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हास्य कवि सम्मेलन: सुरेंद्र के हास्य से 'अंबर' तक पहुंची काव्य की महफिल, अनामिका ने अपने अंदाज से जीता श्रोताओं का दिल

गोरखपुर शहर के महाराणा प्रताप इंटर कालेज में दैनिक जागरण और मोमेंटम बेतियाहाता की ओर से हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ। इस दौरान सैकड़ों लोगों ने कार्यक्रम का हिस्सा बनकर महफिल में रौनक जमा दी। वहीं शहर के मंचीय काव्य के इतिहास में नया सुनहरा अध्याय जुड़ गया।

By Pragati ChandEdited By: Published: Sun, 22 May 2022 12:55 PM (IST)Updated: Sun, 22 May 2022 12:55 PM (IST)
हास्य कवि सम्मेलन: सुरेंद्र के हास्य से 'अंबर' तक पहुंची काव्य की महफिल, अनामिका ने अपने अंदाज से जीता श्रोताओं का दिल
दैनिक जागरण और मोमेंटम बेतियाहाता की ओर से हुआ हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन। जागरण-

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। हास्य था, परिहास था। व्यंग था, आभाष था। श्रृंगार में भी वीर रस का अंदाज था। जब इतना कुछ था तो काव्य की महफिल जमनी और जमी भी। जमाने वाले भी कौन थे? हास्य काव्य के बेताज बादशाह पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा और श्रृंगार रस की मोहिनी कवयित्री डा. अनामिका जैन अंबर। रही सही कसर पूरी कर रहे थे, सरदार मंजीत सिंह, पद्म अलबेला, सुरेश अवस्थी, शैलेंद्र मधुर और सत्यपाल सत्यम जैसे शानदार और जानदार कवि। एक-एक कर उनकी रचनाओं से मंच सजता गया और अंबर तक पहुंचता गया। कहने की गुरेज नहीं कि दैनिक जागरण और मोमोंटम बेतियाहाता के संयुक्त तत्वावधान में महाराणा प्रताप इंटर कालेज में आयोजित हास्य कवि सम्मेलन गोरखपुर शहर के मंच काव्य के इतिहास में एक नया सुनहरा अध्याय जोड़ गया।

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कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि पूर्व केंद्रीय मंत्री व राज्यसभा सदस्य शिव प्रताप शुक्ल के साथ मंचासीन कवियों ने मां सरस्वती और जागरण के पुरोधाओं स्व. पूर्णचंद गुप्ता, नरेंद्र मोहन व योगेंद्र मोहन के चित्र के समक्ष दीप जलाकर की। मुख्य अतिथि के संबोधन के बाद शुरू हुआ कवियों की रचनाओं से मंच सजाने का सिलसिला।

संचालन की जिम्मेदारी संभालते हुए कवि सरदार मंजीत सिंह ने सबसे पहले मां शारदे की वंदना के लिए डा. अनामिका को आमंत्रित किया। उन्होंने मां के 108 नामों वाली रचना सस्वर सुनाकर माहौल में भक्ति भाव घोल दिया। उसके बाद शुरू मंच से हास्य का सिलसिला। सबसे पहले इसकी जिम्मेदारी मिली सबसे बुजुर्ग कवि पद्म अलबेला की। उन्होंने शानदार शुरुआत में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। एक-एक के बाद एक बुजुर्गियत को नकारने वाली जिंदादिली की कविताएं सुनाकर लोगों की खूब वाहवाही लूटी। 'बुढ़ापे पर न जाओ मन कभी बूढ़ा नहीं होता', 'घंटी सुनकर बुढ़िया दौड़ी चली आती है', 'बुढ़ापे का दीवानापन बड़ा डेंजरस होता है, जैसी कविताओं को सुनकर लोग लगातार ताली बजाते रहे।

उसके बाद माइक संभाला कवि शैलेंद्र मधुर ने। श्रृंगार रस की कविताओं को सस्वर सुनकार उन्होंने सभी को साथ गुनगुनाने के लिए मजबूर कर दिया। 'झील के पुल में फूल शिकारी हैं, एक नदी तो है मगर दो किनारे हैं' सुनाकर लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। 'बात बिगड़ी है मुंह छिपाने से, बात बनती है मुंह दिखाने से' सुनाकर उन्होंने श्रोताओं के दिल में झांकने की सफल कोशिश की। इसी क्रम में सुरेश अवस्थी ने संचालक सरदार मंजीत को काव्य पाठ के लिए माइक दिया तो उन्होंने अपने हास्य प्रस्तुति से सबको खूब गुदगुदाया। 'सुंदर छवि देखकर कवि का दिल धड़कता है', सुनाकर वह लोगों से जुड़े और नकली नोट को लेकर राजनेताओं पर तंज से दिल में उतर गए। हनुमान जी को दुनिया का पहला पुलिस वाला बताकर, जब उन्होंने कविता के माध्यम से उसका तर्क दिया तो श्रोता के रूप में मौजूद पुलिस के अधिकारी भी खुद को ताली बजाने से नहीं रोक सके।

अपनी रचनाओं के पढ़ने के बाद सरदार मंजीत ने संचालन की जिम्मेदारी एक बार फिर संभाली और कवि सत्यपाल सत्यम को माइक दिया। 'तेरे शहर में रिमझिम गांव मेरा मरुस्थल है' जैसी रचना के जरिए सत्यम जब सावन की बदलियों तक पहुंचे तो लोगों को सावनी फुहार का अहसास हुआ। 'बनेगा फिर से देश महान, अश्वमेध सा लगता है राष्ट्रभक्त अभियान' सुनाकर उन्होंने लोगों का तालियों के जरिये साथ लिया। कवि सुरेश ने अपने चिर-परिचित अंदाज में 'सोच छोटी रख खुद का बेड़ा गर्क मत करना' सुनाया तो लोगों ने उनकी रचना के जरिये खुद को तौलने की कोशिश की। इससे पहले कवियों को बतौर संचालन मंत्र पर आमंत्रित शाहीन ने किया।

अनामिका ने अपने अंदाज से जीता श्रोताओं का दिल: सत्यपाल सत्यम के बाद अनामिका अंबर को लेकर श्रोताओं का इंतजार समाप्त हुआ। उन्होंने भी निराश नहीं नहीं किया। बल्कि अपने खास अंदाज से लोगों का दिल जीत लिया। अनामिका ने अपने गीतों की शुरुआत ही अंदाज की मांग से की। मेरे अंदाज को अपना अलग अंदाज दे देना, चली आउंगी सब छोड़कर आवाज दे देना। जोगीरा के जरिये राजनीति पर तंज करते हुए जब वह देशभक्ति से जुड़ी कविताओं तक पहुंची तो लोग वाह-वाह कर उठे।

श्रोताओं का मिजाज देख वह एक बार फिर श्रृंगार रस की ओर लौटी और जो सुनाया, लोग उससे जुड़ते चले गए। मेरे कालेज का एक लड़का जो लिखकर कर प्रीत देता था, वो दिल के साज को मेरे नया संगीत देता था। अंत में उन्होंने पिछले दिनों वायरल हुई कविता यूपी में बाबा सुनाकर लोगों की डिमांड पूरी की।


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