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मच्छर काटने से मौत हुई तो बीमा कंपनी देगी हर्जाना

दैनिक जागरण के प्रश्‍न पहर कार्यक्रम में उपभोक्ता फोरम के पूर्व चेयरमैन व अवकाश प्राप्त जज विजय प्रकाश मिश्र ने जनता के सवालों का जवाब दिया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 10:33 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 02:18 PM (IST)
मच्छर काटने से मौत हुई तो बीमा कंपनी देगी हर्जाना
मच्छर काटने से मौत हुई तो बीमा कंपनी देगी हर्जाना

गोरखपुर, (जेएनएन)।  दैनिक जागरण के लोकप्रिय कार्यक्रम 'प्रश्न पहर' में गुरुवार को उपभोक्ता फोरम के पूर्व चेयरमैन व अवकाश प्राप्त जज विजय प्रकाश मिश्र ने जनता के सवालों के जवाब के बताया यदि मच्‍छर काटने से किसी की मौत होती है तो भी बीमा कंपनी को हर्जाना देना पड़ेगा। मिश्र ने जनता की समस्याओं को सुनते हुए उन्हें उनके अधिकारों के प्रति सजग किया। बताया कि उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा के लिए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 बनाया गया है। कहा कि बीमा कराए हुए व्यक्ति को मच्छर काटने से हुई मौत अब दुर्घटना मानी जाएगी। संबंधित व्यक्ति को दुर्घटना हित का लाभ मिलेगा।

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सवाल - उपभोक्ता कौन है। वस्तु के अंतर्गत क्या-क्या आते हैं?

जवाब - उपभोक्ता की परिभाषा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में दी गई है जिसमें मुख्य रूप से कहा गया है कि हर वह नागरिक उपभोक्ता है जिसने कोई वस्तु या सेवा प्रतिफल देकर प्राप्त किया हो। जहां तक वस्तु शब्द की बात है तो इसकी परिभाषा भी 'सेल्स आफ गुड्स एक्ट' में दी गई है। सामान्यतया किसी भी मूल्य की कोई वस्तु जो दैनिक उपभोग के लिए क्रय किया की जाती है, उसका विवाद उपभोक्ता फोरम में आएगा। इसमें अपवाद यह है कि अगर वस्तु को व्यावसायिक कार्य के लिए क्रय किया जाता है तो वह उपभोक्ता नहीं माना जाएगा। लेकिन व्यवसायिक कार्य से क्रय की गई वस्तु भी यदि स्वरोजगार के लिए खरीदा गया है तो वह भी उपभोक्ता की श्रेणी में आएगा।

सवाल - उपभोक्ता फोरम में वाद दाखिल करने के लिए प्राथमिक तौर पर क्या साक्ष्य देने होंगे?

जवाब - वस्तु जो क्रय किया गया है उसकी रसीद आवश्यक है। अगर उपभोक्ता ने शिकायत उत्पादक या विक्रेता से की है तो उसका भी प्रमाण संलग्न करना होगा। वस्तु जहां से खरीदी गई है परिवाद वहीं दाखिल होंगे।

सवाल - फोरम में दावा निश्शुल्क होता है या फीस लगती है?

जवाब-वर्ष 2004 तक यह व्यवस्था निश्शुल्क थी। उसके बाद शुल्क का प्रावधान कर दिया गया। इसमें गरीबी रेखा से नीचे के लोग एक लाख रुपये तक के विवाद के मामले की शिकायत बिना किसी शुल्क के कर सकते हैं। अन्य लोगों के लिए एक लाख रुपये तक के मामले पर 100 रुपये, पांच लाख तक के मामले पर दो सौ रुपये, 10 लाख रुपये के मामले पर चार सौ और 20 लाख रुपये तक के मामले पर पांच सौ रुपये का बैंक ड्राफ्ट या पोस्टल आर्डर अध्यक्ष जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम के नाम से देना होगा।

सवाल- बिजली विभाग की लापरवाही से किसी व्यक्ति या पशु की मौत हो जाती है तो क्या वह उपभोक्ता का विवाद माना जाएगा? जवाब-बिजली विभाग की लापरवाही से हुई दुर्घटना का विवाद इसलिए उपभोक्ता का प्रकरण माना जाएगा क्योंकि पीड़ित व्यक्ति संरक्षित उपभोक्ता द्वारा आच्छादित है। यह बिजली विभाग का दायित्व है कि खंभा और उपकरण को इस प्रकार लगाए कि उससे किसी का नुकसान न हो।

सवाल- आपातकालीन स्थिति में दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की चिकित्सा से नर्सिग होम द्वारा पैसे के अभाव में इन्कार किया जाना चिकित्सीय असावधानी की श्रेणी में आता है कि नहीं? जवाब-उच्चतम न्यायालय ने इस बिंदु पर स्पष्ट रूप से यह सिद्धांत प्रतिपादित किया है कि कोई भी अस्पताल आकस्मिक दुर्घटना के शिकार व्यक्ति का तत्काल पैसे के अभाव में चिकित्सा सेवा देने से मना नहीं कर सकता है।

सवाल-क्या किसी विक्रेता को एमआरपी (अधिकतम खुदरा मूल्य) से अधिक मूल्य लेने का अधिकार है?

