जमीन के पेंच में फंसी 16 करोड़ की परियोजनाएं, 52 ओवर हेड टैंक के निर्माण पर ग्रहण
देवरिया के लोगों को जल जनित बीमारियों से बचाने के लिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मंशा से जिले में 52 ओवर हेड टैंक का निर्माण कराना था। जिसमें आठ गांवों में 16 करोड़ की परियोजनाओं का निर्माण नहीं हो सका। इन परियोजनाओं को जमीन नहीं मिल रही है।
गोरखपुर, जेएनएन। जल जीवन मिशन हर नल से जल योजना के तहत जिले की 16 परियोजनाएं जमीन के पेंच में फंसी हैं। देवरिया के लोगों को जल जनित बीमारियों से बचाने के लिए शुद्ध पेयजल उपलब्ध कराने की मंशा से जिले में 52 ओवर हेड टैंक का निर्माण कराना था। जिसमें आठ गांवों में 16 करोड़ की परियोजनाओं का निर्माण नहीं हो सका। इन परियोजनाओं को गांवों में जमीन नहीं मिल रही हैं।
स्वीकृत मिली 2021 में जून 22 में पूरा होना है निर्माण कार्य
देवरिया में 2021 में जिले में 52 ओवर हेड टैंक का निर्माण कार्य को स्वीकृति मिली। सभी का निर्माण कार्य जून 2022 में पूरा कर लेना था। जिसमें 8 ऐसे ओवर हेड टैंक हैं जिसके निर्माण के लिए ग्राम प्रधान जमीन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। इसके लिए जन निगम के अधिशासी अभियंता अपने उच्चाधिकारियों को पत्र भी लिख चुके हैं।
इन गांवों में फंसा है ओवर हेड टैंक का निर्माण कार्य
जिले के सलेमपुर में देवरिया उर्फ शामपुर, बालेपुर कला, देवरिया सदर में रघवापुर व पथरदेवा क्षेत्र में कौलाचक, बाबू पट्टी, वृक्षा पट्टी, राजपुर धौताल, बरइपट्टी गांव में ओवर हेड टैंक का निर्माण कार्य जमीन के पेंच में फंसा हुआ है। गांवों में ओवर हेड टैंक लगने के बाद घर-घर पाइप लाइन से पानी पहुंचाया जाएगा। सभी लोगों को स्वच्छ जल मिलेगा। जिससे जल जनित बीमारियों पर रोक लग सकेगा
आठ ओवर हेड टैंक का निर्माण कार्य नहीं हो पा रहा है। ग्राम प्रधान जमीन नहीं उपलब्ध करा पा रहे हैं। इसे लेकर उच्चाधिकारियों व डीएम को भी पत्र लिख कर जानकारी दी गई है। - प्रदीप कुमार चौरसिया, अधिशासी अभियंता जल निगम।
मिनी औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योग लगाने से परहेज कर रहे उद्यमी
देवरिया में औद्योगिक विकास का सपना पूरा होता नहीं दिख रहा है। मिनी औद्योगिक क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाएं नदारद होने के कारण उद्यमी उद्योग लगाने से परहेज कर रहे हैं। यही वजह है कि तीन दशक पहले आवंटित भूखंडों पर निर्माण तक नहीं सके हैं। दो औद्योगिक क्षेत्रों के भूखंडों पर तो कांशीराम शहरी आवासों का निर्माण करा दिया गया है।
भाटपाररानी औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना वर्ष 1991 में हुई। 4.66 एकड़ भूमि पर 52 भूखंड तैयार किए गए, जिनमें 46 भूखंड आवंटित कर दिए गए। छह भूखंड पर विवाद है। तीन दशक बाद भी यहां उद्योग शुरू नहीं हो सके हैं।
बरहज व रुद्रपुर में औद्योगिक क्षेत्र की भूमि को कांशीराम शहरी आवास योजना के लिए दे दिया गया। बरहज में वर्ष 1990 में 2.50 एकड़ भूमि चिह्नित की गई। इस भूमि पर 36 भूखंड आवंटित हुए, लेकिन बाद में उन्हें कांशीराम शहरी आवास योजना के लिए दे दिया गया। वर्ष 1990 में रुद्रपुर औद्योगिक क्षेत्र के नाम 4.66 एकड़ भूमि चिह्नित की गई। इस पर 32 भूखंड विकसित किए गए, लेकिन चार भूखंड ही आवंटित हुए। शेष भूमि काशीराम शहरी आवास योजना के तहत अधिग्रहीत कर ली गई। पथरदेवा में वर्ष 1992 में मिनी औद्योगिक क्षेत्र के लिए 2.50 एकड़ भूमि चिह्नित की गई। इस पर 44 भूखंड विकसित किए गए। सभी भूखंड आवंटित कर दिए गए। कुछ दिन पहले दो लोगों ने 12 भूखंडों पर सेफ्टी टैंक बनाने का काम शुरू किया है। शेष पर कोई कार्य नहीं हो सका है। गौरीबाजार औद्योगिक क्षेत्र की स्थापना 1989 में हुई। 2.29 एकड़ भूमि पर 33 भूखंड विकसित किए गए। अभी तक मात्र 16 इकाइयां कार्यरत हैं।