जानिए, सीएम योगी आदित्यनाथ के गुरू महंत अवेद्यनाथ क्यों आए थे राजनीति में..
ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ ने संतों के अनुरोध पर राजनीति में वापस आए थे। संतों ने तर्क दिया था कि धर्मातरण को रोकने के लिए संसद में जाना जरूरी है।
By Edited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 12:29 PM (IST)Updated: Sun, 17 Mar 2019 04:30 PM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। गोरक्षपीठ की राजनीतिक से रिश्ते की चर्चा जब भी छिड़ती है ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ का राजनीतिक से सन्यास लेकर वापस लौटने का प्रकरण बरबस ही याद आ जाता है। एक दो वर्ष नहीं बल्कि पूरे नौ वर्ष सामाजिक सरोकार को लेकर महंत अवेद्यनाथ राजनीति से दूर रहे और वापसी भी हुई तो सरोकारों को लेकर ही। 1962 से लेकर 67 तक मानीराम विधानसभा से विधायक रहने के बाद महंत अवेद्यनाथ अपने गुरु दिग्विजयनाथ के ब्रह्मालीन होने के बाद 1970 में उपचुनाव जीतकर संसद में पहुंच गए।
ऐसे हुई राजनीति में पुनर्वापसी समरसता के अभियान के तहत वह पीठ और राजनीति के रिश्ते को वह पूरी ईमानदारी से निभा रहे थे कि 1981 में मीनाक्षीपुरम की घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उस गांव के 150 दलित परिवारों ने तत्कालीन परिस्थितियों की वजह से धर्म परिवर्तन कर लिया था। उन परिवारों की मूल धर्म में पुनर्वापसी कराने में तो वह सफल रहे लेकिन इस घटना ने राजनीति से उनका मोह भंग कर दिया और उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। नौ वर्ष तक राजनीति से दूर रहने के दौरान वह समरसता अभियान के साथ-साथ रामजन्म भूमि आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे।
1989 के आम चुनाव से पहले इसे लेकर अयोध्या में धर्म संसद हुई। इस संसद में संत समाज ने मौके की जरूरत को देखते हुए महंत अवेद्यनाथ के सामने राजनीतिक में वापसी का प्रस्ताव रखा। संतों ने तर्क यह दिया कि राजनीतिक दलों की तुष्टिकरण की नीति का जवाब देने के लिए यह राजनीति में उनकी वापसी बेहद जरूरी है। संतों के दबाव भरे प्रस्ताव पर महंत ने गंभीरता से विचार किया और नौ वर्ष बाद सन्यास तोड़ा और सक्रिय राजनीति में वापस लौटे। उस चुनाव में उनका मुकाबला जनता दल के रामपाल सिंह से हुआ, जिन्हें भाजपा का भी समर्थन प्राप्त था।
उस चुनाव में महंत अवेद्यनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। महंत की राजनीति में पुनर्वापसी को जनता ने जोरदार स्वागत किया और वह जनता दल ओर कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशियों को पटखनी देकर वह एक बार फिर संसद में पहुंच गए। उस चुनाव में ब्रह्मालीन महंत को 193821 वोट मिले जबकि रामपाल सिंह को 147984 तो कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सांसद मदन पांडेय को 58319 ही मिले। नौ वर्ष दूर रहे राजनीति से गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी का कहना है कि मीनाक्षीपुरम की घटना ने ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ को इस कदर प्रभावित किया उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर देश भर में सामाजिक समरसता फैलाने का फैसला कर लिया।
पूरे नौ वर्ष वह राजनीति से दूर रहे और उस दौरान देश भर में घूम-घूम सहभोज कर समरसता का संदेश दिया। वाराणसी के डोम राजा के यहां संतों और महंतों के साथ भोज उसी अभियान की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी, जिसकी देश भर में सराहना हुई। यही वजह है कि जब वह संतों के आह्वान पर राजनीति में वापस लौटे तो जनता ने उनका भव्य स्वागत किया।
ऐसे हुई राजनीति में पुनर्वापसी समरसता के अभियान के तहत वह पीठ और राजनीति के रिश्ते को वह पूरी ईमानदारी से निभा रहे थे कि 1981 में मीनाक्षीपुरम की घटना ने उन्हें झकझोर कर रख दिया। उस गांव के 150 दलित परिवारों ने तत्कालीन परिस्थितियों की वजह से धर्म परिवर्तन कर लिया था। उन परिवारों की मूल धर्म में पुनर्वापसी कराने में तो वह सफल रहे लेकिन इस घटना ने राजनीति से उनका मोह भंग कर दिया और उन्होंने राजनीति से सन्यास ले लिया। नौ वर्ष तक राजनीति से दूर रहने के दौरान वह समरसता अभियान के साथ-साथ रामजन्म भूमि आंदोलन को आगे बढ़ा रहे थे।
1989 के आम चुनाव से पहले इसे लेकर अयोध्या में धर्म संसद हुई। इस संसद में संत समाज ने मौके की जरूरत को देखते हुए महंत अवेद्यनाथ के सामने राजनीतिक में वापसी का प्रस्ताव रखा। संतों ने तर्क यह दिया कि राजनीतिक दलों की तुष्टिकरण की नीति का जवाब देने के लिए यह राजनीति में उनकी वापसी बेहद जरूरी है। संतों के दबाव भरे प्रस्ताव पर महंत ने गंभीरता से विचार किया और नौ वर्ष बाद सन्यास तोड़ा और सक्रिय राजनीति में वापस लौटे। उस चुनाव में उनका मुकाबला जनता दल के रामपाल सिंह से हुआ, जिन्हें भाजपा का भी समर्थन प्राप्त था।
उस चुनाव में महंत अवेद्यनाथ हिंदू महासभा के टिकट पर चुनावी मैदान में उतरे थे। महंत की राजनीति में पुनर्वापसी को जनता ने जोरदार स्वागत किया और वह जनता दल ओर कांग्रेस दोनों दलों के प्रत्याशियों को पटखनी देकर वह एक बार फिर संसद में पहुंच गए। उस चुनाव में ब्रह्मालीन महंत को 193821 वोट मिले जबकि रामपाल सिंह को 147984 तो कांग्रेस प्रत्याशी पूर्व सांसद मदन पांडेय को 58319 ही मिले। नौ वर्ष दूर रहे राजनीति से गोरखनाथ मंदिर के सचिव द्वारिका तिवारी का कहना है कि मीनाक्षीपुरम की घटना ने ब्रह्मालीन महंत अवेद्यनाथ को इस कदर प्रभावित किया उन्होंने राजनीति से सन्यास लेकर देश भर में सामाजिक समरसता फैलाने का फैसला कर लिया।
पूरे नौ वर्ष वह राजनीति से दूर रहे और उस दौरान देश भर में घूम-घूम सहभोज कर समरसता का संदेश दिया। वाराणसी के डोम राजा के यहां संतों और महंतों के साथ भोज उसी अभियान की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी, जिसकी देश भर में सराहना हुई। यही वजह है कि जब वह संतों के आह्वान पर राजनीति में वापस लौटे तो जनता ने उनका भव्य स्वागत किया।
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