जवाब-किन्हीं भी परिस्थितियों में किसी भी विक्रेता को एमआरपी के अंतर्गत अंकित मूल्य से अधिक मूल्य लेने का अधिकार नहीं है। यदि यह प्रमाणित होता है कि विक्रेता ने अधिक मूल्य लिया है तो वह क्षतिपूर्ति देने को बाध्य होगा। सवाल-रेल यात्रा में आरक्षित कोच में यदि कोई यात्री अपना लगेज लेकर यात्रा कर रहा है और लगेज चोरी हो जाता है तो क्या रेलवे के खिलाफ दावा किया जा सकता है?

जवाब-रेलवे यात्री के सामान की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है। भले ही उपभोक्ता ने लगेज की सुरक्षा के लिए अलग से कोई शुल्क नहीं दिया हो। रेल यात्रा के दौरान मेडिकल एड दिलाने की जिम्मेदारी भी रेलवे की ही है।
सवाल-बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा लुभावने विज्ञापन देकर उपभोक्ताओं के साथ ठगी करते हैं। क्या उन पर कार्रवाई हो सकती है?
जवाब-लुभावने विज्ञापन देकर ठगी करना उपभोक्ता कानून के तहत आएगा। ऐसे मामलों की शिकायत फोरम में की जा सकती है।

सवाल-नसबंदी के बाद भी गर्भ ठहरने का मामला उपभोक्ता फोरम में आएगा?

जवाब-नसबंदी के बाद गर्भ ठहरने के मामले में राज्य सरकार ने बीमा करा रखा है जिसमें गर्भधारण करने वाली महिला को एक निर्धारित धनराशि का भुगतान किया जा सकता है।

कोई भी सामान खरीदें तो रसीद जरूर लें

अवकाश प्राप्त जज विजय प्रकाश मिश्र ने कहा कि उपभोक्ता कोई भी सामान खरीदें तो उसकी रसीद जरूर लें। 20 लाख रुपये तक के मामले जिला फोरम, एक करोड़ तक के मामले राज्य आयोग लखनऊ व एक करोड़ रुपये से ऊपर के मामले राष्ट्रीय आयोग दिल्ली में दाखिल किए जा सकते हैं।

कौन सी बीमा पब्लिक लायबिलिटी पालिसी (मास्टर पालिसी) में आएगी?

उपभोक्ता मामलों के जानकार बृज बिहारी लाल श्रीवास्तव का कहना है कि ऐसी बीमा जिसका प्रीमियम प्रत्यक्षत: या अप्रत्यक्षत: तीसरे व्यक्ति अर्थात सरकार द्वारा दिया और लिया जाता है वह लोक कल्याणकारी योजना के अंतर्गत मास्टर पालिसी कहलाती है। जैसे कि गैस सिलेंडर के सभी वैध उपभोक्ताओं का बीमा भारत सरकार ने कर रखा है जो समय-समय पर विभिन्न बीमा कंपनियों द्वारा नवीनीकृत होता रहता है। अगर कनेक्शन धारक के साथ सिलेंडर की वजह से कोई घटना होती है तो उस कनेक्शनधारक को जो क्षति पहुंचती है उस क्षति की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की होगी। बीमा कंपनी यह कहकर इन्कार नहीं कर सकती है कि गैस कनेक्शनधारक ने कोई बीमा नहीं करवाया है इसलिए बीमा कंपनी की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है। जानकारी के अभाव में उपभोक्ता इसका लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। किसान क्रेडिट कार्ड, बैंक एटीएम कार्डधारक, व्यापारी (वाणिज्य कर विभाग में पंजीकृत) व किसान (राजस्व अभिलेख में दर्ज) मास्टर पालिसी के अंतर्गत आते हैं जिनके प्रीमियम का भुगतान समय-समय पर सरकार करती है।

इन्होंने किए सवाल

राधेश्याम, स्वतंत्र रावत (बांदा), गोपेश्वर मिश्र, सुनील कुमार, सुदर्शन पासवान, संतोष मद्धेशिया, मो.नईक, रामसंवारे, अजय कुमार, राधा गुप्ता, सत्यअशीष पांडेय, उग्रसेन सिंह, रणविजय सिंह, अजय निगम, रामनंदन विश्वकर्मा, शंभू यादव, हरशिंकर गुप्ता, डा.विद्या सिंह, विवेकानंद सिंह, नंदलाल प्रसाद मिश्र, राजन जायसवाल, मोतीलाल यादव, घनश्याम, शारदा प्रसाद दुबे, धर्मेद्र पांडेय, रहमत अली, सुभाष विश्वकर्मा, लालजी त्रिपाठी, सुभाष मद्धेशिया, रामजनक वर्मा, रामवृक्ष सिंह।


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