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बड़े काम का है यह चावल, शुगर के मरीज कर सकते है इसका उपयोग

वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. बैजनाथ सिंह के अनुसार कालानामक चावल में शुगर की मात्रा न के बराबर होती है इसलिए इसे खाने से शुगर नहीं बढ़ता है। दैनिक जागरण गोरखपुर के फेसबुक लाइव कार्यक्रम हम हैं गोरखपुर में डा. बैजनाथ सिंह ने लोगों के सवालों के उत्‍त्‍र दिए।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 28 Dec 2020 09:30 AM (IST)Updated: Mon, 28 Dec 2020 09:30 AM (IST)
बड़े काम का है यह चावल, शुगर के मरीज कर सकते है इसका उपयोग
दैनिक जागरण के कार्यक्रम में डा. बैजनाथ सिंह डा. दिव्या रानी। - जागरण

गोरखपुर, जेएनएन। यूपी खासकर पूर्वांचल में पाया जाना वाला कालानमक चावल शुगर के मरीजों के लिए उपयोगी है। काला नमक चावल का जीआई कम होता है इस कारण यह डायबिटीज से परेशान लोगों के लिये उपयोगी काफी उपयोगी है। वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. बैजनाथ सिंह के अनुसार कालानामक चावल में शुगर की मात्रा न के बराबर होती है इसलिए इसे खाने से शुगर नहीं बढ़ता है। 

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दैनिक जागरण गोरखपुर के  फेसबुक लाइव कार्यक्रम 'हम हैं गोरखपुर' में वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. बैजनाथ सिंह व दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय गोरखपुर के गृह विज्ञान विभाग की अध्यक्ष डा. दिव्या रानी ने पाठकों के प्रश्‍नों की उत्‍तर दिया। 

डा. दिव्या रानी ने बताया कि कोई भी किसी भी तरह का  भोजन करें लेकिन उसे बस इस बात का ध्यान रखना होगा कि भोजन कितना पौष्टिक है और वह कितनी एनर्जी बर्न आउट कर रहा है कितना कार्य कर रहा है। हम चावल खाएं या ना खाएं, हम कुछ भी आहार में लेते हैं और यदि हम शारीरिक मेहनत नहीं करते हैं तो निश्चित तौर पर हमारे लिए हमारे शरीर में स्टोरेज होता है हमारे शरीर में चिपकता है जिसके कारण हम मोटे होते हैं और हमारा शरीर फूलता हैं। 

एक प्रश्‍न के उत्‍तर में डा. बैजनाथ सिंह ने बताया कि बताया कि अगर हम भारत में नूडल्स का निर्माण या फिर या फिर जो ट्रेडि‍शनल फूड हैं जैसे चेउड़़ा़, फरा आदि पर फोकस करें तो हम भारत में एक बड़ा मार्केट खड़ा कर सकते हैं। डा. दिव्या रानी ने दुनिया के खानपान से संबंधित जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैसे हम नूडल्स के स्थान पर वैकल्पिक तौर पर चावल के टूटे हुए दानों का उपयोग कर सकते हैं। जो हमारी ट्रेडिशनल फूड हैं उनमें हम अलग-अलग तरह से छोटे-छोटे प्रयोग करके उसको और हेल्दी बना सकते हैं।

धान की सिंचाई में पानी का रखें विशेेेेष ध्‍यान 

आंध्र प्रदेश में अभी कुछ दिन पहले प्रकरण सामने आया कि कुछ लोग चावल खाकर बीमार पड़ गए थे। बाद में डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने निरीक्षण किया तो पता चला कि चावल में हेवी मेटल था जिनके कारण लोगों को नर्वस ब्रेकडाउन जैसी शिकायतें भी मिली। डॉक्टर बैजनाथ सिंह ने बताया कि किसानों को धान की खेती करते समय खासकर सिंचाई के संदर्भ में जल कैसा प्रयोग करें इस पर भी बहुत जागरूक होने की आवश्यकता है, क्योंकि अगर हम उचित रूप से जल का उपयोग नहीं करेंगे तो यह घातक भी सिद्ध हो सकता है।

