सभ्यता-संस्कृति का नाम है निषाद, वास्कोडिगामा और कोलंबस हैं निषादों पूर्वज
जातिगत खांचों में बंटी यूपी की राजनीति में हाल के वर्षों में जिस एक जाति ने बड़ी अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है वह है निषाद। दरअसल निषाद जाति-संप्रदाय नहीं सभ्यता-संस्कृति का नाम है।
गोरखपुर, क्षितिज पांडेय। तमाम जातिगत खांचों में बंटी उत्तर प्रदेश की राजनीति में हाल के वर्षों में जिस एक जाति ने बड़ी दमदारी से अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है, वह है निषाद। यूं तो पहले के चुनावों में भी इस समाज के लोग अपने वजूद का अहसास कराते रहे हैं, लेकिन पिछले साल के गोरखपुर लोकसभा क्षेत्र के उपचुनाव परिणाम ने निषादों को एक विशेष पहचान दी है। एकजुट, एकस्वर निषाद। अपनी सामाजिक और अस्मिता को पुख्ता पहचान देने को संषर्घरत निषाद। उपचुनाव के परिणाम एक साफ संदेश दिया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश की राजनीति में बगैर निषाद समाज को साधे सफलता नहीं मिल सकती। योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद में प्रवीण निषाद की जीत ने पूरे समाज में जो आत्मविश्वास भरा था, उसका असर इस चुनाव में भी देखा जा सकता है।
निषाद समाज के राजनीतिक उरूज पर पहुंचने के पीछे जिस एक शख्श की कोशिशों को सबसे ज्यादा श्रेय दिया जा रहा है, वह हैं डॉ. संजय निषाद। निषादों की बड़ी आबादी के राजनीतिक प्रभाव को देखते हुए गोरखपुर के डॉ.संजय ने पिछले कई वर्षों में निषाद (निर्बल इंडियन शोषित हमारा आम दल) पार्टी के बैनर तले निषादों की राजनीतिक पहचान पुख्ता की है। फिलवक्त भाजपानीत राजग का हिस्सा संजय, के बेटे गोरखपुर से निवर्तमान सांसद हैँ और संतकबीर नगर से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं।
इतिहास के परिचय से हो रहा आत्मबोध
डॉ. संजय ने मछुआ समुदाय की 553 जातियों को एक मंच पर लाने को मुहिम छेड़ रखी है। निषादों को उनके समृद्ध इतिहास से परिचित कराने के साथ-साथ उन्हें उनके हक-हुकूक के लिए मुखर करने को सतत प्रयासरत हैं। अपने लोगों को इतिहासबोध कराने के उद्देश्य से डॉ. संजय ने आधा दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं। 'निषाद वंश', 'भारत का असली मालिक कौन?','भारत के असली मूलवासी', 'आरक्षण के हकदार सबसे पहले ये लोग' जैसी किताबों से वह समाज के लोगों को यह बताने की कोशिश में हैं कि निषादों का इतिहास अति प्राचीन है। हर काल में वह समाज के अहम अंग रहे हैं। 'निषाद वंश' में वह लिखते हैं, निषादों का इतिहास बहुत पुराना है। प्राचीन ऋग्वेद में निषादों का उल्लेख है। रामायण और महाभारत में कई-कई बार निषादों का उल्लेख है। महर्षि वाल्मीकि ने जो पहला श्लोक लिखा है, उसमें निषाद शब्द आया है। महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास भी एक महान महर्षि निषाद थे।'
निषादों का इतिहास आदि संस्कृति का इतिहास
बकौल डॉ. संजय, निषादों का इतिहास उस आदि संस्कृति का इतिहास है जब मानव ने स्थायी आवास बनाकर रहना सीखा था। निषादों का इतिहास हमारी सभ्यता का प्रारम्भिक इतिहास है। सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता 'आद्य निषाद' थे। वह निषादों का इतिहास इसलिए प्रस्तुत कर रहे हैं ताकि अतीत का स्मरण दिलाकर वर्तमान में इन्हें संगठित करके एक सशक्त वर्ग के रूप में ला सकें जिससे व्यवस्था एवं राजनैतिक परिवर्तन हो सके।
वह लिखते हैं कि, निषाद एक प्राचीन अनार्य वंश है। निषाद (नि: यानी जल और षाद का अर्थ शासन) का अर्थ है जल पर शासन करने वाला। प्राचीन काल में जल, जंगल खनिज, के यही मालिक थे, और जब भारत भूमि पर आर्यों ने आक्रमण किया , उसके पूर्व यहां इन्हीं का शासन था। हमारे बहुत सारे दुर्ग-किले थे, जिन्हें आमा, आयसी, उर्वा, शतभुजी, शारदीय आदि नामों से पुकारा जाता था।
डा. संजय के गोरखपुर स्थित कार्यालय में निषाद समाज के जिन पूर्वजों की तस्वीर लगी है, उसमें वास्कोडिगामा और कोलंबस भी हैं। उनके मुताबिक यह दोनों नाविक थे, इसलिए निषादवंशी हैं। हमारा समुदाय अंतरराष्ट्रीय है। समुद्र, नदी, पोखरों पर जिनकी भी आजीविका और गतिविधि हैं, वह सब निषादवंशी हैं।
अनुसूचित जाति में शामिल होने की मुहिम
डॉ. संजय, निषाद जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने की मांग लेकर संघर्षरत हैं। जून 2015 को इसी बाबत गोरखपुर में आंदोलन भी हुआ जिसमें एक युवक की मौत भी हो गई। डॉ. संजय के अनुसार, निषाद वंशीय समाज की सभी जातियां संवैधानिक रूप से अनुसूचित जाति में हैं, इस बात को सिर्फ परिभाषित करने की जरूरत है जिसे अब तक नहीं किया गया है।
गोस्वामी तुलसीदास ने कवितावली में निषादों के जीवन के बारे में विस्तार से लिखा है। तब निषादों के बच्चों को ठीक से वेद की शिक्षा भी नहीं पा रही थी, लेकिन आज समय बदल गया है निषादों के पास 'डॉ.संजय निषाद' हैं, जो उन्हें सामाजिक और राजनैतिक नजरिये से जागरूक कर एक कर रहा है। तुलसी का केवट प्रभु राम से विवाद बढ़ाने में डरता था, लेकिन आज का केवट अपने हक-हुकूक के लिए मुखर है और हर लड़ाई लडऩे को तत्पर भी है।
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