नहीं थम रहीं पराली जलाने की घटनाएं
प्रशासन के निर्देश के बाद भी खेतों में पराली जलाने से संबंधित घटनाएं नहीं रूक रही हैं। शाम होते ही हर तरफ आग शोले उठते दिखाई दे रहे हैं। जिनके भी खेत कंबाइन मशीन से कट चुके हैं। उनमें 70 से 80 फीसद जगहों पर अवशेष जलाए जा रहे हैं।
सिद्धार्थनगर : प्रशासन के निर्देश के बाद भी खेतों में पराली जलाने से संबंधित घटनाएं नहीं रूक रही हैं। शाम होते ही हर तरफ आग शोले उठते दिखाई दे रहे हैं। जिनके भी खेत कंबाइन मशीन से कट चुके हैं। उनमें 70 से 80 फीसद जगहों पर अवशेष जलाए जा रहे हैं।
पराली जलाने से न केवल खेतों में उर्वरा शक्ति पर असर पड़ता है, बल्कि आग की घटनाओं में भी बढ़ोतरी होती है। इधर कई जगहों पर आग ने सैकड़ों बीघा गेहूं की फसल को जला दिया। इसमें बहुत सारी घटनाएं पराली जलाने की वजह से हुई।
बुधवार की रात गोल्हौरा थाना क्षेत्र के खुरबंदी, पेंदानानकार, पचमोहनी, मटेसर नानकार, महुवा पाठक, करहीखाश, मऊनानकार आदि गांवों में पराली जल रहीं थी। आग की एक चिगारी कब किसी लिए घातक साबित हो जाए, इसकी फिक्र किसी को नहीं है। चूंकि इधर पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और प्रशासनिक अमला उसी में व्यस्त है, इसलिए पराली के मामलों की कोई निगरानी भी नहीं कर पा रहा है।
तहसीलदार अरविद कुमार ने कहा कि पराली की घटना ज्यादा हुई हैं। किसानों को जागरूक किया जा रहा है, इसके बाद भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अब सीधे कार्रवाई की जाएगी। जांच कराते हैं, जिनके भी खेत में अवशेष जले पाए गए, उनके खिलाफ जुर्माना वसूलने की कार्रवाई होगी। गेहूं खरीद में सरकार की दोहरी नीति से किसान परेशान
सिद्धार्थनगर : सहूलियत के नाम पर स्थानीय किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार की मंशा है कि सारे किसानों की उपज खरीदी जाए। बावजूद खरीदारी की स्थिति बेहद दयनीय है। एक अप्रैल से खरीद चल रही है। लेकिन भनवापुर ब्लाक क्षेत्र के अधिकतर केंद्र सन्नाटे में है।
खरीददारी को लेकर सबसे बड़ी समस्या है कि पंजीयन कराए गए जमीन का अंश निर्धारण। निर्धारण के आधार पर ही यह तय होता है कि किस किसान का कितना गेहूं खरीदा जायेगा। संयुक्त खाते में बहुत सारे किसान दर्ज होते हैं। जिनका अंश निर्धारण बहुत महत्वपूर्ण बिदु है। इस पर तहसील क्षेत्र के लेखपाल भी परेशान हैं। शायद यही वजह है कि अंश स्पष्ट न होने के कारण बेचे जाने वाले गेहूं की मात्रा निश्चित नहीं हो पा रही है। दूसरी समस्या यह है कि कुछ ऐसे खाताधारक हैं जिनकी मृत्यु हो चुकी है। और किसी कारणवश संपत्ति का स्थानांतरण उनके वारिसों को नहीं हो पाया। उनकी उपज भी नहीं बेंचे जाने की स्थिति में है। क्योंकि ऐसे लोगों का नाम खतौनी में दर्ज नहीं है। जिससे सत्यापन में दिक्कत आ रही है। गेहूं बिक्री की नीति बनाते समय खाद्य विभाग की वेबसाइट पर पंजीयन के समय किसान के साथ बटाईदार का भी विकल्प आता था, जिसका उद्देश्य था कि यदि कोई किसान किसी की जमीन पर बटाई के ढंग से खेती करता है तो उसकी भी उपज खरीदी जाए। इस बार ऐसा नहीं है। क्योंकि खतौनी में नाम होता नहीं है तो सत्यापन कैसे होगा। एडीएम सीताराम गुप्ता ने कहा कि बटाईदार का विकल्प है, परंतु खतौनी में नाम न होने के नाते इसका सत्यापन नहीं हो सकता इसलिए बटाईदार का कोई मतलब नहीं है।