चावल खाने ने नहीं निकलता है पेट

कार्यक्रम में बहुत सारे दर्शकों की तरफ से सवाल आया जिसमें मिथकों पर भी चर्चा हो रही थी कुछ लोग पूछ रहे थे कि चावल खाने से पेट निकलता है। दिव्या रानी ने बताया कि हर किसी के शरीर को निश्चित ऊर्जा की आवश्यकता होती है। चावल और आलू की कार्बोहाइड्रेट के मुख्य स्रोत है। अगर हम भारतीय थाली की बात करें तो चावल और रोटी का मुख्य स्थान है। ऐसे में शुगर के मरीजों को चावल का उपयोग कम करने के लिए सलाह इसलिए दिया जाता है ताकि कार्बोहाइड्रेट की सुनिश्चित मात्रा उनके शरीर में मेंटेन हो सके। चावल खाने से पेट निकलता है यह बात सही नहीं है। चिवड़ा और दही शुगर के मरीजों के लिये ज्यादा बेहतर है।

सिद्धार्थनगर सेे बांग्‍लादेश तक जाता था कालानमक चावल 

दर्शकों ने कालानमक चावल, बासमती चावल व सरजू 52 चावल के बारे में भी सवाल किए। डॉक्टर बैजनाथ सिंह ने बताया कि काला नमक चावल जो कि पूर्वांचल में विशेष पहचान रखता है जिसमें 2 एकपी2 एलाइल प्रोलीन कंपाउंड की उपस्थिति के कारण इसकी खास खुशबू होती है। इस कारण यह बहुत ज्यादा पसंद किया जाता है और दुनिया के अलग-अलग देशों में इसकी बहुत ही अधिक डिमांड रहती है। उन्होंने बताया कि भारतीय स्वतंत्रता के इतिहास में भी इसका जिक्र आता है ब्रिटिश पीरियड में यह चावल एक्सपोर्ट होता था और कलेक्शन सेंटर सिद्धार्थनगर में बनाया गया था। सिद्धार्थनगर से ढाका तक इस चावल का निर्यात होता था इस चावल की खास खुशबू के कारण इसे बादशाह भोग भी कहा जाता है। मुगलों के काल में इस चावल का ईरान तक निर्यात किया गया। 

डॉक्टर बैजनाथ सिंह ने बताया जब वह थाईलैंड दौरे पर थे तो वहां उन्होंने जैस्मिन वैरायटी का नाम सुना और बताया जाता है कि वह 12 मिली मीटर लंबाई उसकी पकने के बाद बढ़ जाती थी। उन्होंने थाईलैंड के साथ वैज्ञानिकों को अवगत कराया कि भारत की जो बासमती है उसकी लंबाई जैस्मिन वैरायटी से अधिक 17 से 22 मिलीमीटर बढ़ती है जो कि अपने आप में अद्वितीय है। बाद में इस बात को स्वीकार्यता भी मिली। इसके बाद उन्होंने यह भी बताया संभा चावल पकने के बाद इसके दाने दाने अलग हो जाते हैं जो कि सबसे ज्यादा लोकप्रिय वैरायटी है। इसके बाद उन्होंने बताया कि सरजू बावन वैरायटी के दाने मोटे होते हैं किंतु वह सस्ता होने के कारण कम आय वाले परिवारों में अधिक पसंद किया जाता है। 

चावल पकाने के पहले ऐसे धुलें

दर्शकों ने चावल को धुलने और पकाने के संदर्भ में भी प्रश्न किया। डॉक्टर दिव्या रानी ने बताया कि अक्सर हम घरों में जब चावल धुलते हैं तो हम बहुत गर्व से और खुशी से कहते हैं कि हमने चावल को इतना धुला कि वह मोती के दाने के बराबर चमक रहे हैं। यह बहुत ही बड़ी गलती है जो कि हमें नहीं करनी चाहिए क्योंकि। चावल की ऊपरी सतह पर जो मुख्य पौष्टिक तत्व होते हैं वह धुल कर बाहर चले जाते हैं इसीलिए हमें चावल को हमेशा हल्के से धुलना चाहिए। दिव्या रानी ने बताया कि चावल को अधिक धुलने के कारण उसके ऊपरी सतह में उपस्थित विटामिन धुलकर बाहर चला जाता है। कार्यक्रम का संचालन आकृति विज्ञा अर्पण ने किया। अजय तिवारी, असीम रउफ, अमित पटेल, चित्रा देवी आदि लोगों के प्रश्न सराहे गये।


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