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आत्मनिर्भरता की रोशनी से छंट रहा बेरोजगारी का अंधेरा Gorakhpur News

खजनी विकास खंड क्षेत्र के खुटभार की संगीता देवी ने गांव की दस से अधिक महिलाओं का समूह बनाया। झालर बनाने का प्रशिक्षण दिया। ये महिलाएं अब दीपावली के लिए झालर तैयार कर रही हैैं। इनमें तमाम महिलाएं ऐसी हैैं जिनके पति पेंट-पालिश कारीगर या कारपेंटर थे।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 04:20 PM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 07:03 PM (IST)
आत्मनिर्भरता की रोशनी से छंट रहा बेरोजगारी का अंधेरा Gorakhpur News
ब्रह्मपुर गांव में मोमबत्तियां तैयार करतीं गांव की महिलाएं।

जितेंद्र पांडेय, गोरखपुर। कोरोना संक्रमण काल में वोकल फार लोकल का नारा गूंजा तो आत्मनिर्भरता के प्रयास भी बढ़े। सभी का समन्वित प्रयास रहा और चीन के उत्पादों से पटे बाजार में स्वदेशी सामान की रंगत निखरने लगी। ऐसा ही प्रयास ब्रह्मपुर व खजनी की कुछ महिलाओं ने भी किया। दीपावली को लक्ष्य बनाकर एलईडी झालर और मोमबत्ती बनानी शुरू की। आत्मनिर्भरता की यह रोशनी दीपावली को चमकाने के लिए तैयार है ही, कोरोना संक्रमण काल से उपजे बेरोजगारी के अंधेरे को भी दूर कर रही है।

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झालर बनाकर चमक रहीं खजनी की महिलाएं

खजनी विकास खंड क्षेत्र के खुटभार की संगीता देवी ने गांव की दस से अधिक महिलाओं का समूह बनाया। झालर बनाने का प्रशिक्षण दिया। ये महिलाएं अब दीपावली के लिए झालर तैयार कर रही हैैं। इनमें तमाम महिलाएं ऐसी हैैं, जिनके पति पेंट-पालिश कारीगर या कारपेंटर थे। संक्रमण काल में काम-धंधा बंद होने पर घर लौट आए। यहां काम नहीं मिला। बच्चों की स्कूल फीस तक जमा करने में मुश्किल थी। ऐेसे में महिलाओं ने संगीता से प्रशिक्षण लेकर झालर और बल्ब बनाना शुरू किया। हर महिला एक हजार से अधिक झालर बेच चुकी है। इससे हुई आय से बच्चों के स्कूल की फीस भरी है। संगीता बताती हैं, 75 रुपये की लागत वाली झालर 100 रुपये में बिक जाती है। इसकी मरम्मत भी आसानी से हो जाती है।

ब्रह्मïपुर की मोमबत्ती से होगा उजाला

ब्रह्मपुर गांव की छह से अधिक महिलाएं समूह से जुड़ीं और गांव में मोमबत्ती बनाने का उद्योग लगा लिया। 29 वर्षीया रीना शर्मा, 21 वर्षीया रीना मद्धेशिया, 27 वर्षीया नजमा, 30 वर्षीया पूजा, 28 वर्षीया सुमन उपाध्याय और 23 वर्षीया गुडिय़ा बीस दिनों में मोमबत्ती के 25 हजार से अधिक पैकेट तैयार कर चुकी हैैं। इसमें परिवार के लोग भी सहयोग कर रहे हैैं। ये मोमबत्तियां जितना अधिक बिकेंगी, लोग चीनी उत्पाद का प्रयोग उतना ही कम करेंगे। समूह की सदस्य रीना शर्मा कहती है कि समूह से जुड़ी महिलाएं बहुत पढ़ी-लिखी नहीं हैं। कोई 10वीं पास है तो कोई आठवीं तक पढ़ा है। इन्होंने ऐसे वक्त में काम शुरू किया, जब घर में एक-एक रुपये महत्वपूर्ण थे। इनके स्वजन दिल्ली, मुंबई आदि जगहों पर काम करते थे, लेकिन लाकडाउन में घर लौट आए। सभी मान रहे थे कि जीवन में अंधेरा छा गया है, लेकिन समूह से जुड़कर मोमबत्ती तैयार करने वाली इन महिलाओं ने स्वावलंबन की रोशनी फैलानी शुरू कर दी है।


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