के लिए न्यूनतम पांच, अन्य के लिए न्यूनतम दो) रेफरीड जर्नल में प्रकाशित हों, शोध पर्यवेक्षक के रूप में मान्यता प्राप्त कर सकता है।
इन दिनों विश्वविद्यालय में जारी शोध पंजीयन प्रक्रिया के तहत शोध पर्यवेक्षक नामित करने की प्रक्रिया चल रही है। इस बीच अनुदानित श्रेणी के जिन कॉलेजों में परास्नातक स्तर पर स्ववित्तपोषित कोर्स संचालित होता है, वहां के शिक्षकों को शोध गाइड बनने की अर्हता को लेकर सवाल उठने लगे। महाविद्यालय शिक्षक संघ लंबे समय से खुद को शोध कराने का अधिकार देने की मांग कर रहा था। हालांकि अब यह साफ हो गया है अनुदानित कॉलेजों के नियमित शिक्षक भी रिसर्च गाइड बन सकते हैं। विवि प्रशासन ने असमंजस की स्थिति समाप्त करने के लिए यूजीसी का पीएचडी अध्यादेश 2016 और विवि के शोध अध्यादेश 2018 की स्पष्ट व्याख्या की है। गुआक्टा पदाधिकारियों ने इस बाबत स्थिति स्पष्ट करने पर कुलपति के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया है।
अब भी अनसुलझे हैं कुछ प्रश्न
विश्वविद्यालय प्रशासन अब भले ही यूजीसी के नियमों की दुहाई दे रहा हो, लेकिन शोध पर्यवेक्षक की जो अर्हता उसकी अपनी परिनियमावली में लिखित है, उसके मुताबिक केवल विवि परिसर में कार्यरत शिक्षक एवं संबद्ध महाविद्यालयों के स्नातकोत्तर विभागों के पूर्णकालिक नियमित शिक्षक ही शोध पर्यवेक्षक बनने की अर्हता रखते हैं। ऐसे में जिन अनुदानित श्रेणी के कॉलेजों में स्नातकोत्तर विभाग स्ववित्तपोषित हैं, वहां शोध कैसे हो सकता है? हालांकि अब विश्वविद्यालय प्रशासन ने इस प्रश्न से किनारा कर लिया है।
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