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International Nurses Day: मिला भरपूर इलाज, सिस्टर ने रखा मां जैसा ख्याल Gorakhpur News

जिला अस्पताल में भर्ती पांच लावारिस मरीजों को कभी इलाज की दिक्कत हुई न ही दवा की। समय-समय पर भोजन पानी दवा सब मिलता है। सिस्टर (नर्स) मां जैसा ख्याल रखती हैं। समय-समय पर आकर वह तबीयत के बारे में पूछती हैं।

By Satish Chand ShuklaEdited By: Published: Wed, 12 May 2021 04:30 PM (IST)Updated: Wed, 12 May 2021 06:33 PM (IST)
International Nurses Day: मिला भरपूर इलाज, सिस्टर ने रखा मां जैसा ख्याल Gorakhpur News
जिला अस्पताल में ड्यूटी पर स्‍टाफ नर्स स्मिता आशू, जागरण।

गोरखपुर, जेएनएन। नेपाल के दीपक हों या जंगल धूसड़ के शंकर, इनके जैसे कई और भी हैं, जिन्हें यह नहीं पता कि वह अस्पताल कैसे पहुंचे। सरकारी दस्तावेज में वह भले ही लावारिश हों, लेकिन उनकी  जैसी सेवा हो रही है वैसी शायद उनके अपने भी नहीं करते। जिला अस्पताल में भर्ती पांच लावारिस मरीजों को कभी इलाज की दिक्कत हुई न ही दवा की। समय-समय पर भोजन, पानी, दवा सब मिलता है। सिस्टर (नर्स) मां जैसा ख्याल रखती हैं। समय-समय पर आकर वह तबीयत के बारे में पूछती हैं। वे नहीं होतीं तो बचना मुश्किल था।

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समय-समय पर आकर पूछती हैं तबीयत

चितवन निवासी दीपक, जंगल धूसड़ के रहने वाले शंकर, तुर्कमानपुर के विश्वनाथ के अलावा अन्नकून व नरेंद्र जिला अस्पताल के टिटनेस वार्ड में भर्ती हैं। किसी को पड़ोसी तो किसी को रिक्शे वालों ने लाकर भर्ती करा दिया। दीपक का कहना है कि मुझे तो होश भी नहीं था। विश्वनाथ दोनों आंखों से देख नहीं सकते। इमरान, अन्नकून व शंकर बेड से उठने की स्थिति में नहीं हैं। उनका कहना है कि सिस्टर ने डाक्टर को बुलाकर तत्काल इलाज शुरू कराया। समय-समय पर आकर देखती रहती हैं और हालचाल पूछती रहती हैं। जिस ढंग से उन्होंने सेवा की, उसे हम लोग  कभी भूल नहीं पाएंगे। सिर्फ एक मां ही इस तरह से देखभाल कर सकती है।

जिसका कोई नहीं उसका विशेष ध्‍यान

जिला अस्पताल स्टाफ नर्स स्मिता आशू का कहना है कि मरीजों की देखभाल करना मेरा धर्म है। मरीज के साथ कोई हो या न हो, हम पूरी तरह उसका ख्याल रखती हूं। जिसके साथ कोई नहीं होता उसका विशेष ध्यान रखा जाता है। समय-समय पर दवा देना, भोजन-पानी के बारे में पूछना मेरी जिम्मेदारी है। जिला अस्पताल में स्टाफ नर्स लल्ली शुक्ला का कहना है कि लावारिस मरीजों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। क्योंकि उनके पास दवा व भोजन देने वाला कोई नहीं होता है। उन्हें कोई कमी महसूस न हो, इसलिए दिन में कई बार उनके पास जाकर अपनों जैसी बात करनी पड़ती है। ताकि उन्हें लगे कि कोई अपना उनके पास है।


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