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जागरण विमर्श : चुनाव बाद के गठबंधन तय करेंगे देश का भविष्य

महागठबंधन ने राजग सरकार की राह कठिन कर दी है। लेकिन चुनाव पूर्व इन गठबंधनों को अंतिम सत्य मान लेना भी उचित नहीं है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 29 Jan 2019 02:36 PM (IST)Updated: Tue, 29 Jan 2019 02:36 PM (IST)
जागरण विमर्श : चुनाव बाद के गठबंधन तय करेंगे देश का भविष्य
जागरण विमर्श : चुनाव बाद के गठबंधन तय करेंगे देश का भविष्य

गोरखपुर, जेएनएन। इसमें दो राय नहीं कि नरेंद्र-मोदी-अमित शाह को दोबारा सत्ता में आने से रोकने को आकार ले रहे महागठबंधन ने राजग की राह कठिन कर दी है, लेकिन चुनाव पूर्व इन गठबंधनों को अंतिम सत्य मान लेना भी उचित नहीं। सबकुछ जितना साफ मान लिया जा रहा है, वैसा है नहीं। चुनाव परिणाम के बाद नए समीकरण बनेंगे, नए गठबंधन बनेंगे, जो देश की आगे की राह तय करेगा।

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यह आकलन है गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्रो. हर्ष कुमार सिन्हा का, जो दैनिक जागरण कार्यालय में 'मोदी के मुकाबले महागठबंधन कितना मजबूत' विषय पर आयोजित विमर्श में अपनी बात रख रहे थे। प्रो. हर्ष ने हालिया सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए कहा कि यूपी में सपा-बसपा,.... के गठबंधन निश्चित रूप से मोदी-शाह के लिए चिंता का सबब हैं। इसका असर देखने को भी मिलेगा। लेकिन, यह देखना दिलचस्प होगा कि कैराना, फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में जिस तरह बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने वोट सपा प्रत्याशी को ट्रांसफर किए थे, क्या वैसा सपा कर पाने में सक्षम है? विचारणीय यह भी है कि सुप्रीम नेताओं के स्तर पर दिख रहा सामंजस्य ब्लाक और बूथ लेवल कार्यकर्ताओं में भी होगा? पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री कांग्रेस या किसी और का नेतृत्व स्वीकार कर सकेंगी? यह कुछ सवाल हैं जिन पर विचार कर ही महागठबंधन के जमीनी प्रभाव का आकलन किया जा सकता है। तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा जैसे राज्यों में एकल क्षेत्रीय दलों का दबदबा है, वहां ऐसे किसी महागठबंधन की तस्वीर नहीं बनती। महागठबंधन से असर तो होगा, पर यह असर केंद्र में सरकार बना पाने के लिए पर्याप्त होगा, ऐसा अभी मान लेना जल्दबाजी होगी। चुनाव बाद नए गठबंधन भी होंगे, स्थिति कमजोर रही तो संभव है कि राजग में नेतृत्व परिवर्तन भी हो।

प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती : प्रो. हर्ष ने कहा कि आसन्न लोकसभा चुनावों के मद्देनजर नरेंद्र मोदी-अमित शाह के मुकाबिल आकार ले रहा गठबंधन, राजनैतिक दलों की मजबूरी है। पिछले चार-पांच वर्ष में मोदी-शाह ने जिस आक्रामक ढंग से अपनी विजय पताका पूरे देश में फहराई है, उससे कमोबेश हर विपक्षी दल के सामने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की चुनौती है। त्तर प्रदेश से लगायत हर प्रदेश में गठबंधनों के पीछे यही कारण है। खुद अखिलेश यादव ने भी इसे स्वीकार किया है।

नीति-न नेता, युवा सब है देखता : प्रो. हर्ष ने कहा, कि मोदी के मुकाबिल बन रहे महागठबंधन के पास देश की समस्याओं के समाधान का क्या मॉडल है, देश को अब तक नहीं पता। भारतीय मतदाता जागरूक है और एक चेहरा भी चाहिए और विजन भी। अफसोस कि एकजुट हो रहा विपक्ष महज मोदी हटाओ की रट लगा रहा है, जिसे लोग सहज स्वीकार कर लेंगे, कहना मुश्किल है।

प्रियंका : बंद मुट्ठी लाख की : कांग्रेस का ट्रंप कार्ड कही जा रहीं प्रियंका गांधी के असर को लेकर प्रो. हर्ष ने कहा कि अभी उनका जादू देखना बाकी है। उनमें सौम्यता दिखती है, हाजिरजवाबी है, लेकिन एक नेता के तौर उनकी परिपक्वता, विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय, आरोपों का सामना करने का साहस, अभी देखना होगा। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि एक समय राहुल गांधी को लेकर भी ऐसे ही जादू-करिश्मे की बात की जा रही थीं।


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