प्रोफेसर ने दो वर्ष में लगाए आठ हजार पौधे, मुहिम में सौ से अधिक लोग जुड़े Gorakhpur News
प्रो. सिंह जुलाई 2018 में सेवानिवृत्त हुए। नौकरी से दूर हुए लेकिन कर्तव्य भाव से नहीं। आराम करने की जबह पर्यावरण संरक्षण की राह पर निकल पड़े। बिना किसी सरकारी मदद के धरती की गोद को हरा-भरा करने का कार्य अनवरत कर रहे हैं।
उमेश पाठक, गोरखपुर। गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राणि विज्ञान के अध्यक्ष रह चुके प्रो. डीके सिंह कहने को तो सेवानिवृत्त हो चके हैं, लेकिन असल में अब भी वे सेवारत हैं। बतौर शिक्षक भविष्य की पौध तैयार करने के बाद अब वे पर्यावरण संरक्षण के लिए हरियाली बो रहे हैं। सेवानिवृत्ति के बाद 10 हजार पौधे रोपित करने का संकल्प लेकर आगे बढ़े और और दो वर्ष में आठ हजार पौधे लगा चुके हैं। इनमें चार हजार पौधे औषधीय हैं। पौधों को रोपित करने से लेकर संरक्षित करने तक का खर्च वे अपनी पेंशन की धनराशि से उठाते हैं। इस पर अब तक वे डेढ़ लाख रुपये खर्च कर चुके हैं। अकेले शुरू की गई उनकी मुहिम से अब तक 100 से अधिक लोग जुड़ चुके हैं और हरियाली की रेखा गोरखपुर, बिहार, अयोध्या तक खींची जा चुकी है।
प्रो. सिंह जुलाई 2018 में सेवानिवृत्त हुए। नौकरी से दूर हुए, लेकिन कर्तव्य भाव से नहीं। आराम करने की जबह पर्यावरण संरक्षण की राह पर निकल पड़े। बिना किसी सरकारी मदद के धरती की गोद को हरा-भरा करने का कार्य अनवरत कर रहे हैं। अकेले शुरू की गई उनकी इस मुहिम में धीरे-धीरे नागेन्द्र चौरसिया, ब्रजेश चंद, माधव सिंह जैसे सक्रिय लोग जुड़ते गए और आज कारवां खड़ा है। प्रोफेसर सिंह पौधा लगाने के बाद उसे भूलते नहीं हैं। समय-समय पर उसके बारे में जानकारी लेते रहते हैं। कोई पौधा खराब होता है तो उसकी जगह दूसरा पौधा लगाया जाता है। अधिकतर पौधे महाविद्यालयों की चहारदीवारी के भीतर या ऐसे स्थान पर लगाए जा रहे हैं, जहां सुरक्षित रह सकें।
125 कल्पवृक्ष समेत लगाए अनेक औषधीय पौधे
प्रो. सिंह रोपित किए गए आठ हजार पौधों में करीब चार हजार मेडिसनल प्लांट हैं। कल्पवृक्ष के 125 पौधों के साथ नीम, बरगद, महुआ, पनियाला, पाकड़ जैसे पौधे भी लगा रहे हैं। मकसद है, हरियाली के साथ उसका उपयोग भी।
अपनी गाड़ी, अपना प्रोजेक्टर लेकर पहुंचते है निश्शुल्क व्याख्यान देने
प्रो. सिंह यूपी-बिहार के महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में पर्यावरण पर निश्शुल्क व्याख्यान देने जाते रहते हैं। आने-जाने का खर्च स्वयं वहन करते हैं। साथ में अपना प्रोजेक्टर जरूर ले जाते हैं। जिन संस्थानों में जाते हैं, वहां पौधे अवश्य लगाते हैं। उनका कहना है कि मेरे जीवनकाल का बड़ा हिस्सा पर्यावरण से जुड़े विषयों के अध्ययन, अध्यापन व शोध में बीता है। सेवानिवृत्ति के बाद मैंने पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण में योगदान का निर्णय लिया। मेरी इस मुहिम में मेरे शिष्यों व समाज के अन्य लोगों का भी सहयोग मिल रहा है। पौधे मैं स्वयं मुहैया कराता हूं। यह अभियान 10 हजार पौधों के बाद भी जारी रहेगा।