Chhath Mahaparva: उगा.. हे सुरुज देव, भइले अरघ के बेर...Gorakhpur News
विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की महिलाएं सज-धजकर अपने आंचल में फल लेकर जब सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने निकलीं तो लगा जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो कि देखो! तुम्हारे असंख्य झंझावातों को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है।
गोरखपुर, जेएनएन। शनिवार को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले छठ पर्व की पूर्णाहुति का दिन था। व्रतियों का मन आनंदित था। अति प्राचीन परंपरा व आस्था का उत्साह ठंड को मुंह चिढ़ा रहा था। घर से लेकर घाट तक वातावरण में भक्ति की सुगंध थी। राप्ती नदी के राजघाट तट पर हजारों की संख्या में व्रती क्रमबद्ध हो बाल सूर्य की प्रतीक्षा कर रहे थे। भगवान सूर्य ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। कमर भर पानी में खड़ी महिलाओं के आंचल में अपनी किरणों के माध्यम से बाल सूर्य उतरे और उन्हें मां की गरिमा से नवाजा। ममतामयी मां को देखकर श्रद्धा उत्पन्न हो रही थी।
विश्व की सबसे प्राचीन सभ्यता की महिलाएं सज-धजकर अपने आंचल में फल लेकर जब सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने निकलीं तो लगा जैसे संस्कृति स्वयं समय को चुनौती देती हुई कह रही हो कि देखो! तुम्हारे असंख्य झंझावातों को सहन करने के बाद भी हमारा वैभव कम नहीं हुआ है। हम सनातन हैं, हम भारत हैं। हम तबसे हैं जबसे तुम हो और जबतक तुम रहोगे हम भी रहेंगे। नदी में कमर भर पानी में खड़ी व्रती की सिपुलि में बाल सूर्य की किरणें उतरीं तो लगा जैसे स्वयं भगवान सूर्य बालक बनकर उनकी गोद में खेलने लगे। इस धरा को भारत माता कहने वाले लोगों के मन में शायद स्त्री का यही स्वरूप रहा होगा।
नाक से माथे तक सिंदूर लगाकर घाट पर बैठी माताएं अपनी हजारों पीढ़ी की अजियासास, ननियासास के सूक्ष्म संरक्षण में थी। इसीलिए वे निश्चिंत थी। 36 घंटे के निर्जल उपवास के बाद भी उनके चेहरे पर सिकन नहीं, उत्साह व श्रद्धा थी। उनके दउरे में केवल फल नहीं, समूची प्रकृति थी। इसलिए वह एक सामान्य स्त्री नहीं, अन्नपूर्णा सी दिखाई दे रही थीं। उनमें कौशल्या, मैत्रेयी, सीता, अनुसुइया, सावित्री, पद्मावती, लक्ष्मीबाई व भारत माता की छवि दिख रही थी। यह आश्चर्य नहीं कि उनके आंचल से बंधकर यह संस्कृति हजारों वर्षों का सफर तय कर यहां तक पहुंची है। वे भगवान सूर्य से यही कामना कर रही थीं कि इस संस्कृति पर अपनी कृपा बनाए रखें। ताकि हजारों वर्षों बाद भी हमारी पुत्रवधुएं यूं ही सज-धजकर नदी के जल में खड़ी हों और कहें- उग.. हे सुरुज देव, भइले अरघ के बेर...।
राजा व रंक हो गए एक
इस गौरवशाली छठ परंपरा ने घाट पर राजा व रंक को एक कर दिया था। सभी ने एक देवता को अर्घ्य दिया और समान आशीर्वाद के हकदार बने। न कोई छोटा था न बड़ा। सभी एक साथ घाट पर खड़े थे। श्रद्धा और सूर्य उन्हें जोड़ रहे थे। न भेदभाव था न छुआछूत। सब एक थे। छठ ने लोगों को एकता के सूत्र में पिरोया।
इतिहास से प्रेरणा से लेकर भविष्य को संभालने का संदेश
छठ पर्व में डूबते व उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। डूबता सूर्य इतिहास होता है और उगता सूर्य भविष्य। यह पर्व इतिहास से प्रेरणा लेकर भविष्य को संभालने का संदेश दे रहा है। इतिहास व भविष्य दोनों की पूजा एक साथ। जबतक इतिहास पूजनीय नहीं होगा, भविष्य पूजनीय नहीं बन सकता। शायद छठ पर्व का यही संदेश है।