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पहले प्रियंका घर पर बैठीं थी बेकार, अब हो चुकी हैं आत्मनिर्भर

प्रियंका ने बघौली ब्लाक के सामने 0.50 हेक्टेयर में नर्सरी स्थापित की हैं। उनकी नर्सरी में सहजन आम अमरूद पपीता नीबू बेल सागौन आंवला गुलाब चांदनी सहित अन्य पौधे बिकते हैं। इस वर्ष पौधों की बिक्री से एक लाख रुपये से अधिक राशि प्राप्त हुई है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 02:23 PM (IST)
पहले प्रियंका घर पर बैठीं थी बेकार, अब हो चुकी हैं आत्मनिर्भर
अपने पौधशाला में काम करतीं प्रियंका विश्‍वकर्मा।

गोरखपुर, जेएनएन। संतकबीर नगर जनपद के बघौली ब्लाक के रमवापुर बिहारे गांव की 31 वर्षीय प्रियंका विश्वकर्मा कभी घर बैठकर अपने को बेकार महसूस कर रही थी। हाईस्कूल तक शिक्षा हासिल करने वाली प्रियंका चूंकि गांव की बहू थी इसलिए उसके पांव घर की चौखट से बाहर नहीं निकले थे। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत चार साल पूर्व उन्होंने गांव की दुर्गावती, श्रीमती, कौशिल्या, चानपती, उर्मिला, पूनम, इंद्रावती, सितारा व सुनैना आदि महिलाओं को जोड़कर सरस्वती महिला स्वयं सहायता समूह बनाया। इस समूह की महिलाओं की सामाजिक व आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। आत्मनिर्भर हो चुकी महिलाओं में विकास की और उम्मीदें जगी है।

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पौधा बेचकर एक लाख से अधिक कमाया

प्रियंका ने बघौली ब्लाक के सामने 0.50 हेक्टेयर में नर्सरी स्थापित की हैं। उनकी नर्सरी में सहजन, आम, अमरूद, पपीता, नीबू, बेल, सागौन, आंवला, गुलाब, चांदनी सहित अन्य पौधे बिकते हैं। इस वर्ष पौधों की बिक्री से एक लाख रुपये से अधिक राशि प्राप्त हुई है। प्रियंका की बगिया में अब महिलाओं को उम्मीद की किरण दिखती है। महिलाएं गरीबी के दलदल से बाहर निकल रही हैं।

भविष्य में जैविक खाद बनाने की तैयारी

प्रियंका कहती हैं कि समूह की महिलाओं से विचार-विमर्श करने के बाद वह नर्सरी के साथ ही भविष्य में जैविक खाद बनाने की तैयारी में जुटी हैं। तमाम किसान यह समझ चुके हैं कि रासायनिक खाद की जगह जैविक खाद से तैयार अनाज ही मिट्टी व स्वास्थ्य के लिए उत्तम है। इसलिए जैविक खाद की मांग भी धीरे-धीरे बढ़ रही है। जैविक खाद के उत्पादन से उनके समूह के आय में और इजाफा होगा।

पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पौध लगाने के लिए करती हैं प्रेरित

प्रियंका का कहना है कि इस साल जनवरी से लेकर अब तक वह 50 गांवों में कैंप लगा चुकी हैं। जनपद व ब्लाक मुख्यालय के अधिकारियों के सहयोग से कैंप के जरिए वह और समूह की अन्य नौ महिलाएं गांववासियों को पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पौध लगाने के लिए प्रेरित करती हैं। पौध लगाने से होने वाले फायदे के बारे में जानकारी दी जाती है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के जिला मिशन प्रबंधक मनोज कुमार मल्ल विसेन का कहना है कि समूह की महिलाएं स्वयं नर्सरी के पौधों की देखभाल करती हैं। पौधों की बिक्री करती हैं। घर गृहस्थी के साथ ही इस जिम्मेदारी को भी वह सभी सही से निभा रही हैं। समूह की आर्थिक स्थिति में काफी बदलाव आया है। विभाग की तरफ से समूहों का पूरा सहयोग किया जा रहा है।


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