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जगन्नाथपुरी से जुड़ी है मकर संक्रांति पर मगहर की कबीर स्‍थली में सद्गुरु को चढ़ने वाली खिचड़ी

संतकबीर नगर जिले के मगहर में कबीर स्थली पर मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। समरसता के लिए यहां खिचड़ी का विशेष महत्व है। संत कबीर के निर्वाण स्थली पर खिचड़ी चढ़ाने की कड़ी जगन्नाथपुरी से जुड़ी है।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Sun, 16 Jan 2022 03:03 PM (IST)Updated: Sun, 16 Jan 2022 03:03 PM (IST)
जगन्नाथपुरी से जुड़ी है मकर संक्रांति पर मगहर की कबीर स्‍थली में सद्गुरु को चढ़ने वाली खिचड़ी
मगहर का कबीर चौरा, जहां अगल-बगल हैंं मंदिर और मस्जिद। फाइल फोटो

गोरखपुर, अखिलेश्वर धर द्विवेदी। संतकबीर नगर जिले के मगहर में कबीर स्थली पर मकर संक्रांति के पर्व पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा सैकड़ों वर्ष पुरानी है। समरसता के लिए यहां खिचड़ी का विशेष महत्व है। संत कबीर के निर्वाण स्थली पर खिचड़ी चढ़ाने की कड़ी जगन्नाथपुरी से जुड़ी है। कबीर जीवनभर आडंबर के खिलाफ रहे। वह समय-समय पर छुआछूत दूर करने और समरसता फैलाने का संदेश व सहभाेज के माध्यम से दिया करते थे।

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रहीम और कबीर के साथ खाने से कर दिया था इन्‍कार

कबीर चौरा के महंत विचार दास का कहना है कि उड़ीसा स्थित जगन्नाथपुरी के समागम में कबीर दास और रहीम दास के पास बैठकर पंडिताें व अन्य लोगों ने भोजन करने से मना कर दिया था। जुलाहा व हरिजन को अलग बैठने पर जोर दिया गया। बताया जाता है कि वहां सभी को अपनी बगल में कबीर व रहीम दिखाई देने लगे। उसी समय से कबीर पंथ में खिचड़ी खाने व अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है।

समरसता व आरोग्य का प्रतीक

ज्योतिषाचार्य डा. सुजीत श्रीवास्तव का कहना है कि खिचड़ी का मुख्य तत्व चावल और जल चंद्रमा के प्रभाव में होता है। उड़द की दाल का संबंध शनिदेव, हल्दी गुरु ग्रह व हरी सब्जियों का संबंध बुध से माना जाता है। खिचड़ी में पड़ने वाले घी का संबंध सूर्य देव से होता है। इसी से शुक्र और मंगल भी प्रभावित होते हैं। यही वजह कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से आरोग्य में वृद्धि होती है। इसीलिए देश के हर हिस्‍से में इस पर्व को धूम-धाम से मनाया जाता है। यह बात अलग है कि अलग-अलग प्रदेश में इसे अलग-अलग नाम से मनाया जाता है।

बाल्यावस्था से खिचड़ी चढ़ाने का मिला सौभाग्य

कबीर चौरा के महंत विचार दास ने बताया कि कबीर चौरा पर खिचड़ी चढ़ाने की परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। पूर्व में जब वह 1968 में कक्षा पांच में पढ़ते थे तभी से माता-पिता के साथ आकर खिचड़ी चढ़ाते थे। इसी दौरान सद्गुरु की शरण लेकर उन्होंने सेवा का संकल्प लिया। गुरु का स्थान दुनिया में सबसे ऊपर होता है।


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