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अब यादों में ही रह गई फरेंदा की गणेश शुगर मिल Gorakhpur news

फरेंदा की लाइफ लाइन कही जाने वाली गणेश शुगर मिल उपेक्षा की चादर ओढ़े है। दम तोड़ चुकी चीनी मिल को संजीवनी देने के लिए स्थानीय लोगों ने धरना- प्रदर्शन ज्ञापन आदि देकर काफी प्रयास किया लेकिन चीनी मिल का संचालन शुरू न हो सका।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Fri, 18 Dec 2020 06:50 AM (IST)Updated: Fri, 18 Dec 2020 04:04 PM (IST)
अब यादों में ही रह गई फरेंदा की गणेश शुगर मिल Gorakhpur news
फरेंदा की बंद पड़ी गणेश सुगर मिल। जागरण

गोरखपुर, जेएनएन : कभी महराजगंज के फरेंदा की लाइफ लाइन कही जाने वाली गणेश शुगर मिल उपेक्षा की चादर ओढ़े है। चीनी मिल के बंद होने से फरेंदा के विकास का पहिया थम गया। दम तोड़ चुकी चीनी मिल को संजीवनी देने के लिए स्थानीय लोगों ने धरना- प्रदर्शन, ज्ञापन आदि देकर काफी प्रयास किया, लेकिन चीनी मिल का संचालन शुरू न हो सका। धीरे- धीरे समय बीतता गया और शुगर मिल के चीनी की मिठास सिर्फ यादों में ही रह गई। स्थानीय लोगों को सरकार से नए वर्ष में मिल के संबंध में तोहफे की उम्मीद है। लोगों के अनुसार नई चीनी मिल स्थापित कर या बेकार पड़ी भूमि का सदुपयोग कर फरेंदा के विकास का पहिया तेज किया जा सकता है।

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कब हुई थी स्थापना

15 हजार क्विंटल प्रतिदिन पेराई क्षमता वाली गणेश शुगर मिल की स्थापना राजस्थान के निवासी सेठ आनंदराम जैपुरिया ने क्षेत्र के पिछड़ेपन को दूर करने एवं शिक्षा की ज्योति जलाने के क्रम में किया था। उसी समय एक इंटर कालेज एक जूनियर हाईस्कूल की स्थापना भी की गई ।1988 तक यह मिल उद्योगपति के निजी स्वामित्व में रही। तदुपरांत सुप्रीम कोर्ट के आदेश से कंपनी का 98 प्रतिशत भारत सरकार के उपक्रम एनटीसी के अधीन हो जाने के बाद मिल सरकारी कंपनी के रूप में स्थापित हो गई। फरवरी 1994 में बैंक गारंटी न देने के कारण उत्पादन बंद हो गई । मिल बंद होने की पांच वर्ष तक कर्मचारियों को वेतन मिलता रहा। उसके बाद उच्च न्यायालय के आदेश से बंद होने के बाद मिल कर्मियों का वेतन भी बंद हो गया।

यह है शुगर मिल की अचल संपत्ति

- फरेंदा में स्थित मिल परिसर 33 एकड़

- चेहरी में 624 एकड़

- बागापार में 105 एकड़ भूमि

- सिधवारी फरेंदा में डेढ़ एकड़ भूमि

- खलीलाबाद (संतकबीरनगर) में 16 एकड़ भूमि

- कम्हरिया खुर्द व मथुरानगर में डेढ़ एकड़

आफिशियल लिक्विडेटर की देख रेख में हैं संपत्तियां

दिसंबर 1917 से हाईकोर्ट के निर्देशन में राष्ट्रीय वस्त्र निगम के नाम से दर्ज सभी संपत्तियों की निगरानी शासकीय समापक (आफिशियल लिक्विडेटर) द्वारा की जा रही है।


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