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गुलाम मानसिकता भारतीय लोक का सबसे बड़ा संकट : प्रो. दिनेश

कुशीनगर के जनूबी पट्टी गांव में आयोजित लोकरंग में वक्ताओं ने कहा कि देश में ज्ञानी का होना चाहिए सम्मान ऊर्जा के लिए साहित्य को लोक की ओर जाना होगा लोकरंग सांस्कृतिक आदान-प्रदान का बेहतर मंच लोक को प्रशिक्षित करने का कार्य लोक के ही जिम्मे छोड़ देना चाहिए।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 04:00 AM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 04:00 AM (IST)
गुलाम मानसिकता भारतीय लोक का सबसे बड़ा संकट : प्रो. दिनेश
गुलाम मानसिकता भारतीय लोक का सबसे बड़ा संकट : प्रो. दिनेश

कुशीनगर: लोकरंग 2021 के दूसरे दिन रविवार को लोक का संकट और लोक साहित्य विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि प्रो. दिनेश कुशवाहा ने कहा कि हर जगह के लोक में विविध वर्णीय संकट है। लोक और वेद के बीच अंतर्विरोध और संघर्ष पुराना है। भारतीय लोक का सबसे बड़ा संकट गुलाम मानसिकता है। यह समय नैराश्य से भरा हुआ है। लोक को प्रशिक्षित करने का कार्य लोक के ही जिम्मे छोड़ दिया गया है।

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उन्होंने कहा कि भक्तिकाल में लोक चेतना को प्रशिक्षित करने का कार्य किया गया। आज जनमत का निर्माण लोक संस्कृति नहीं, शास्त्र कर रहे हैं। शास्त्रों ने जब-जब लोक को सुप्रीम बनाया तब-तब लोक को संकट में डाला है।

हिरावल पटना की टीम के गायन से गोष्ठी शुरू हुई। संभावना कला मंच के राजकुमार सिंह ने कहा कि लोक कला में आम जीवन के दुख को लाने की जरूरत है। सामाजिक कार्यकर्ता विद्याभूषण रावत ने कहा कि लोग किसी भी भय से लड़ने को तैयार हैं। किसानों ने पूंजीवाद को समझ लिया। पुरोहितवाद को भी समझना होगा। पुरातन पंथी, शक्तियां, लोक के नाम पर ही घुसपैठ बना रही हैं। मनोज कुमार सिंह ने कहा कि लोक साहित्य में आज के दौर के भीषण संकट को किस तरह दर्ज किया जा रहा है, उसे देखने की जरूरत है। देश का गरीब, मजदूर अपने दुख को अब नए तरीके से अभिव्यक्त कर रहा है। एक पत्रिका की कार्यकारी संपादक अपर्णा ने कहा कि लोक संस्कृति समता, न्याय की बात करता है। लोक संस्कृति के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता लोक कलाओं के विलुप्त होने की चुनौतियों की चर्चा करते हुए कहा कि साहित्य को ऊर्जा लेने के लिए लोक की तरफ जाना होगा। सांस्कृतिक कार्यकर्ता जेएन साह ने लोक साहित्य व लोक संस्कृति के नाम पर फूहड़पन की स्वीकृति पर चिता जताई। राजस्थान से आए लोक कलाकार इमामुद्दीन ने लोकरंग के आयोजन को सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मंच बताया।

राजनीतिक कार्यकर्ता राजेश साहनी ने कहा कि आज देश के बड़े हिस्से को उत्पादन प्रक्रिया से अलग कर देने की कोशिश की जा रही है। ऐसे में हमें लोक में सपना जगाने की कोशिश करनी चाहिए। कथाकार मृदुला शुक्ल ने कहा कि ताकतवर ने लोक के लिए संकट पैदा किया है। कहा कि स्त्रियों के लिखे को लोक साहित्य माना जाना चाहिए। संचालन रामजी यादव ने किया। सुभाष चंद्र कुशवाहा ने आगंतुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।


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