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फोरलेन पर अवैध कट बने जानलेवा, संभल कर चलें, हो रही दुर्घटनाएं Gorakhpur News

डिवाइडर सड़क से थोड़ा ही ऊंचा है इसलिए गांव वालों ने डिवाइडर तोड़कर इस लेन से उस लेन पर जाने का रास्ता बना लिया है। बीच से डिवाइडर पार करते समय दुर्घटनाएं हो जाती हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 06 Dec 2019 03:00 PM (IST)Updated: Fri, 06 Dec 2019 03:00 PM (IST)
फोरलेन पर अवैध कट बने जानलेवा, संभल कर चलें, हो रही दुर्घटनाएं Gorakhpur News
फोरलेन पर अवैध कट बने जानलेवा, संभल कर चलें, हो रही दुर्घटनाएं Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कालेसर से कोनी मोड़ तक 32 किमी फोरलेन पर कोहरे में दुर्घटनाएं रोकने के इंतजाम बिल्कुल नहीं हैं, दूसरे इंजीनियरिंग खोट दुर्घटनाओं को दावत दे रही है। खासकर कोनी मोड़ खूनी हो चुका है। आए दिन यहां भयंकर दुर्घटनाएं होती हैं। इसके अलावा जगह-जगह प्रापर्टी डीलर व नागरिकों ने विकसित हो रही कॉलोनियों व गांवों के सामने फोरलेन पर चढऩे के लिए अवैध ढाल बना दिया है तथा एक से दूसरी लेन में जाने के लिए डिवाइडर को ही काट दिया है। जो दुर्घटनाओं का बड़ा कारण बन रहा है।

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फोरलेन पर डिवाइडर के दोनों तरफ न तो जाली लगाई गई है न ही रेलिंग और न ही बीच में हरियाली है। डिवाइडर सड़क से थोड़ा ही ऊंचा है, इसलिए गांव वालों ने डिवाइडर तोड़कर इस लेन से उस लेन पर जाने का रास्ता बना लिया है। बीच से डिवाइडर पार करते समय दुर्घटनाएं हो जाती हैं। एनएचएआइ (भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) के अधिकारियों की नजर में ये खतरे नहीं आते, वर्षों से फोरलेन पर बनाए ढाल व काटे गए डिवाइडर न तो ठीक कराए गए और न ही ऐसा करने वालों के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई। कालेसर से कोनी तक कुल 32 किलोमीटर फोरलेन पर कहीं भी स्पीड लिमिट या डायवर्जन का रेडियम बोर्ड नहीं दिखा। केवल एक जगह बड़े बोर्ड पर कुशीनगर की दूरी लिखी गई है। सड़कों के किनारे लगे ज्यादातर रिफ्लेक्टर खराब हैं।

ये हैं सुरक्षा के मानक

डिवाइडर पर दोनों तरफ जाली होनी चाहिए। डिवाइडर के बीच में हरियाली हो। तीन मीटर से अधिक ऊंचाई पर फोरलेन के दोनों तरफ क्रैश बैरियर लगाए जाएं। रोड मार्किंग होनी चाहिए। स्पीड लिमिट के बोर्ड व साइन बोर्ड होने चाहिए। जंक्शन प्रापर डिजाइन होने चाहिए। जंक्शन पर कैट्स आई लगाई जाए। पूरे फोरलेन पर तीन समानांतर रिफलेक्टर लगाएं जाएं ताकि लेन का पता चल सके। टेलीफोन बूथ व प्रकाश की समुचित व्यवस्था हो। टोल प्लाजा पर एंबुलेंस, क्रेन व पेट्रोलिंग गाड़ी रहे। मदद के लिए जारी नंबर जगह-जगह डिस्पले होने चाहिए।

सावधान, यह कोनी मोड़ है, संभल कर चलें

सहज एवं सुगम यातायात के लिए बने स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना के अंतर्गत लखनऊ-कुशीनगर मार्ग का कोनी तिराहा दुर्घटनाओं का केंद्र बन चुका है। यह तिराहा कुशीनगर, गोरखपुर व लखनऊ मार्ग का इंटरसेक्शन प्वाइंट होने की वजह से तीन तरफ से आ रहे तेज वाहन अक्सर दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।

कोनी तिराहे पर लगे ज्यादातर रिफ्लेक्टर टूट गए हैं, जिससे सही लेन का पता नहीं चल पाता। स्ट्रीट लाइट तो लगी है, लेकिन सभी जलती नहीं। प्रकाश पर्याप्त न होने से सड़क पर लगी पेंटिंग दिखाई नहीं पड़ती, इस वजह से अक्सर गाडिय़ां दूसरे लेन में चली जाती हैं और दुर्घटना की शिकार हो जाती हैं। इस तिराहे पर लखनऊ से कुशीनगर की तरफ आने वाली सड़क का कर्व ज्यादा व ढलान तेज होना भी दुर्घटना की वजह बनती है।

कोनी मोड़ पर हाल में हुए बड़े हादसे

28 नवंबर 2019 को  कार व अनुबंधित बस की टक्कर में तीन लोगों की मौत हो गई।16 सितंबर 2019 को दुर्घटना में एक महिला की मौत व कई घायल हो गए। 4 अगस्त 2019 को बाइक सवार भाई-बहन की मौत हो गई।

कोनी मोड़ नोटिफाइ डेंजर प्वाइंट

एनएचएआइ के परियोजना निदेशक श्रीप्रकाश पाठक का कहना है कि गोरखपुर क्षेत्र में एकमात्र कोनी मोड़ नोटिफाइ डेंजर प्वाइंट है। हालांकि सर्वे में वहां कोई तकनीकी खामी नहीं मिली। वहां कैट्स आइ, रिफ्लेक्टर आदि लगा दिए गए हैं। रोशनी की पर्याप्त व्यवस्था की गई है। जो झाडिय़ां थीं, उन्हें काट दिया गया है। डिवाइडर पर हरियाली लगाई जा रही है। डिवाइडर के कट व अवैध ढाल बंद किए जाएंगे।

ये हैं तकनीकी खामियां

आर्किटेक्ट इं. सतीश सिंह का कहना है कि कोनी मोड पर ब्लाइंड कर्व है। जहां से फोरलेन पर चढ़ते-उतरते हैं, वह सड़क बहुत पतली है, चाहे कोनी में हो या कडज़हां अथवा बाघागाड़ा में। साथ ही कर्व प्वाइंटर व फोरलेन के बीच में गड्ढे बहुत ज्यादा हैं। फोरलेन पर रेलिंग नहीं है। डिवाइडर बहुत छोटे हैं और उनपर हरियाली नदारद है। कहीं भी रेडियम वाला डायवर्जन बोर्ड नहीं है। लाइट की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। ज्यादातर जगहों पर रिफ्लेक्टर खराब हो चुके हैं, जिससे कोहरे में सड़क का किनारा पता नहीं चलता है। शहर में सड़कों के किनारे सुलभ शौचालय, पुलिस चौकी आदि बनाई जा रही है, जो सड़क के पीछे होनी चाहिए। चौराहों पर होर्डिंग नहीं होनी चाहिए, लोगों का ध्यान बंट जाता है। पैडलेगंज चौराहे पर अनेक होर्डिंग व मोहद्दीपुर चौराहे पर एलईडी टीवी हमेशा चलती रहती है। चौराहों से 100 मीटर की दूरी तक टीवी, होर्डिंग या स्टैंड नहीं होने चाहिए। 


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