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Akshay Navami 2020: आज ही के दिन हुआ था सतयुग का आरंभ, आंवला के वृक्ष की पूजा का है विशेष महत्‍व

अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग का आरंभ माना जाता है। इस दिन आंवला के वृक्ष का पूजन भक्तिभाव से करना चाहिए। पुराणों मे कहा गया है कि इस दिन आंवले के वृक्ष का जिस मनोकामना से पूजन किया जाता है वह मनोकामना पूर्ण होती है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 23 Nov 2020 08:32 AM (IST)Updated: Mon, 23 Nov 2020 08:32 AM (IST)
Akshay Navami 2020: आज ही के दिन हुआ था सतयुग का आरंभ, आंवला के वृक्ष की पूजा का है विशेष महत्‍व
मान्‍यता है कि अक्षय नवमी के दिन सतयुग का आरंभ हुआ था। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

गोरखपुर, जेएनएन। अक्षय नवमी का पर्व सोमवार को श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के वातावरण में मनाया जाएगा। इस दिन अमृत नामक औदायिक योग बन रहा है जो अत्यधिक फलदायी होगा। अक्षय नवमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए यह दिन काफी शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अक्षय नवमी का वही महत्व है, जो वैशाख मास की तृतीया का है।

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आंवले के पेड़ की पूजा के बाद उसके नीचे भोजन का है विधान

पंडित बृजेश पांडेय के अनुसार अक्षय नवमी के दिन ही सतयुग का आरंभ माना जाता है। इस दिन आंवला के वृक्ष का पूजन भक्तिभाव से करना चाहिए। पुराणों मे कहा गया है कि इस दिन आंवले के वृक्ष का जिस मनोकामना से पूजन किया जाता है, वह मनोकामना पूर्ण होती है। इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर भोजन दान और भोजन ग्रहण करने का महत्व है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने इस दिन कूष्मांड नामक दैत्य को मारकर धर्म की रक्षा की थी।

ऐसे करें पूजन

सुबह स्नानादि के बाद दाहिने हाथ में अक्षत, पुष्प और जल आदि लेकर व्रत का संकल्प लें। विधि-विधान से षोडशोपचार पूजन करें और आंवले के वृक्ष में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। इसके बाद आंवले के तने में सूत्रावेष्टन करें। कर्पूर या घृत पूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें। आरती के बाद प्रदक्षिणा भी की जाए। अंत में आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन भी कराएं और पूजन के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करें।

प्रबोधनी एकादशी 25 को, शुरू होंगे मांगलिक कार्यों का सिलसिला

प्रबोधनी एकादशी आगामी 25 नवंबर को श्रद्धा, भक्ति और हर्षोल्लास के वातावरण में मनाई जाएगी। इसे देवत्थान एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि चार माह के शयन के बाद भगवान विष्णु इसी दिन नींद से जागते हैं। भगवान की निद्रा के दौरान किसी तरह के मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। उनके नींद से जागते ही मांगलिक कार्यों का सिलसिला एक बार फिर शुरू हो जाता है। इस दिन उपवास रखने विशेष धार्मिक महत्व है। प्रबोधिनी एकादशी के उपवास रखने से उपवास रखने वाले को सहस्रों अश्वमेध और सैकड़ो राजसूर्य यज्ञों का फल प्राप्त होता है। व्रत के प्रभाव से उसे वीर, पराक्रमी और यशस्वी पुत्र की प्राप्ति होती है। यह व्रत पापनाशक, पुण्यवर्धक तथा ज्ञानियों को मुक्तिदायक सिद्ध होता है। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्नता देने वाला और विष्णु धाम की प्राप्ति कराने वाला है। इस व्रत को करने से समस्त तीर्थों का घर मे निवास हो जाता है।

रात्रि जागरण का विशेष महत्व

देवोत्थान एकादशी के दिन रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। रात्रि में कीर्तन, वाद्य यंत्रों, नृत्य और पुराणों का वाचन करना चाहिए। धूप, दीप, नैवेद्य, पुष्प, गन्ध, चन्दन, फल आदि से पूजन करके घंटा, शंख, मृदंग आदि वाद्यों की मांगलिक ध्वनि से भगवान से जागने की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद भगवान की आरती करनी चाहिए और पुष्पांजलि अर्पण करके प्रह्लाद, नारद, परशुराम, पुण्डरीक, व्यास,अम्बरीष, शुक, शौनक और भीष्मादि भक्तों का स्मरण करके प्रसाद का वितरण करना चाहिए।


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