इस जिले में भाजपा की राह में रोड़ा बन सकते हैं बागी, जानिए क्या कर सकते हैं नुकसान Gorakhpur News
देवरिया जिले में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में भाजपा की राह में बागी ही रोड़ा बनेंगे। कई सीटों पर बागी मजबूत स्थिति में बताए जा रहे हैं। फिलहाल उन्हें मनाने की तैयारी है। इसके लिए रणनीति बनाने में पार्टी के नेता जुट गए हैं।
गोरखपुर, जेएनएन : देवरिया जिले में जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में भाजपा की राह में बागी ही रोड़ा बनेंगे। कई सीटों पर बागी मजबूत स्थिति में बताए जा रहे हैं। फिलहाल उन्हें मनाने की तैयारी है। इसके लिए रणनीति बनाने में पार्टी के नेता जुट गए हैं।
भाजना ने नए चेहरों पर जताया भरोसा
भाजपा ने रणनीति के तहत अधिकतर सीटों पर नए चेहरों पर भरोसा जताया है। योजनाबद्ध तरीके से चुनाव मैदान में प्रत्याशियों को उतारा है। कई प्रत्याशी टिकट पाकर उत्साहित नजर आ रहे हैं। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि टिकट के लिए उनके नामों की घोषणा हो जाएगी। कई दावेदार अपनी टिकट पक्की मानकर दिनरात प्रचार में जुटे थे। जब सूची जारी की गई तो नाम नहीं देखकर मायूस हो गए। हालांकि सूची जारी होने से पहले ही नामांकन पत्र खरीदकर चुनाव प्रचार में डटे हैं। उधर कई दिग्गजों के पाल्य, जो महीनों से टिकट के लिए ताल ठोंक रहे थे, वे लोग टिकट नहीं मिलने से मायूस हैं। अब उनकी नई रणनीति क्या होगी, यह अगले दो दिनों बाद और साफ हो जाएगा।
अध्यक्ष की कुर्सी के लिए कई मजबूत चेहरे
भाजपा ने कई पुराने चेहरों पर भी दांव आजमाया है। उन चेहरों के सहारे जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज होने का सपना संजोया है। जिला पंचायत सदस्य की सीट पर जीत के लिए मेहनत कर रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि यदि सदस्य की सीट भाजपा की झोली में डाल देते हैं तो जिला पंचायत अध्यक्ष के लिए पार्टी उन्हें उम्मीदवार बनाएगी, लेकिन अभी तक यह उन लोगों का अपना विश्वास है, अंतिम फैसला तो पार्टी नेतृत्व का ही होगा।
घोषणा से पहले बागियों को मैनेज करना चुनौती
बस्ती जिले में चुनाव कोई भी हो, बड़े राजनीतिक दलों के सामने फाइनल प्रत्याशी चुनने की चुनौती हमेशा रहती है। एक बात साफ है कि चुनाव जितना बड़ा होगा दावेदार भी उतने दमखम वाले होंगे। दूसरी ओर पार्टी सबको टिकट दे नहीं सकती, ऐसे में मायूस दावेदार कई बार बागी बनकर संकट खड़ा कर देते हैं। कुछ ऐसा ही जिला पंचायत सदस्य के प्रत्याशियों के चयन को लेकर प्रमुख दलों का है। मतदान भले 29 अप्रैल को होगा, लेकिन दावेदार जल्द पार्टी के समर्थन का तमगा लेकर प्रचार तेज करने को बेताब हैं। सत्ताधारी पार्टी भाजपा के साथ अन्य प्रमुख दलों में समर्थन मांगने वालों की संख्या अधिक है। फाइनल सूची जारी करने के पहले उन चेहरों को लेकर मंथन चल रहा है, जिन्होंने लंबे समय से पार्टी के प्रति समर्पित होकर प्रयास किया हैं। वहीं दूसरी ओर चयन समिति पर इस बात का दबाव है कि इस बात का विशेष ध्यान रखा जाय कि जीत की अधिक संभावना और जातिगत समीकरण साधने वाले को तरजीह दी जाय।