'जमुना' की सेवा की धारा से 'दरिद्र नारायण' को मिला सहारा
देवरिया शहर निवासी जमुना ने भिखारियों को कोरोना से बचाव का लिया संकल्प बांट रहीं मास्क।
देवरिया, जेएनएन: पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया शहर के एक प्राइवेट अस्पताल में पैरामेडिकल स्टाफ का काम करने वाली जमुना सोनकर की सेवा की धारा से 'दरिद्र नारायण' (गरीबों, निर्धनों व दलितों के रूप में माने जाने वाले ईश्वर) को ऐसा सहारा मिला कि कोरोना भी हारने लगा है। ड्यूटी के बाद उनका रुख घर नहीं बल्कि फुटपाथ व नालियों के किनारे पड़े गरीबों व भिखारियों की तरफ होता है। उनको खुद का बनाया मास्क देती हैं। उसकी अहमियत भी बताती हैं। सैनिटाइजर व साबुन से हाथ धुलवाती हैं। कई बार मंदबुद्धि भिखारी उन्हें थप्पड़ भी मार चुके हैं, लेकिन उन्हें इसका कोई मलाल नहीं। उनका मकसद इन्हें कोरोना से बचाना है। शहर के रौनियारी मुहल्ला निवासी जमुना बताती हैं कि कोरोना से बचाव को लेकर शुरू में ही जागरूकता व बचाव अभियान चल रहे थे। पर, पटरी किनारे भीख मांगने वालों पर नजर नहीं पड़ रही थी। पेट की जंग लड़ रहे यह गरीब कोरोना से कैसे जंग लड़ते? उसी दिन मैंने सोचा कि यदि कोरोना को पूरी तरह से हराना है तो 'दरिद्र नारायणों' को भी बचाना होगा। फिर अपने घर की पुरानी सिलाई मशीन ठीक कराई। पहले घर में बचे सूती कपड़ों से मास्क बनाया और खुद मदद को निकल पड़ी। रास्ते में जो भी जरूरतमंद दिखा उसे मास्क पहनाया। मेरे कदम सिर्फ भिखारियों तक नहीं रुके, मलिन बस्तियों में भी पहुंचे। सभी को मास्क पहनाया और हाथ धुलने के लिए प्रेरित किया। यह सिलसिला अब भी जारी है। जमुना कोरोना से दो-दो हाथ करने के लिए लोगों को हिम्मत भी देती हैं। एक मास्क पर तीन रुपये का खर्च, एक हजार लोगों में बांटा
जमुना एक हजार से अधिक लोगों में मास्क बांट चुकी हैं। एक मीटर कपड़े में लगभग 40 मास्क बनते हैं, जिसमें बच्चों के भी मास्क होते हैं। कपड़े के दुकान में कटपीस में निकले कपड़े को सस्ते दर पर खरीदती हैं। सारा खर्च उठाती हैं। जीवन का मकसद जरूरतमंदों की सेवा करना है। कोरोना विश्व व्यापी महामारी है। सभी को इस महामारी से लड़ने के लिए हिम्मत रखनी होगी तो एक दूसरे की मदद भी करनी होगी। लोगों को कोविड 19 के नियमों का पालन करना होगा।
-जमुना सोनकर