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बॉलीवुड में जिससे चमकी भोजपुरी, उस 'मोती को भूल गए Gorakhpur News

आचार्य रामचंद्र शुक्ल पं हजारी प्रसाद द्विवेदी डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने कहा था साहित्य संसार ने मोती बीए के कवि-कर्म का उचित मूल्यांकन नहीं किया।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 01 Aug 2020 10:50 AM (IST)Updated: Sat, 01 Aug 2020 10:50 AM (IST)
बॉलीवुड में जिससे चमकी भोजपुरी, उस 'मोती को भूल गए Gorakhpur News
बॉलीवुड में जिससे चमकी भोजपुरी, उस 'मोती को भूल गए Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। पुरानी नदिया के पार, फिल्म के हीरो दिलीप कुमार। फिल्म खूब चली और उसका भोजपुरी गीत भी। लिखने वाले थे, देवरिया के मोतीलाल उपाध्याय उर्फ मोती बीए। युवा पीढ़ी तो जानती ही नहीं है कि मोती बीए कौन हैं, कम ही लोग यह भी जानते होंगे मोती बीए ही ने फिल्म उद्योग को पहला भोजपुरी गीत दिया था। गीत था, 'कठवा के नइया बनइहे रे मलहवा। उन्होंने कई भोजपुरी गीत लिखे, लेकिन जिस मोती ने फिल्मों में भोजपुरी को चमकाया, उसके घर देवरिया में ही लोग उसे भुला बैठे। स्मारक बना न मूर्ति लगी। तब के साहित्यकार भी उन्हें जान पाए थे, तभी आचार्य रामचंद्र शुक्ल, पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. कृष्णदेव उपाध्याय ने कहा था, साहित्य संसार ने मोती बीए के कवि-कर्म का उचित मूल्यांकन नहीं किया।

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कवि मोती बीए, आदर्श शिक्षक मोतीलाल

मोतीलाल उपाध्याय का जन्म एक अगस्त 1919 को देवरिया के बरहज के बरेजी गांव में हुआ था। वह राधाकृष्ण उपाध्याय और कौशिल्या देवी की तीन संतानों में दूसरे नंबर के थे। बरहज में हाईस्कूल व गोरखपुर से इंटर पास करने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1938 में बीए किया। साहित्यरत्न की डिग्री ली लेकिन उस समय के मंचीय कवियों में उन्हीं के बीए होने के कारण मंच पर उन्हें मोती बीए कहा जाने लगा। वह ऐसे रचनाकार थे, जिन्हें फिल्मी तड़क भड़क पसंद नहीं थी। 1950 में मुंबई से लौट आए। 1952 में श्रीकृष्ण इंटर कॉलेज बरहज में शिक्षक बने। 1978 में आदर्श शिक्षक और वर्ष 2002 में साहित्य अकादमी भाषा सम्मान पाया। 

महीयसी के लेखन से थे प्रभावित

मोती बीए महादेवी वर्मा से प्रभावित थे। उनके गीतों की प्रेरणा से लतिका, बादलिका, समिधा, प्रतिबिम्बिनी और अथेति आदि रचनाएं लिखीं।  बादलिका से महादेवी वर्मा काफी प्रभावित हुईं थी। मोती बीए की हिदी, भोजपुरी के साथ उर्दू व अंग्रेजी पर भी पकड़ थी। उनके तीन अंग्रेजी और पांच उर्दू काव्य संग्रह भी प्रकाशित हुए थे। उन्होंने रॉजटी और कॉलरिज के काव्य संग्रह और शेक्सपियर के 109 सानेट्स का पद्यानुवाद भी किया है।

80 से अधिक फिल्मों में गीत लिखें

मुंबई में रहकर मोती बीए ने 80 से अधिक हिदीव भोजपुरी फिल्मों के लिए गीत लिखे। नदिया के पार के साथ सिंदूर, साजन, सुरेखा हरण, किसी की याद, काफिला, राम विवाह, गजब भइले रामा आदि फिल्मों में भी मोती के गीत हिट हुए। साहित्यकार अरुणेश नीरन का कहना है कि मोती बीए भोजपुरी के योद्धा और महान कवि थे। उनका प्रतिमा लगनी चाहिए और स्मारक बनना चाहिए। किसी जनप्रतिनिधि ने इस पर ध्यान नहीं दिया। मोती बीए के पुत्र भालचंद उपाध्याय का कहना है कि पिता जी ने राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। भोजपुरी को स्थापित किया। उनका स्मारक और प्रतिमा का न  होना अफसोसजनक है।

स्मारक बनवाने का करेंगे प्रयास

सांसद कमलेश पासवान का कहना है कि भोजपुरी रचनाकार मोती बीए को कभी नहीं भूल सकते। इसी इलाके में उनका स्मारक बनवाने अथवा प्रतिमा लगवाने की कोशिश होगी। विधायक सुरेश तिवारी का कहना है कि मोती बीए को भूलने का सवाल ही नहीं है। उनका स्मारक बनवाने के लिए सरकार से अनुरोध करुंगा।


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