कदम-कदम पर राम फिर भी नहीं मिली पहचान, जानें क्या है कारण
श्रीराम सर्किट योजना शुरू की गई थी। ताकि श्रीराम से जुड़े धार्मिक स्थलों को जोड़ा जा सके। बावजूद इसके अभी तक यह हसरत अधूरी है।
By Edited By: Published: Sat, 27 Apr 2019 04:30 PM (IST)Updated: Sun, 28 Apr 2019 02:57 PM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। स्वागत से लेकर अंतिम यात्रा तक राम ही राम है। राम की मर्यादा राम से भी ऊंची है। यह भी सत्य है कि राम-पथ पर राम ही चले थे। पूरी दुनियां में राम विख्यात हैं। दो अक्षर का यह दिव्य नाम संतों, ऋषियों की दृष्टि में रामबाण है। राम एक ऐसा नाम है जिसमें चरित्र है, न्याय है और मानव जीवन का संपूर्ण संघर्ष। निर्धन, शोषित, असहाय, लाचार, शापित, वंचित सबके हैं राम। उनका राम-पथ सामाजिकता व लोकतंत्र का असली दर्शन है।
आइए, अब हम चलते हैं उस त्रेताकाल में जब भगवान राम का उद्भव हुआ था। अवध क्षेत्र का यह अंचल मर्हिष वशिष्ठ की तपस्थली हुआ करती थी। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के महल में कुलदीपक का इंतजार था। मुनियों के सुझाव पर इस अंचल के घोर जंगल क्षेत्र मख भूमि में पुत्रकामेष्टि यज्ञ हुआ। ऋषि-मुनियों के अलावा देवता भी पधारे। इसी धरा का नाम वशिष्ठी और बाद में बस्ती में हुआ। मखौड़ा में यज्ञ के बाद अयोध्या राजमहल में बधाइयां बजीं। नारायण खुद राम के रूप में अवतरित हुए। अवध क्षेत्र होने के नाते राम की पगधूलि गुरु की नगरी में भी खूब उड़ी। बस्ती जनपद में राम से जुड़ी तमाम पौराणिक स्मृतियां है। अफसोस हमारी यह पहचान राष्ट्रीय फलक पर नहीं पहुंच पाई है।
पर्यटक स्थल बनने के इंतजार में मखौड़ा राम जन्म का निमित्त मखौड़ा तुलसीदास के मानस में मख धाम के नाम से आया है। बस्ती जिले के परशुरामपुर ब्लाक से तीन किमी की दूरी पर मखौड़ा धाम है। यहां से पश्चिम-दक्षिण दिशा में 14 किमी पर अयोध्या है। केंद्र की भाजपा सरकार ने इस स्थल को श्रीराम सर्किट परियोजना में शामिल किया है। अभी भी इसका समुचित विकास नहीं हो सका है। रामजानकी और शिवजी का मंदिर तथा यज्ञशाला पुराना है। नई कवायद में चहारदीवारी, गेट और कथा स्थल का निर्माण हुआ है। यहां कभी अविरल रही मनोरमा अब सिसक रही है। विलुप्त हो गई है रामरेखा जिले के छावनी क्षेत्र में रामरेखा नदी कभी हुआ करती थी।
अब विलुप्त होने के कगार पर है। जनश्रुतियों के अनुसार भगवान राम और माता जानकी जनकपुर से अयोध्या जाते समय यहां रुके थे। माता सीता को प्यास लगी तो राम ने अपने बाण से एक रेखा खींची, जिससे पानी का प्रवाह होने लगा। माता की प्यास बुझी और जलस्त्रोत स्थानीय लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। तट पर एक पुराना मंदिर है। विकसित नहीं हुआ हनुमान बाग बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लाक क्षेत्र में हनुमान बाग चकोही है।
