New Year 2020 : वर्चुअल बधाई में गुम हुआ ग्रीटिंग कार्ड का दौर, वाट्सएप और फेसबुक तक सिमटी बधाइयां Gorakhpur News
अब ग्रीटिंग कार्ड को लेकर शहर में बढऩे वाली सरगर्मी पर विराम लग गया है। भूले से भी कोई उसे खोजता नजर नहीं आता। नई पीढ़ी तो दूर पुरानी पीढ़ी भी उसे भूल सी गई है।
गोरखपुर, जेएनएन। एक समय था, जब नववर्ष के आगमन से एक महीने पहले ही शहर के सभी बाजारों में ग्रीटिंग कार्ड की अस्थायी दुकानें सज जाती थीं। स्थायी दुकानों पर तो कार्ड खरीदने के लिए बकायदा लाइन लगानी पड़ती थी। कई बार दुकानदारों को मैनेज करना मुश्किल हो जाता था। हैंडमेड ग्रीटिंग कार्ड के कद्रदान उसे हासिल करने के लिए पूरे शहर की दौड़ लगाते थे पर अब ग्रीटिंग कार्ड को लेकर शहर में बढऩे वाली सरगर्मी पर विराम लग गया है। भूले से भी कोई उसे खोजता नजर नहीं आता। नई पीढ़ी तो दूर, पुरानी पीढ़ी भी उसे भूल सी गई है।
बधाई कार्ड की अब बात भी नहीं होती
कुछ ग्रीटिंग कार्ड की दुकानों पर जब वजह को लेकर पड़ताल की गई तो सभी दुकानदारों का एक स्वर से यही दर्द था कि वर्चुअल बधाई ने कार्ड के बाजार को ही ध्वस्त कर दिया है। कार्ड खरीदने के लिए आना तो दूर अब कोई उसकी बात भी नहीं करता। बलदेवा प्लाजा स्थित आर्चीज गैलरी के प्रोपराइटर विनोद सिंह ने बताया कि जबसे वाट्सएप का दौर चला, तबसे ग्रीटिंग कार्ड ही प्रचलन से बाहर हो गया। रही-सही कसर फेसबुक पूरी कर देता है। अब तो दुकान बंद करने की नौबत आ गई है। आर्चीज कार्ड शॉप के प्रोपराइटर मनीष श्रीवास्तव ने बताया कि अब इक्का-दुक्का बहुत शौकीन लोग ही कार्ड खरीदने आते हैं। जो आते भी हैं, उनके लिए विशेष दिन नहीं बल्कि शौक मायने रखता है। ऐसे ग्राहक वर्ष में कभी भी आ जाते हैं।
डाकघरों पर भी अब नहीं रहता दबाव
जब ग्रीटिंग कार्ड का दौर था तो डाकघर भी इसे लेकर खासे परेशान रहते थे। समय से कार्ड को पहुंचाना उनके लिए चुनौती होती थी। कई बार तो इसे लेकर डाकियों और ग्राहकों में विवाद की स्थिति बन जाती थी पर अब न तो ग्रीटिंग कार्ड है और नहीं ही इसे लेकर डाक विभाग के सामने चुनौती। गोरखपुर डाक मंडल के प्रवर अधीक्षक एसएन दुबे ने बताया कि बीते कुछ वर्षों में ग्रीटिंग कार्ड पहुंचाने को लेकर डाक विभाग पर बनने वाला दबाव काफी कम हो गया है। अब तो चंद कार्ड ही डाक विभाग से भेजे जाते हैं।
क्या कहते हैं दुकानदार
क्रास माल के आर्चीज गैलरी के मनीष श्रीवास्तव का कहना है कि कार्ड खरीदने वाले ग्राहक अब शॉप पर बहुत कम आते हैं। जो आते भी हैं, वह संदेश भरे कार्ड की मांग करते हैं। किसी विशेष अवसर से जुड़े कार्ड की नहीं। ऐसे में नववर्ष के कार्ड सीमित मात्रा में ही रखे जाते हैं।
ग्रीटिंग कार्ड का अब जमाना नहीं
वह अलग दौर था, जब नववर्ष की बधाई का कार्ड भेजने के लिए बकायदा लोगों की सूची तैयार की जाती थी। कार्ड पहुंचना सुनिश्चित किया जाता था। वाट्सएप के चलन से ग्रीटिंग कार्ड तो सपना सा लगता है।
पहले से होती थी तैयारी, लगती थी लाइन
रिटायर्ड पोस्ट मास्टर सतीश चंद्र राय का कहना है कि मुझे आज भी याद है कि लोग ग्रीटिंग से जुड़ी डाक हासिल करने के लिए डाकघर तक चले आते थे। कार्ड भेजने के लिए भी बकायदा लाइन लगती थी। विभाग भी इसे लेकर पहले से तैयारी करता था।
संजोकर रखते थे कार्ड
गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. राजेश मल्ल का कहना है कि वर्चुअल बधाई देने से मुझे लगता है कि बधाई का महत्व भी कम हो गया है। ग्रीटिंग कार्ड के माध्यम से बधाई देने की बात ही कुछ और थी। उसमें वजन होता था। लोग कार्ड को दस्तावेज की तरह संजोकर रखते थे।