हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा बोले- पैरोकार नहीं समाज का चौकीदार है साहित्यकार
गोरखपुर में दैनिक जागरण से बातचीत में कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा ने साहित्य और राजनीति के रिश्ते पर खुलकर बोला। उन्होंने कहा कि पहले राजनीति आमजन को इतना प्रभावित करती थी जितना कि अब करती है और जो बात आमजन को प्रभावित करेगी साहित्य उसकी तरफ खुद झुकेगा।
गोरखपुर, डा. राकेश राय। मशहूर हास्य कवि पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा का कहना है कि किसी कवि या साहित्यकार को चारण सृजन से बचना चाहिए। उसे किसी का पैरोकार नहीं बल्कि समाज का चौकीदार होना चाहिए। अगर कोई साहित्यकार ऐसा नहीं करेगा तो वह अपने कार्य और दायित्च को लेकर बेईमान कहलाएगा। सुरेंद्र शर्मा ने यह बेबाक टिप्पणी शनिवार को जागरण से बातचीत के दौरान साहित्य और राजनीति के गहरे होते रिश्ते के सवाल पर की।
उन्होंने कहा कि पहले राजनीति आमजन को इतना प्रभावित करती थी, जितना कि अब करती है और जो बात आमजन को प्रभावित करेगी साहित्य उसकी तरफ खुद-ब-खुद झुकेगा। साहित्य के सृजन में राजनीति के बढ़ते दखल में यही वजह है। इसी क्रम में उन्होंने राजनीति को धर्म से न जोड़ने की बात कही। कहा कि धर्म के कंधे पर बैठकर राजनीति नहीं होनी चाहिए, राजनीति के कंधे पर धर्म होना चाहिए। ऐसा न होने पर राजनीति का मूल स्वरूप बिगड़ जाता है। जल्द लोकप्रियता के लिए परेशान नई पीढ़ी के कवियों को सुरेंद्र शर्मा की सलाह है कि वह लंबी रेस का घोड़ा बनने का प्रयास करें। जिंदगी को केवल आज में न जीयें। अगली पीढ़ी तक अपना नाम पहुंचाने के लिए वर्तमान के जरिये समृद्ध अतीत और बेहतर भविष्य तैयार करें।
मैं तो पैदा होने के साथ ही हंसा रहा हूं: हास्य कवि के तौर पर पहचान बनाने की वजह के सवाल पर सुरेंद्र शर्मा ने तपाक से कहा, मैं तो जबसे पैदा हुआ तबसे लोगों को हंसा रहा हूं। जब मैं पैदा हुआ तो मैं तो रो रहा था लेकिन घर के लोग मुझे देखकर हंस रहे थे। उसके बाद से मेरे द्वारा लोगों को हंसाने का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज तक जारी है।
महिलाओं को ज्यादा पसंद आती हैं मेरी कविताएं: पत्नी पर कटाक्ष के जरिये पुरुष सशक्तीकरण की दिशा में कार्य करने से महिलाओं की नाराजगी के सवाल को सुरेंद्र शर्मा ने सिरे से खारिज कर दिया। बोले, वह कविता से महिलाओं का उपहास नहीं करते बल्कि उनके सामने हास्य परोसते हैं। यही वजह है कि मेरी कविताओं महिलाओं को ज्यादा पसंद आती हैं। पुरुष कभी अशक्त रहा ही नहीं कि उसके सशक्तीकरण की जरूरत पड़े।