यहां चौरासी कोसी परिक्रमा के तीर्थयात्री रात्रि विश्राम करते है। कहा जाता है कि त्रेताकाल में यह अयोध्या का उत्तरी प्रवेश द्वार था। हनुमान जी यहां रहकर रामनगरी की सुरक्षा करते थे। इस स्थल पर पर्यटन की दृष्टि से कोई विकास नहीं हो सका। श्रृंगीनारी में नाम मात्र का हुआ विकास बस्ती जिले के ही परशुरामपुर ब्लाक क्षेत्र में ही श्रृंगीनारी स्थल है।
मान्यता है कि त्रेताकाल में ऋषि श्रृंगी की धर्मपत्नी देवी शांता ने यहां प्रवास किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवी स्वयं प्रकट हुईं थीं। इसी से यह स्थल श्रृंगीनारी कहलाया। यहां पुराना देवी मंदिर है। क्षेत्र के नव विवाहित जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं तो माताएं अपनी संतान का मुंडन यहीं कराती हैं। यहां प्रस्तावित धर्मशाला का निर्माण अब तक नहीं हुआ है। लालगंज का मोक्षेश्वर धाम जिले के लालगंज बाजार के दक्षिणी क्षोर पर मनवर और कुआनो नदी का संगम होता है। इस तट मोक्षेश्वर भगवान का मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान राम और माता सीता ने प्रवास किया था। तभी चैत्र मास में यहां मेले के आयोजन की परंपरा सदियों पुरानी है। चैत्र पूíणमा के दिन यहां आज भी बाटी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
मेले के बाद यह स्थल वीरान हो जाता है। पचवस ताल के गऊ घाट पर लगता है मेला हर्रैया तहसील का पचवस गांव वैसे तो सैनिक गांव के रूप में जाना जाता है लेकिन जनश्रुति है कि त्रेतायुग में यहां के विशाल ताल के किनारे गऊ घाट में भगवान राम ने स्नान कर उन पांच ऋषियों का उद्धार किया था जो किसी शाप के चलते अश्वरूप में मूíतवत हो गए थे। उस दिन की याद में यहां पौष पूíणमा को मेला लगता है। आज भी पचवस ताल का क्षेत्रफल नौ वर्ग किलोमीटर है। अकारण नहीं है हर्रैया का नाम तहसील मुख्यालय हर्रैया का प्राचीन नाम हरिरहिया है। जो बाद में हर्रैया हो गया। स्थानीय जन इस बात को आज भी गर्व से कहते हैं कि हमारे यहां से ही होकर हरि अर्थात विष्णु अवतार भगवान राम गुजरे थे इसलिए इस स्थान का नाम हरिरहिया पड़ा था।
आइए, अब हम चलते हैं उस त्रेताकाल में जब भगवान राम का उद्भव हुआ था। अवध क्षेत्र का यह अंचल मर्हिष वशिष्ठ की तपस्थली हुआ करती थी। अयोध्या नरेश राजा दशरथ के महल में कुलदीपक का इंतजार था। मुनियों के सुझाव पर इस अंचल के घोर जंगल क्षेत्र मख भूमि में पुत्रकामेष्टि यज्ञ हुआ। ऋषि-मुनियों के अलावा देवता भी पधारे। इसी धरा का नाम वशिष्ठी और बाद में बस्ती में हुआ। मखौड़ा में यज्ञ के बाद अयोध्या राजमहल में बधाइयां बजीं। नारायण खुद राम के रूप में अवतरित हुए। अवध क्षेत्र होने के नाते राम की पगधूलि गुरु की नगरी में भी खूब उड़ी। बस्ती जनपद में राम से जुड़ी तमाम पौराणिक स्मृतियां है। अफसोस हमारी यह पहचान राष्ट्रीय फलक पर नहीं पहुंच पाई है।
