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नेपाल के रास्ते चीन भेजी जा रही कश्मीर के चीरू की खाल

लेह-लद्दाख और कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों पर पाए जाने वाले चीरू की सोनौली बार्डर से नेपाल भेजा जा रहा है। उसके बाद वहां से चीन भेजा जा रहा है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 28 Jan 2019 01:25 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jan 2019 01:25 PM (IST)
नेपाल के रास्ते चीन भेजी जा रही कश्मीर के चीरू की खाल
नेपाल के रास्ते चीन भेजी जा रही कश्मीर के चीरू की खाल

गोरखपुर, जेएनएन। लेह-लद्दाख और कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों पर पाए जाने वाले चीरू (तिब्बतन ऐन्टलोप) नाम के संरक्षित वन्यजीव की खाल नेपाल सीमा के रास्ते चीन भेजी जा रही है। खाल ले जाने के लिए तस्कर महराजगंज जिले की सोनौली सीमा का प्रयोग कर रहे हैं। सुरक्षा एजेंसियों से मिले इनपुट के बाद वन विभाग सतर्क हो गया है। एसएसबी व वन विभाग की संयुक्त टीम तस्करों के नेटवर्क को ध्वस्त करने में जुटी है। चीन में चीरू की खाल व ऊन से बनी एक शाल की कीमत करीब एक लाख रुपये है। हिरण की तरह दिखने वाला यह जानवर मुख्यत: घास व पेड़-पौधों की पत्तियों को खाकर जीवित रहता है।

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पांच चीरू की खाल से बनाते हैं एक शाल

चीरू प्राय: माइनस 40-50 डिग्री सेल्सियस के वातावरण में रहता है। एक शाल बनाने में पांच चीरू के खाल की आवश्यकता पड़ती है। शहतूश शाल के रूप में पूरी दुनिया में प्रसिद्ध इस बेशकीमती शाल को बेचना और घर में रखना दोनों भारत में 1975 से प्रतिबंधित है।

चीरू की खाल को पहचानना मुश्किल

चीरू की खाल से बनी शाल को पहचानना बड़ी समस्या है। कई बार तस्कर आसानी से खाल को सीमा पार लेकर चले आते हैं , लेकिन उसकी पहचान भी नहीं हो पाती । तस्करी की संभावना को देखते हुए नेपाल से जुड़े महराजगंज, बलरामपुर व बहराइच के वनकर्मियों व एसएसबी (सशस्त्र सीमा बल) जवानों को बीते चार जनवरी को प्रशिक्षण देकर चीरू के बारे में जानकारी दी गई।

आर्टिफिशियल खाल भी बाजार में चीरू को मारने पर प्रतिबंध लगने के बाद आर्टिफिशियल खाल का भी प्रचलन बढ़ा है। दो माह पूर्व सोनौली सीमा पर एक व्यक्ति को खाल के साथ एसएसबी जवानों ने पकड़ा था। उस समय सुरक्षा एजेंसियों ने चीरू खाल की संभावना जताते हुए वनकर्मियों को जांच के लिए बुलाया गया,लेकिन जांच के बाद खाल के आर्टिफिशियल होने की पुष्टि हुई।

वनकर्मियों को किया गया प्रशिक्षित

सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के डीएफओ मनीष ¨सह का कहना है कि कश्मीर की ऊंची पहाड़ियों पर मिलने के चलते इस क्षेत्र के लोग चीरू के बारे में अनभिज्ञ हैं। तस्कर अपने मंसूबे में कामयाब न हो पाएं, इसके लिए वनकर्मियों को प्रशिक्षित किया गया है। एसएसबी से समन्वय स्थापित कर तस्करों पर अंकुश लगाया जा रहा है।


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