जानिए किसके फर्ज के आगे हारा डर और कैसे बचा ली डा. प्रमोद ने 140 लोगों की जिंदगियां Gorakhpur News
महराजगंज जिला अस्पताल के डा. प्रमोद कुमार के फर्ज के आगे कोरोना का डर हार गया है। जब सभी को अपनी जान की चिंता पड़ी है तो वह कोविड हास्पिटल में कोरोना मरीजों की जिंदगी बचाने में जुटें हैं। वह डाक्टर के तौर पर जो कर रहे हैं।
नीरज श्रीवास्तव, गोरखपुर : महराजगंज जिला अस्पताल के डा. प्रमोद कुमार के फर्ज के आगे कोरोना का डर हार गया है। जब सभी को अपनी जान की चिंता पड़ी है तो वह कोविड हास्पिटल में कोरोना मरीजों की जिंदगी बचाने में जुटें हैं। वह डाक्टर के तौर पर जो कर रहे हैं, वो अब नौकरी की अनिवार्यता से ऊपर उठकर मनुष्यता की रोशन मिशाल बन गया है। उन्होंने अब तक 140 कोरोना मरीजों की जान बचाई है।
चित्रकूट से स्थानांतरित होकर आए महराजगंज जिला अस्पताल
बिहार प्रदेश के मुजफ्फरपुर निवासी फिजिशियन डा. प्रमोद कुमार की वर्ष 2016 में चित्रकूट से स्थानांतरित होकर महराजगंज जिला अस्पताल में तैनाती हुई। इसके बाद से ही वह लगातार अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए मरीजों की सेवाभाव में जुटे रहे। उनकी कार्य कुशलता को देखते हुए उन्हें पिछली बार कोविड हास्पिटल के नोडल की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन इस बार वह सीधे तौर पर मरीजों की सेवा में लगे हैं। इस विषम परिस्थितियों में कोरोना विश्वव्यापी प्रकोप के बीच संक्रमण के भय से जब अपने मुंह मोड़ ले रहे हैं। ऐसे संकट के समय में अगर कोई अपने फर्ज को मनुष्यता की जय यात्रा में बदल कर सेवा और भरोसे की नई इबारत लिख रहा हो, तब उसके प्रति एकबारगी मन श्रद्धा से भर उठता है। इनके द्वारा किया जा रहा कार्य स्वास्थ्य विभाग के अन्य चिकित्सकों के लिए नजीर बना हैं। वह प्रतिदिन पीपीई किट के साथ कोविड हास्पिटल में मरीजों की इलाज कर रहें हैं, लेकिन घर पहुंचते ही बच्चों से दूर हो जाते हैं। कोरोना मरीजों के संपर्क में रहने के कारण वह कमरे में आइसोलेट रहते हैं। पांच साल और बारह वर्ष के बच्चे अपने पिता से मिलने के लिए हमेशा परेशान रहते हैं, लेकिन समझाकर उनके हित में वह दूरी बनाए रहते हैं।
समाजहित में जीना ही चिकित्सक का दायित्व
महराजगंज जिला चिकित्सालय के डा. प्रमोद कुमार ने बताया कि चिकित्सकों के लिए यह चुनौती का दौर है। अपने लिए तो सब जीते हैं, देश और समाज हित में जीना ही चिकित्सक का दायित्व है। मरीजों के दर्द को समझने की जरूरत होती है और उसकी मदद भी करनी चाहिए। मरीजों के साथ दोस्ताना व्यवहार करने से उनकी आधी तकलीफ अपने आप दूर हो जाती है।