पर्यटक स्थल बनने के इंतजार में मखौड़ा राम जन्म का निमित्त मखौड़ा तुलसीदास के मानस में मख धाम के नाम से आया है। बस्ती जिले के परशुरामपुर ब्लाक से तीन किमी की दूरी पर मखौड़ा धाम है। यहां से पश्चिम-दक्षिण दिशा में 14 किमी पर अयोध्या है। केंद्र की भाजपा सरकार ने इस स्थल को श्रीराम सर्किट परियोजना में शामिल किया है। अभी भी इसका समुचित विकास नहीं हो सका है। रामजानकी और शिवजी का मंदिर तथा यज्ञशाला पुराना है। नई कवायद में चहारदीवारी, गेट और कथा स्थल का निर्माण हुआ है। यहां कभी अविरल रही मनोरमा अब सिसक रही है। विलुप्त हो गई है रामरेखा जिले के छावनी क्षेत्र में रामरेखा नदी कभी हुआ करती थी।
अब विलुप्त होने के कगार पर है। जनश्रुतियों के अनुसार भगवान राम और माता जानकी जनकपुर से अयोध्या जाते समय यहां रुके थे। माता सीता को प्यास लगी तो राम ने अपने बाण से एक रेखा खींची, जिससे पानी का प्रवाह होने लगा। माता की प्यास बुझी और जलस्त्रोत स्थानीय लोगों के लिए वरदान साबित हुआ। तट पर एक पुराना मंदिर है। विकसित नहीं हुआ हनुमान बाग बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लाक क्षेत्र में हनुमान बाग चकोही है।
यहां चौरासी कोसी परिक्रमा के तीर्थयात्री रात्रि विश्राम करते है। कहा जाता है कि त्रेताकाल में यह अयोध्या का उत्तरी प्रवेश द्वार था। हनुमान जी यहां रहकर रामनगरी की सुरक्षा करते थे। इस स्थल पर पर्यटन की दृष्टि से कोई विकास नहीं हो सका। श्रृंगीनारी में नाम मात्र का हुआ विकास बस्ती जिले के ही परशुरामपुर ब्लाक क्षेत्र में ही श्रृंगीनारी स्थल है।
मान्यता है कि त्रेताकाल में ऋषि श्रृंगी की धर्मपत्नी देवी शांता ने यहां प्रवास किया था। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कर देवी स्वयं प्रकट हुईं थीं। इसी से यह स्थल श्रृंगीनारी कहलाया। यहां पुराना देवी मंदिर है। क्षेत्र के नव विवाहित जोड़े यहां आशीर्वाद लेने आते हैं तो माताएं अपनी संतान का मुंडन यहीं कराती हैं। यहां प्रस्तावित धर्मशाला का निर्माण अब तक नहीं हुआ है। लालगंज का मोक्षेश्वर धाम जिले के लालगंज बाजार के दक्षिणी क्षोर पर मनवर और कुआनो नदी का संगम होता है। इस तट मोक्षेश्वर भगवान का मंदिर है। मान्यता है कि यहां भगवान राम और माता सीता ने प्रवास किया था। तभी चैत्र मास में यहां मेले के आयोजन की परंपरा सदियों पुरानी है। चैत्र पूíणमा के दिन यहां आज भी बाटी-चोखा का प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
मेले के बाद यह स्थल वीरान हो जाता है। पचवस ताल के गऊ घाट पर लगता है मेला हर्रैया तहसील का पचवस गांव वैसे तो सैनिक गांव के रूप में जाना जाता है लेकिन जनश्रुति है कि त्रेतायुग में यहां के विशाल ताल के किनारे गऊ घाट में भगवान राम ने स्नान कर उन पांच ऋषियों का उद्धार किया था जो किसी शाप के चलते अश्वरूप में मूíतवत हो गए थे। उस दिन की याद में यहां पौष पूíणमा को मेला लगता है। आज भी पचवस ताल का क्षेत्रफल नौ वर्ग किलोमीटर है। अकारण नहीं है हर्रैया का नाम तहसील मुख्यालय हर्रैया का प्राचीन नाम हरिरहिया है। जो बाद में हर्रैया हो गया। स्थानीय जन इस बात को आज भी गर्व से कहते हैं कि हमारे यहां से ही होकर हरि अर्थात विष्णु अवतार भगवान राम गुजरे थे इसलिए इस स्थान का नाम हरिरहिया पड़ा था।
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