वैश्विक फलक पर बिखेर रहे लोक संस्कृति की चमक
कुशीनगर के सुभाष चंद्र कुशवाहा समृद्धि व सम्मान का संदेश दे रहे हैं उनकी पहल पर लोक कला से जुड़े कलाकार विदेशों में भी अपनी कला का रंग बिखेर रहे हैं इस पहल से एक ओर जहां विलुप्त संस्कृति पुनर्जिवित हो रही है वहीं कलाकारों को रोजगार भी मिल रहा है।
कुशीनगर : काफी समय तक उपेक्षा की चादर में लिपटी रही लोक संस्कृति को मंच मिला तो वैश्विक फलक पर चमक बिखेरनी लगी है। सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी (एआरटीओ) व लेखक सुभाष चंद्र कुशवाहा ने इसे चमकाने में भूमिका निभाई। 15 वर्ष पहले उनके प्रयास से लोकरंग संस्था सांस्कृतिक चेतना का लोकरंग, लोक संस्कृति की समृद्धि और सम्मान का संवाहक बनकर मजबूती से खड़ी होने में सफल हो सकी। अब न्यूजर्सी, गुयाना, सूरीनाम, नीदरलैंड, मारीशस तक इसकी गूंज सुनाई दे रही है। नीदरलैंड के उट्रेच शहर में तो प्रतिवर्ष सितंबर में कई सालों से पूर्वाचल की लोक कलाओं का आयोजन हो रहा है।
कभी पूर्वाचल की पहचान रहीं लोक कलाएं मसलन भित्ति चित्र व लोक गायन फरुआही, पखावज जब उपेक्षित होने लगीं, देशज संस्कृति पर गंभीर संकट खड़ा होने लगा तो इसका दर्द फाजिलनगर विकास खंड के गांव जोगिया जनूबी पट्टी निवासी सुभाष चंद्र कुशवाहा ने महसूस किया। 2008 में उन्होंने इसको समृद्ध करने का संकल्प लिया और इसकी शुरुआत गांव से की। लोकरंग संस्था के बैनर तले गांव में आयोजन कर लोक कला को जीवंत करने का मंच तैयार किया। इस कार्य में उन्होंने कोई सरकारी मदद नहीं ली। लोकरंग के नाम से होने वाला सांस्कृतिक मेला दस दिन तक चलता है। इसमें फरुआही, हुड़का, पखावज आदि की प्रस्तुति होती है। मंच पर देश के बड़े साहित्यकार लोक संस्कृति को मजबूती देने पहुंचते हैं। धीरे-धीरे यह मंच लोक संस्कृति को जीवंत करने में कामयाब हुआ तो विदेशी कलाकार भी यहां पहुंचने लगे। इसका नतीजा यह रहा कि विदेश में भी लोक संस्कृति के संरक्षण व संवर्द्धन का कार्य शुरू हो गया है। भारत से विदेश गए गिरमिटिया समुदाय के कलाकारों ने भोजपुरी लोक संस्कृति का आदान-प्रदान करने में रुचि दिखाई है। नीदरलैंड के विश्व प्रसिद्ध सरनामी लोक कलाकार राजमोहन हरदिन वहां के उट्रेच शहर में प्रतिवर्ष लोकरंग का आयोजन कराते हैं। इसके लिए भारत के भी लोक कलाकार बुलाए जाते हैं। कला की मांग बढ़ी तो कलाकारों को सम्मान के साथ रोजगार भी मिलने लगा है। सैकड़ों की संख्या में लोक नृत्य की टीमें तैयार हो गई हैं। प्रति वर्ष डेढ़ सौ से अधिक लोक कलाकारों को देश- विदेश में मंच मिलता है।
लोकरंग सांस्कृतिक समिति के अध्यक्ष सुभाष चन्द्र कुशवाहा कहते हैं कि 'लोकरंग' के माध्यम से श्रमशील लोक संस्कृति को सम्मान और पूर्वांचल की सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने का कार्य किया गया है। लोक संस्कृति उतनी ही पुरानी है, जितनी हमारी सृष्टि। इसे समृद्ध करने का लगातार प्रयास किया जा रहा है।