गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ बहाली के लिए आंदोलन की तैयारी, बैठकों का दौर शुरू
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ की बहाली के लिए छात्रों द्वारा आंदोलन की तैयारी की जा रही है। इसके लिए बैठकें शुरू हो गई हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में नया सत्र शुरू हुए एक पखवारा बीत चुका है, स्नातक प्रवेश की प्रक्रिया लगभग संपन्न हो चुकी है, ऐसे में छात्रनेताओं के बीच छात्रसंघ चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गई है। सभी इस वर्ष प्रत्येक दशा में छात्रसंघ की बहाली चाहते हैं। इस बाबत हुई बैठकों के बाद तय हुआ है कि चुनाव कराने की मांग के साथ जल्द ही एक प्रतिनिधिमंडल कुलपति से मिलेगा। प्रतिनिधिमंडल में सभी छात्र संगठनों, विचारधाराओं के छात्रनेता शामिल होंगे।
वर्तमान कुलपति प्रो. वीके सिंह के इस कार्यकाल का यह आखिरी सत्र है। पिछले दो सत्रों में अलग-अलग कारणों से चुनाव की तैयारियां होने के बावजूद चुनाव नहीं हो सके। इन दो वर्षों में छात्रसंघ चुनाव को लेकर परिसर में अराजकता का माहौल रहा। कभी शिक्षक के साथ अभद्रता हुई, कभी छात्र पीटे गए तो कभी दर्जनों छात्रों के खिलाफ मुकदमा पंजीकृत हुआ। अराजकता की स्थिति पैदा होने के आरोप विश्वविद्यालय प्रशासन पर भी लगे।
मेस फीस आंदोलन में दिखी एकजुटता
चालू सत्र की शुरुआत में छात्रावास भोजनालय शुल्क कम कराने की मांग लेकर हुए आंदोलन में मिली सफलता से सभी छात्रनेता खासे उत्साहित हैं। इस आंदोलन की खास बात यह रही कि अलग-अलग विचारधाराओं, संगठनों से ताल्लुक रखने वाले छात्रनेताओं ने आपसी विवाद से परे होकर समवेत स्वर से छात्र हितों के लिए संघर्ष किया। एकजुटता का नतीजा आंदोलन की सफलता के रूप में सामने आया। अब छात्रसंघ बहाली के लिए भी छात्रनेताओं के बीच ऐसी ही एकजुटता देखने को मिल सकती है, इस समन्वय के लिए रणनीति बनाई जा रही है।
गठित होगी छात्र परिषद
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के बाद अब गोरखपुर विश्वविद्यालय में भी छात्रसंघ के स्थान पर छात्र परिषद की व्यवस्था अपनाने पर विचार हो रहा है। छात्रसंघ चुनावों को लेकर हालिया वर्षो के अराजकतापूर्ण घटनाक्रमों के मद्देनजर इस अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली 'छात्र परिषद' की व्यवस्था को अधिक उपयोगी माना जा रहा है। योजना है कि इस सत्र में ही विश्वविद्यालय की पहली छात्र परिषद का गठन कराया जाए। हालांकि गोरखपुर विवि में छात्र इसे सहजता से स्वीकार कर लेंगे, इसमें संशय है। विवि प्रशासन को भी किसी तरह के बदलाव के लिए विश्वविद्यालय की कार्यपरिषद और राज्य शासन की अनुमति की जरूरत होगी।