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फाइलों में रह गई बखिरा पक्षी बिहार को पुनर्जीवन देने की योजना, यहां विदेशी पक्षियों का लगता है जमावड़ा

बखिरा की मोती झील पर खामोशियों का आलम बरकरार है। संतकबीर नगर जिले से 16 किमी दूर खलीलाबाद-मेहदावल मार्ग पर मन को मोह लेने वाला बखिरा मोती झील पक्षी विहार में सैलानियों का आवागमन शुरू हो चुका है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Tue, 10 Nov 2020 04:30 AM (IST)Updated: Tue, 10 Nov 2020 07:17 AM (IST)
फाइलों में रह गई बखिरा पक्षी बिहार को पुनर्जीवन देने की योजना, यहां विदेशी पक्षियों का लगता है जमावड़ा
उपोक्षा की शिकार संतकबीर नगर की बखिरा झील। जागरण

गोरखपुर, जेएनएन। इतिहास के पन्नों मे मनमोहक दृश्य को अपने आगोश में समेटे बखिरा की मोती झील पर खामोशियों का आलम बरकरार है। संतकबीर नगर जिले से 16 किमी दूर खलीलाबाद-मेहदावल मार्ग पर मन को मोह लेने वाला बखिरा मोती झील पक्षी विहार में सैलानियों का आवागमन शुरू हो चुका है। यहां विदेशी पंक्षियों का विचरण न देख इनके चेहरों पर उदासी की लकीरें साफ दिखाई देती हैं।

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झील में यें पक्षी आते हैं यहां

नवंबर माह सें ही बखिरा झील में विदेशी पंक्षी, लालसर, नकटा, सुर्खाब, काज, चट्टा, मुर्गाबी आदि पहुंचकर विचरण करते हैं। वहीं अन्य पक्षियों में ब्राउन तीतर, लाल मोनिया,  अमरका, जंगली मैना, लाल मोनिया, नीलकंठ, छपका, धनेश, सारस, बाज, चील, बगुला आदि का भी कोलाहल बरकरार रहता है।

झील तक जाने के लिए मार्ग नही

सैलानी काका सिंह ने के अनुसार बखिरा की नामचीन मोती झील में जाने के लिए रास्ता न होने से काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है। झील के विकास के लिए वादे तो बहुत किये गये लेकिन वादों को असली जामा नही पहनाया जा सका। विभाग ने यहा रेंजर कार्यालय, टावर, नाविक रूम, वन रक्षक पोस्ट का निर्माण तो कर दिया परन्तु झील तक जाने के लिए एक सुलभ रास्ता नही दे सका।

बजट का होता है बन्दर बांट

स्‍थानीय निवासी मुकेश जयसवाल ने कहा पक्षी विहार के सौंदर्यकरण एवं साफ सफाई में आए धन का बंदर बांट हो जाने से विकास नही हो पा रहा है। सम्बंधित विभाग के अधिकारी चुप्पी साधे हैं। काश बखिरा झील पर भी पर्यटक विभाग की नजरें समर्पित होती तो यहां का नजारा कुछ और ही होता।

पूर्व में डीएम ने किया था वादा

पूर्व में झील के निरिक्षण के दौरान  डीएम ने कहा था कि बखिरा पक्षी विहार को राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने की जरूरत है।उन्होनें कार्य योजना में एक अदद वाच टावर, पूरे झील में फैले नरकट, जलकुंभी व शैवाल की साफ सफाई, झील के चारों तरफ बंधे का निर्माण, बंधे पर वृक्षारोपण, गेस्ट हाउस व कैंटीन, डेढ़ किमी चकरोड कार्यालय से झील में जाने के लिए, रास्ते में पड़े काश्तकारों की जमीन को मुआवजा देकर रास्ता बनवाना शामिल था।


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