विश्वविद्यालयों में अशांत माहौल के समाधान के लिए सिर्फ बातचीत ही रास्ता Gorakhpur News
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों की स्थिति को देखते हुए जरूरी है कि समय-समय पर विश्वविद्यालय के छात्र अभिभावक एलुमिनाई तथा कर्मचारियों व शिक्षकों के बीच एक बैठक हो।
गोरखपुर, जेएनएन। वर्तमान में विश्वविद्यालयों की स्थिति प्रभुत्व वर्ग के लिए चिंता का विषय है। इस समस्या के समाधान के लिए सभी को एक साथ बैठकर आपस में संवाद स्थापित करना होगा, इसी से समस्या का हल निकलेगा। यह बातें दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष व विवि क्रीड़ा परिषद के अध्यक्ष प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने कही। वह सोमवार को दैनिक जागरण कार्यालय में 'जागरण विमर्श कार्यक्रम में 'राजनीति का अखाड़ा बनने से कैसे बचें विश्वविद्यालय विषय पर बोल रहे थे।
समम समय पर बैठकें जरूरी
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों की स्थिति को देखते हुए जरूरी है कि समय-समय पर विश्वविद्यालय के छात्र, अभिभावक, एलुमिनाई तथा कर्मचारियों व शिक्षकों के बीच एक बैठक हो। उनके बीच आपस में संवाद स्थापित हो। भारतीय गुरु-शिष्य परंपरा संस्कारगत है। वर्तमान में जो चुनौतियां हैं, वह नई नहीं हैं। वह हर कालखंड में आई हैं। यदि हम भारतीय विश्वविद्यालयों और उसमें जुड़े हुए यूथ के इतिहास को देखें तो उनमें इन परिवर्तनों को हम तीन भागों में बांटकर देखते हैं।
ये है परिवर्तन के कालखंड
पहला कालखंड 1947 के पूर्व का है। इसमें पहला आह्वान जो दिखाई देता है, उसमें ब्रिटिश काल की शिक्षा के विरुद्ध युवा खड़ा हो रहा है, जो राष्ट्रीय संस्कृति से वंचित करने वाली शिक्षा है। ऐसे में जो युवा फ्रंट सामने आ रहा है, वह भारत की स्वतंत्रता से खुद को जोड़ रहा है और स्वतंत्रता आंदोलन का मुख्य स्तंभ माना जा सकता है। 1848 से भारत में छात्र संगठन बनने की ऐतिहासिक प्रक्रिया शुरू मानी जा सकती है। भारत में जैसे-जैसे राष्ट्रवाद बढ़ा, युवा के प्रति आह्वान बढ़ता गया। 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में जो दो सबसे महत्वपूर्ण नाम हैं, उनमें से एक विदेशी नाम मैजिनी का है, जिसने युवाओं का आह्वान कर इटली का एकीकरण किया। दूसरा नाम स्वामी विवेकानंद का है, जिन्होंने मातृभूमि के प्रति समर्पण का संदेश दिया। हर प्रमुख आंदोलन को लीड करने का काम कॉलेज में पढऩे वाले युवाओं ने ही किया है। 1942 में बनारस ङ्क्षहदू विश्वविद्यालय के माध्यम से युवाओं ने पहला प्रति उत्तर दिया कि भारतीय सिर्फ पाठशाला ही नहीं चला सकते, बल्कि वह विश्वस्तरीय विवि भी स्थापित कर सकते हैं।
हर काल खंड में युवा महत्वपूर्ण
प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि इस कालखंड में बंगाल में 1908 से लेकर 1919 तक 118 लोगों को फांसी दी गई। इसमें से 68 युवा विश्वविद्यालय व कॉलेजों से संबंधित हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि हर कालखंड में विवि व कॉलेज में पढऩे वाले युवा कितने महत्वपूर्ण रहे हैं। राष्ट्र के लिए जो समर्पण है, वह इन इंस्टीट्यूशन से ही निकल रहा है। 1947 से 1992 तक दूसरा दौर रहा है। इससे बाद का मुद्दा परिवर्तित हुआ है। यह टेक्नोलॉजी का दौर है। स्टेक होल्डर थियरी व लिंगदोह रिपोर्ट का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि वर्तमान में परिसर के भीतर से जो समस्याएं आ रही हैं, उसमें एक सवाल खड़ा हुआ कि छात्र क्या हैं? उसमें प्रतिउत्तर आया कि सिर्फ छात्र ही संस्था नहीं हैं। संस्था में पहला स्टेक होल्डर फैकल्टी का है। दूसरा छात्र, तीसरा एलुमिनाई, चौथा अभिभावक, पांचवां संबंधित विश्वविद्यालय का कर्मचारी है। इन पांच यूनिटों के बीच डायलाग स्थापित होना बहुत जरूरी है। उसी से ही रास्ता निकलेगा।