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मुफ्त दवाओं के नाम पर गरीबों की सेहत से खिलवाड़, करोड़ों की दवाएं फेल Gorakhpur News

UP में एक महीने के दौरान एक के बाद एक आठ सरकारी दवाओं के आठ नमूने गुणवत्ता के मानक पर फेल हुए है। आश्‍यचर्यजनक यह कि इन दवाओं की सरकारी एजेंसियों ने पहले पास कर दिया था।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 22 Nov 2019 12:15 PM (IST)Updated: Fri, 22 Nov 2019 04:39 PM (IST)
मुफ्त दवाओं के नाम पर गरीबों की सेहत से खिलवाड़, करोड़ों की दवाएं फेल Gorakhpur News
मुफ्त दवाओं के नाम पर गरीबों की सेहत से खिलवाड़, करोड़ों की दवाएं फेल Gorakhpur News

गोरखपुर, प्रवीन शर्मा। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त दवाओं के नाम पर गरीबों की सेहत से खिलवाड़ हुआ है। एक महीने के दौरान एक के बाद एक आठ सरकारी दवाओं के आठ नमूने गुणवत्ता के मानक पर फेल हुए है। हैरत करने वाली बात यह है कि इन सभी दवाओं को कारपोरेशन के क्वालिटी कंट्रोल विभाग ने क्लीन चिट दी थी। दवाओं की सप्लाई के खेल का राजफाश होने के बाद अब जिलों को दवाएं भेजने के नियम में बदलाव किया गया है।

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पूरे प्रदेश में हुई सप्‍लाई

गरीबों को बेहतर इलाज सरकार की प्राथमिकता में है। सरकार की मंशा जमीनी स्तर पर दिखती भी नजर आ रही है। कई महत्वपूर्ण साल्ट की दवाएं सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में दी जा रही है, जो अभी तक गरीबों के लिए सपना ही होती थीं। दवाओं की गुणवत्ता कायम रहे और जिला स्तर पर मनमानी बंद हो, इसी मंशा से दो साल पहले प्रदेश सरकार ने उप्र मेडिकल सप्लाई कारपोरेशन का गठन किया। लेकिन, दवा निर्माताओं के साथ मिलकर यहां भी खेल शुरू हो गया। एक महीने में दवाओं के आठ नमूनों का फेल हो जाना इसका प्रमाण है। इनमें जीवनरक्षक दवा भी शामिल है। दवाओं की कीमत करोड़ों में बताई जा रही है। इनकी सप्लाई पूरे प्रदेश में हुई है। 

कैसे पास कर दिए इन दवाओं के नमूने

सवाल यह खड़ा होता है कि फेल हुई दवाओं के नमूने सरकारी एजेंसी ने पास कैसे कर दिए। नियम है कि कारपोरेशन दवा कंपनियों को पहले आर्डर देता है। कंपनी दवा का निर्माण कराने के बाद निजी एजेंसी से इसकी गुणवत्ता की जांच कराती है। कंपनी जांच रिपोर्ट कारपोरेशन को भेजती है और फिर कारपोरेशन का क्वालिटी कंट्रोल मैनेजर इसकी खुद जांच सरकारी एजेंसी से कराता है। अगर वाकई सरकारी एजेंसी ने इसकी जांच की थी तो यह दवाएं पास कैसे हो गईं। क्या बिना जांच कराए कंपनी की रिपोर्ट को ही हरी झंडी दे दी गई?

अब जांच के बाद ही भेजी जाएंगी दवाएं

दवाओं का यह खेल उजागर होने के बाद अब विभाग ने नया नियम बनाया है। अब कंपनी से आने वाली दवाओं की सीधी आपूर्ति नहीं की जाएगी। पहले राज्य और फिर लोकल स्तर पर नमूने की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही दवाएं मरीजों को बांटी जाएंगी। ताकि गरीबों की सेहत से खिलवाड़ न हो।

स्वास्थ्य केंद्रों से वापस मंगाई गईं दवाएं

जांच में फेल हुईं सभी दवाओं को अब कारपोरेशन को वापस भेजा जाएगा। सभी अस्पतालों से दवाओं को वापस मंगवाया जा रहा है। गुरुवार को सीएमओ के स्तर से इस संबंध में पत्र भी जारी किया गया है। सुक्रोज इंजेक्शन के इस्तेमाल पर रोक लगा दी गई है।

इन दवाओं के नमूने हुए फेल

नियोस्पोरिन पाउडर : जख्म को सुखाने के लिए

इंजेक्शन डोबिटामिन : जीवन रक्षक दवा

सीएमसी आइ ड्राप : आंखों के लिए

इंजेक्शन लिग्नोकेन विद एडीनोलिन : आपरेशन से पहले मरीज को बेहोश करने के लिए

लिग्नोकेन जेली : आग से झुलसे मरीजों के लिए

इंजेक्शन आर्टिसोनेट : मलेरिया की दवा

टेबलेट एरिथ्रोमाइसिन : गले में इंफेक्शन के लिए एंटीबायोटिक

नियोमाइसिन बेसीट्रेसिन विद जिंक पाउडर : फोड़ा-फुंसी को सुखाने की दवा

आठ दवाओं को तो नमूने फेल होने पर कारपोरेशन ने ही वापस मंगाया है। ऑयरन के इंजेक्शन में यहां गड़बड़ी पाई गई है। सभी को वापस मंगाकर कारपोरेशन को भेजा जा रहा है। - श्रीकांत तिवारी, सीएमओ

सीएम कार्यालय भेजे गए पांच नमूने

जागरण में खबर छपने के बाद सीएचसी से इंजेक्शन के पांच नमूने सीएमओ कार्यालय भेजे गए। वहीं सीएचसी अधीक्षक डॉ. अश्वनी चौरसिया ने बताया कि आयरन सुक्रोज की पूरी खेप को सील कर दिया गया है।


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