यहां हो रही बड़े पैमाने पर मशरूम की खपत, अपनी स्थिति संवारने में किसान
गोरखपुर के साथ ही आसपास के जिलों में मशरूम की काफी खपत हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार मशरूम की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है। मशरूम का सेवन मधुमेह उच्च रक्तचाप व मोटापे के रोगी भी कर सकते हैं।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता : गोरखपुर सहित आस-पास के जिलों में बड़े पैमाने पर मशरूम की खपत हो रही है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार मशरूम की खेती के लिए किसानों को प्रशिक्षित कर रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार का मानना है कि इसका सेवन मधुमेह, उच्च रक्तचाप व मोटापे के रोगी भी कर सकते हैं। इसमें प्रोटीन की मात्रा अधिक है। मशरूम की अधिक मांग के चलते किसान इसकी खेती करके अधिक आय अर्जित कर सकते हैं।
तीन वर्षों से किसानों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दे रहा है कृषि विज्ञान केंद्र
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार पिछले तीन वर्षों से किसानों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दे रहा है। तीन वर्षों में वह दो सौ से अधिक किसानों को मशरूम की खेती के लिए प्रशिक्षण दे चुका है। केंद्र के पादप सुरक्षा विशेषज्ञ डा. शैलेंद्र सिंह का कहना है कि मशरूम में वसा व सर्करा कम होने के कारण इसे मोटापा, मधुमेह व उच्च रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति भी खा सकते हैं। उन्होंने कहा कि व्यवसायिक रूप से तीन प्रकार का मशरूम उगाया जाता है। बटन मशरूम (अक्टूबर से मार्च), ढींगरी मशरूम (मार्च से जून) तथा दूधिया मशरूम (जून से अक्टूबर) तीनों प्रकार की मशरूम को किसी भी कमरे या टीन शेड में आसानी से उगाया जा सकता है।
ढींगरी मशरूम उगाने का सही समय मार्च से जून तक
ढींगरी मशरूम उगाने का सही समय मार्च से जून है। सामान्य रूप से 1.5 किलोग्राम सूखे पुआल/ भूसे या छह किलोग्राम गीले पुआल/ भूसे से लगभग एक किलोग्राम ताजी मशरूम आसानी से प्राप्त होती है। इसकी कीमत 80 से 90 रुपये प्रति किलोग्राम है। बटन मशरूम हेतु तैयारी मध्य अगस्त माह से प्रारंभ करते हैं। एक क्विंटल तैयार किए गए कंपोस्ट से करीब 30 से 35 किलोग्राम बटन मशरूम की उपज प्राप्त होती है। उत्पादन खर्च प्रति किलोग्राम रुपये 50 से 60, बिक्री दर रुपये 100 से 150, शुद्ध लाभ रुपये 50 से 100 प्रति किलोग्राम होता है। डा.शैलेंद्र सिंह ने कहा कि मशरूम की खेती के जरिये किसान अपनी आय दो गुना नहीं, बल्कि तीन गुना कर सकते हैं।