Move to Jagran APP

सम्मोहित नहीं कर पा रहा इंद्रजाल, भविष्य बताने में नाकाम रावण संहिता

रेलवे स्टेशन गोरखपुर के मुख्य द्वार पर 22 दिसंबर को अपराह्न 1.30 बजे के आसपास। पुस्तकों से सजे स्टाल से होकर गुजरती यात्रियों की भीड़। लेकिन किसी की नजर पुस्तकों के संसार पर नहीं पड़ रही। स्टाल पर खड़े वेंडर लोगों की तरफ कातर भाव से देख रहे हैं।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Thu, 23 Dec 2021 05:49 PM (IST)Updated: Thu, 23 Dec 2021 05:49 PM (IST)
सम्मोहित नहीं कर पा रहा इंद्रजाल, भविष्य बताने में नाकाम रावण संहिता
प्लेटफार्म संख्या एक स्थित बुक स्टाल पर पसरा सन्नाटा। जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। रेलवे स्टेशन गोरखपुर के मुख्य द्वार पर 22 दिसंबर को अपराह्न 1.30 बजे के आसपास। पुस्तकों से सजे स्टाल से होकर गुजरती यात्रियों की भीड़। लेकिन किसी की नजर पुस्तकों के संसार पर नहीं पड़ रही। स्टाल पर खड़े वेंडर लोगों की तरफ कातर भाव से देख रहे हैं, शायद कोई चाहने वाला मिल जाए। संयोग से एक युवा यात्री स्टाल पर पहुंचता है। वेंडर की आंखों में चमक आ जाती है लेकिन युवा कुछ पत्रिकाओं को पलट आगे बढ़ जाता है।उदास वेंडर फिर दूसरे यात्री का इंतजार करने लगते हैं।

loksabha election banner

कोरोना काल में कम हुआ पुस्‍तकों से प्रेम

इसे मोबाइल युग कहें या कोरोना काल में पुस्तक प्रेम का कम हो जाना। यात्रियों को न इंद्रजाल सम्मोहित कर पा रहा और न रावण संहिता भविष्य बता पा रही। नए जमाने का रावण भी धूल फांक रहा है। अगर किसी की नजर स्टाल पर पड़ गई तो पुस्तकों को उलट-पलट कर देख आगे बढ़ जाता है। तीस वर्ष से स्टेशन पर किताबें बेच रहे वेंडर बच्चा सिंह बताते हैं, अब न ग्राहक हैं और न बिक्री। पुस्तकें मोबाइल पर ही आनलाइन मिल जा रहीं। स्टेशन और ट्रेनों में अब कोई पुस्तकें कहां पढ़ रहा।

चौपट हुआ रोजगार

पुस्तकों के दर्जन भर स्टालों में सिर्फ दो से तीन ही चल रहे हैं। वहां भी सन्नाटा पसरा रहता है। रोजगार भी चौपट हो गया है। पहले पुस्तकों के स्टालों से ही 50 से 60 वेंडर की रोजी-रोटी चल जाती थी। आज पांच से छह वेंडर भी नहीं हैं। आठ से दस हजार रुपये की कमाई दो से तीन हजार में सिमट गई है। वेंडर मोहन का कहना था कि हाथ में उपन्यास और पत्र-पत्रिकाएं यात्रियों की पहचान हुआ करती थीं। अब सबके हाथ में मोबाइल है। 24 घंटे में एक से दो उपन्यास बिक जाएं बहुत है।

फेस मास्‍क व सैनिटाइजर बेच रहे एएच व्‍हीलर के वेंडर

1877 से स्टेशन पहुंचने वाले यात्रियों को किताबें पढ़ानी वाली एएच व्हीलर (आर्थर हेनरी व्हीलर) एंड कंपनी के वेंडर फेसमास्क और सैनिटाइजर बेचकर अपना खर्चा निकाल रहे हैं। वार्षिक शुल्क जमा करना मुश्किल हो गया है। यह तब है जब पूर्वोत्तर रेलवे की लगभग सभी नियमित एक्सप्रेस ट्रेनें चलने लगी हैं। गोरखपुर जंक्शन से प्रतिदिन 80 हजार से एक लाख लोग आवागमन करने लगे हैं।

स्टेशन पर एएच व्हीलर के अधिकृत स्टाल व ट्राली

- प्लेटफार्म नंबर एक पर एक।

- प्लेटफार्म नंबर दो पर एक।

- प्लेटफार्म नंबर तीन पर एक।

- प्लेटफार्म नंबर चार पर एक।

- पांच और छह नंबर पर एक-एक काउंटर टेबल।

- प्लेटफार्म नंबर नौ तक आवंटित हैं छह ट्राली।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.