षटतिला एकादशी 28 को, करें विधि-विधान से पूजन-अर्चन
इस दिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करें। पुनः मानसिक या वाचिक व्रत का संकल्प करें। पूरे दिन निराहार या फलाहार पर रहें। यदि फलाहार भी करें तो केवल दिन में एक बार। बार -बार फलाहार ग्रहण करने से व्रत भंग हो जाता है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। षट़़तिला एकादशी 28 जनवरी को परंपरागत रूप से आस्था व श्रद्धा के साथ मनाई जाएगी। श्रद्धालु विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करेंगे और व्रत रहेंगे। इस दिन तिलों का छह प्रकार से प्रयोग होता है। तिल स्नान, तिल का उबटन, तिल का तर्पण, तिल का भोग (नैवेद्य), तिल से हवन और तिल के दान का विधान है।
कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि में मनाई जाती है षटतिला एकादशी
पं. शरदचंद्र मिश्र ने बताया कि 28 जनवरी दिन शुक्रवार को सूर्योदय छह बजकर 36 मिनट पर और एकादशी तिथि संपूर्ण दिन और रात आठ बजकर आठ मिनट तक है। इस दिन ज्येष्ठा नक्षत्र दिन भर और रात्रि शेष दो बजकर 15 मिनट तक, ध्रुव योग सायंकाल सात बजकर 10 मिनट तक और चर नामक महाऔदायिक योग भी है। चंद्रमा की स्थिति वृश्चिक राशिगत है। काल पुरुष की स्थिति में गुरु लाभ भावगत होने से धार्मिक क्रिया की दृष्टि से यह उत्तम और प्रशस्त दिन है। यह माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी की तिथि है। इसे षटतिला एकादशी के रूप में जाना जाता है।
ऐसे करें पूजन
इस दिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करें। पुनः मानसिक या वाचिक व्रत का संकल्प करें। पूरे दिन निराहार या फलाहार पर रहें। यदि फलाहार भी करें तो केवल दिन में एक बार। बार -बार फलाहार ग्रहण करने से व्रत भंग हो जाता है। दिन में भगवान विष्णु का पूजन करें। भगवान नारायण को तिल से बने नैवेद्य पदार्थ अर्पित करें। विष्णु सहस्र नाम का पाठ या विष्णु पुराण का वाचन करें।
षटतिला एकादशी माहात्म्य कथा
यह कथा पुलस्त्य ॠषि ने दालभ्य ॠषि से कही थी। एक समय की बात है कि नारद जी ने भगवान विष्णु के लोक में जाकर लोक के कल्याण के लिए प्रश्न किया था। जिसके उत्तर में भगवान विष्णु ने षटतिला एकादशी के महत्व पर प्रकाश डाला था। भगवान विष्णु ने नारद जी से कहा- हे नारद ! मैं तुम्हें सत्य घटना बतलाता हूं। ध्यानपूर्वक सुनो। प्राचीन काल में मुत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत करती थी। एक बार उसने एक माह तक व्रत किया था, जिसके कारण उसकी काया अत्यन्त क्षीण और दुर्बल हो गई थी। बुद्धिमान होने के बावजूद उसने कभी देवताओं और ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नही किया था। नारद जी ने कहा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से शरीर तो शुद्ध कर लिया था, अतः उसे विष्णुलोक तो मिल जाएगा, परंतु उसने धन और अन्न का दान नहीं किया था, इसलिए उसका तृप्त होना कठिन था।